डीयू के प्रोफेसर वीएस नेगी ने कृषि कानूनों की वापसी को बताया केंद्र सरकार की दूरगामी सोच
प्रो.वीएस नेगी ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेकर केंद्र सरकार ने एक दूरगामी व धैर्यपूर्ण निर्णय लिया है। इस विरोध प्रदर्शन में छोटी-छोटी ट्रेड यूनियन एक ऐसा वर्ग जिसका काम सरकार की नीतियों का विरोध करना है और देश विरोधी ताकतें शामिल थीं।
नई दिल्ली/ नोएडा [स्वर्णिम प्रभात]। तीनों कृषि कानूनों की वापसी को किसी भी रूप में सही नहीं कहा जा सकता। इससे तो किसी भी कानून को रद कराने का एक चलन सा बन जाएगा, लेकिन हो सकता है इसके पीछे सरकार की कोई और ही रणनीति रही होगी। यह मानना है दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कालेज के प्रोफेसर व कार्यकारी परिषद के सदस्य वीएस नेगी का। वह सोमवार को दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श में विचार व्यक्त कर रहे थे।
‘जिद से कानूनों का स्थगन परिपाटी न बन जाए’ विषय को आगे बढ़ाते हुए प्रो.वीएस नेगी ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेकर केंद्र सरकार ने एक दूरगामी व धैर्यपूर्ण निर्णय लिया है। इस विरोध प्रदर्शन में छोटी-छोटी ट्रेड यूनियन, एक ऐसा वर्ग जिसका काम सरकार की नीतियों का विरोध करना है और देश विरोधी ताकतें शामिल थीं। इस प्रदर्शन से किसी को फायदा नहीं हुआ। न तो नए कानून पर चर्चा हुई और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही कोई सहमति बनी।
प्रो. वीएस नेगी ने कहा कि 26 जनवरी को लाल किले पर प्रदर्शनकारियों का जिस तरह का तांडव देश ने देखा, उसे किसी भी रूप स्वीकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में इसके पीछे कुछ ऐसी ताकतें थीं जो भाजपा सरकार और देश के खिलाफ फंडिंग कर रही थीं। उन्होंने कहा कि सरकार का काम कानून का पालन कराना भी है, लेकिन कृषि कानूनों के सापेक्ष में सरकार विफल रही। इतना ही नहीं, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के दौरान शाहीन बाग व कृषि कानूनों के विरोध में टीकरी बार्डर व दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर आम लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में भी सरकार विफल रही। उन्होंने कहा कि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि चुनाव में लाभ पाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया। अगर यह सही है तो भविष्य में सरकार को और विरोध ङोलने पड़ेंगे। ऐसे में सरकार को ऐसे लोगों को साथ लेकर चलना होगा, जिन्होंने सरकार के साहसिक निर्णय का समर्थन किया है।
आंदोलनकारियों का उद्देश्य सरकार का मनोबल गिराना था
प्रो. वीएस नेगी ने कहा कि देखा जाए तो यह विरोध सरकार के मनोबल को डिगाने के लिए था, क्योंकि जिस समय यह विरोध हो रहा था सरकार गलवन में चीन को चुनौती दे रही थी और पूरा देश कोरोना से लड़ रहा था। सिंघु बार्डर पर जिस तरह के पोस्टर-बैनर लगाए गए थे, उससे कहीं से नहीं लग रहा था कि यह किसानों का आंदोलन है। कुछ राज्य सरकारें भी समर्थन दे रही थीं, जिनका उद्देश्य सिर्फ भाजपा सरकार का विरोध था।