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DU Open Book Exams: आनलाइन परीक्षा में करियर न हो जाए आफलाइन

ओबीई का आंकड़ा देखें तो पहले चरण में हजारों छात्र भाग ही नहीं ले सके। ओबीई के पहले चरण में नियमित के लगभग 4 फीसद छात्र एसओएल के 13 फीसद और दिव्यांग छात्रों के मामले में 23-24 फीसद तक कम थे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 16 Dec 2020 01:32 PM (IST)Updated: Wed, 16 Dec 2020 01:36 PM (IST)
DU Open Book Exams: आनलाइन परीक्षा में करियर न हो जाए आफलाइन
नियमित छात्रों की तुलना में एसओएल के छात्र ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हैं

संजीव कुमार मिश्र। 29 अप्रैल, 2020 को परीक्षा और अकादमिक सत्र को लेकर बने कुहाड़ कमिटी की संस्तुति के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक दिशानिर्देश जारी किया, जिसमें अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षा को अनिवार्य कर दिया गया। कहा गया कि परीक्षा आनलाइन या आफलाइन द्वारा ओपन बुक एग्जाम, एमसीक्यू आदि तरीके से ली जा सकती है। प्रथम दृष्टया ये लगता है कि विश्वविद्यालयों को कई सारे विकल्प दिए गए जिसमें से उन्हें एक चुनना है, पर अगर इसको हम लागू करने के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाएंगे कि अंतिम वर्ष की परीक्षा तो करवानी ही है, क्योंकि यूजीसी के दिशानिर्देश का पालन करना विश्वविद्यालयों के लिए आवश्यक है।

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परीक्षा के तरीकों को लेकर चयन तो हो सकता था, परंतु महामारी के अप्रत्याशित आगमन और आक्रामक संक्रमण ने ऐसी परिस्थिति में विकल्पों को बहुत ही सीमित कर दिया। परीक्षा कैसे हो इस पर विभिन्न राज्य सरकारों ने अपने हिसाब से फैसला लिया है। राजस्थान, पंजाब, ओडिशा, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में सरकारों ने अंतिम वर्ष की परीक्षा नहीं कराने का निर्णय लिया। साथ ही देश के अग्रणी संस्थाओं में शामिल आइआइटी ने भी अपने छात्रों की परीक्षा रद कर दी। पुराने सेमेस्टर और आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर डिग्री देने का निर्णय लिया। दूसरी तरफ दिल्ली सरकार के डीटीयू और आइआइटी ने भी अपने यहां छात्रों की आनलाइन परीक्षा ली। इसमें डीटीयू का परीक्षा परिणाम चौंकाने वाला था। डीटीयू में पिछले साल की तुलना में इस साल आउटस्टैंडिंग ग्रेड पाने वाले छात्रों की संख्या में चार गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ। इससे आनलाइन परीक्षा की विश्वसनीयता और शुचिता पर ही सवाल उठने लगा।

अलग-अलग माडल और चुनौतियां : डीयू सरीखे केंद्रीय विवि ने आनलाइन माध्यम से अंतिम वर्ष की परीक्षा का निर्णय लिया। अब तक दो ओपन बुक परीक्षा हो चुकी हैं। आनलाइन परीक्षा का छात्रों ने ही नहीं शिक्षकों ने भी विरोध किया था, क्योंकि यह छात्रों के साथ न्याय नहीं करती। एक छात्र जिसने पूरे साल मेहनत से पढ़ाई की और जब परीक्षा आयोजित हुई तो सभी छात्रों को किताब, कंप्यूटर से देखकर लिखने की आजादी दे दी गई। फिर परीक्षा के मायने ही क्या रह गए। परीक्षा के दौरान भी छात्रों को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा। छात्रों के व्यक्तिगत डाटा लीक हो गए, अपने विषय का प्रश्न पत्र नहीं मिला तो कहीं लिखे गए उत्तर अपलोड नहीं हो पा रहे थे। डिजिटल डिवाइड और जेंडर डिवाइड ने जरूरतमंद छात्रों की स्थिति को और भी विषम और जटिल बना दिया है। छात्रों ने अपनी शिकायतों को लेकर कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया।

दरअसल परीक्षा का मामला बहुत जटिल है। कई सारे माडल हैं और अलग अलग क्षेत्रों में कई तरह की चुनौतियां भी हैं। यही नहीं विश्वविद्यालय के अंदर भी कई तरह की चुनौतियां हैं। जैसे कि डीयू में जो नियमित छात्र हैं वो सेमेस्टर सिस्टम में हैं और उनका आंतरिक मूल्यांकन हो चुका है। परंतु जो पत्राचार के छात्र हैं वो अभी भी सालाना सत्र में हैं और उनका आंतरिक मूल्यांकन नहीं होता है। ऐसे छात्रों की संख्या डीयू में लाखों में है तो जो फार्मूला नियमित छात्रों पर लागू हो सकता है वो इन पर लागू नहीं किया जा सकता।

खामी की वजह से छात्रों ने किया किनारा : ओबीई पहला चरण छात्रों और शिक्षकों के कड़े प्रतिरोध के बावजूद और सांविधिक निकायों से बिना किसी अनुमोदन के आयोजित की गई थी। तीसरे चरण से पहले भी डीयू की कार्यकारी परिषद की बैठक में ओबीई का मसला उठा था। अंतिम वर्ष का परीक्षा परिणाम छात्रों के करियर के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। वहीं दूसरी तरफ डीयू के ही फैकल्टी आफ टेक्नोलाजी ने अपने तरीके से छात्रों का मूल्यांकन किया तो छात्रों की भागीदारी करीब शत प्रतिशत रही। यह पूरी प्रक्रिया अनिश्चितता को दर्शाती है। हरेक विवि की अपनी परिस्थितियां हैं। यह उनके वैधानिक संस्थानों जैसे कि एकेडेमिक काउंसिल और एग्जीक्यूटिव काउंसिल पर ही यह निर्णय छोड़ा जाना चाहिए कि कोविड महामारी की चुनौतियों का आकलन करते हुए छात्रों की परीक्षा पद्धति क्या हो। ये अकादमिक मसला है जिस पर उसमे शामिल लोग ही निर्णय लें तो बेहतर होगा।

[राजेश के झा सदस्य, डीयू कार्यकारी परिषद]

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