DU Admission: उच्चतम अंक और विश्वविद्यालयी शिक्षा में प्रवेश की चुनौतियां, जानें कैसे ज्यादा नंबर भी बन रहा परेशानी का कारण
DU Admission News सीबीएसई के सौ फीसद अंक प्राप्त करने वाले छात्रों के आवेदन में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। लेकिन ये छात्र दाखिले को लेकर इस कदर परेशान है इसका उदाहरण सीबीएसई आधारित एक सर्वे से होता है।
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले हो रहे हैं। सीबीएसई के सौ फीसद अंक प्राप्त करने वाले छात्रों के आवेदन में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। लेकिन ये छात्र दाखिले को लेकर इस कदर परेशान है इसका उदाहरण सीबीएसई आधारित एक सर्वे से होता है। जिसमें कहा गया है कि 95 फीसद अंक हासिल करने वाले छात्रों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें विश्वविद्यालय में सीमित सीटों के आवंटन के कारण दाखिले में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
इसके साथ ही 100 फीसद से कम अंक प्राप्त करने वाले किंतु मेरिट में अपना बेस्ट करने वाले छात्रों को भी सीधे प्रवेश में बाधा झेलनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में डीयू का सौ फीसद कटआफ एक चुनौती बन गया है। एक तरफ तो हम आशा करते है कि हमारे देश के छात्र अधिक से अधिक अंक हासिल करें, दूसरी तरफ अधिक अंक हासिल करना भी एक तकनीकी समस्या बन चुका है। पिछले कुछ सालों से यह ट्रेंड देखने में आया है कि प्राइवेट स्कूलों में 100 में से 100 अंक देने का प्रचलन लगातार बढ़ा है। एक तरह से यह निजी क्षेत्र के स्कूलों का आत्मिक विज्ञापन भी है। अब तो सीबीएसई जैसे बड़े बोर्ड भी अपने छात्रों को अधिकतम अंक प्रदान करने लगे हैं।
अभिभावकों के अनुसार विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए यह ठीक भी है। लेकिन मानविकी जैसे विषयों में जिसमें भाषा भी एक विषय तथा माध्यम दोनों होने के बावजूद अंकों इसमें बढ़ोत्तरी देखी गई है। विज्ञान और गणित जैसे विषयों में 100 में से 100 अंक प्राप्त करना शिक्षा के स्तर में वृद्धि तथा शिक्षा व्यवस्था में सुधार आदि कारणों के चलते बिलकुल उचित हो सकता है, किंतु इतिहास ,समाज विज्ञान तथा भाषा आदि विषयों में लगातार 100 में से 100 अंकों का ट्रेंड एक संशय जरूर उत्पन्न करता है।
नंबर तक तो ठीक है लेकिन 12वीं के बाद क्या? डीयू के कालेजों पर आवेदनों का बोझ बढ़ता जा रहा है। जिसका परिणाम यह निकला कि इस बार दस हजार से अधिक सौ फीसद अंक प्राप्त करने वाले छात्रों ने आवेदन किया। कालेजों ने कटआफ ऊंचा जारी कर दिया। लेकिन इस ऊंचे कटआफ का हल निकालने के लिए समस्या को अच्छी तरह समझना होगा।
हमारे देश में शिक्षा बोर्डों की भरमार है, लेकिन कोई एकीकृत प्रणाली नहीं हैं। मनमाने ढंग से बोर्ड लोकप्रियता हासिल करने के लिए नंबर देते हैं। इसलिए हमें विभिन्न बोर्डों में अपनाई गई अंक प्रणाली की संरचना की जांच करना आवश्यक है। हम सिर्फ इस आधार पर भी अपने छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने से नहीं रोक सकते कि हमारे पास उनको एडमिशन देने के लिए विश्वविद्यालय/कॉलेज नहीं है। यह कई तरीके से पूरी शिक्षा व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के मामले में हाल ही में प्रवेश प्रक्रिया को लेकर अनेक जटिलताएं सामने आई हैं। 97 और 98 फीसद अंक प्राप्त करने के बावजूद मनचाहा कालेज तथा विषय नहीं मिल पा रहे हैं और पहले ही कट आफ में सीटें भर जा रही है। यह एक बड़ी समस्या है जो छात्रों के भीतर अवसाद और कुंठा पैदा करने वाला है। कुछ विशेष बोर्डों में छात्रों के बेहतर प्रदर्शन के चलते अन्य बोर्डों के छात्र मनचाहे विषयों में दाखिला नहीं ले सकें हैं। इससे दिल्ली विश्वविद्यालय से निजी विश्वविद्यालयों की ओर छात्रों का पलायन हो सकता है।
आगे यह समस्या और विकराल होती जाएगी और होगा यह कि निजी विश्वविद्यालयों में भी वही छात्र दाखिला ले पाएंगे जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े किन्तु मेधावी छात्र सिर्फ एक, दो फीसद कम अंक प्राप्त करने के कारण वे छात्र वहां भी आर्थिक विपन्नता के कारण एडमिशन नहीं ले पाएंगे। इससे डिग्री के खरीद फरोख्त का भी चलन शुरू हो सकता है। डीयू में दाखिले के कुछ निर्धारित मापदंड है। मसलन, जब कटआफ जारी होता है तो निश्चित कटआफ के अंतर्गत जितने छात्र आते हैं, उन्हें हर हाल में दाखिला देना होता है। इससे कई बार दाखिले अधिक भी हो जाते थे। ऐसे में कालेज अब 100 फीसद कटआफ जारी कर रहे हैं ताकि सीमित संख्या में छात्र दाखिला ले सकें। इससे पता चलता है कि कालेज ने बिना विश्वविद्यालय के नियमों का पालन किए पहली ही कटआफ में प्रवेश बंद कर दिया और विश्वविद्यालयों के नियमों का कोई अंकुश यहां काम नहीं करता हुआ दिख रहा है।
यह इस बात की आशंका पैदा करता है कि यदि यह मनमानी कालेज करने लगेंगे तो अपने को स्व वित्त पोषित संस्थान घोषित ना कर दें। जिससे कि निजीकरण की राह आसान हो जाएगी तब मेरिट का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा और समान उच्च अंक प्राप्त करने वाले वही छात्र एडमिशन ले सकेंगे जो कॉलेज द्वारा निर्धारित शुल्क को पूरा करेंगे।
आर्थिक रूप से पिछड़े तथा सामाजिक रूप से पिछड़े दलित और अन्य वंचित समुदायों के छात्र मेधावी होने के बावजूद प्रवेश लेने से वंचित रहेंगे। इसमें दलित, पिछड़े और आदिवासियों के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण का सवाल ही नहीं उठता, सामाजिक न्याय दिलाने एवं गैर बराबरी को खत्म की व्यवस्था एक मजाक बनकर रह जाएगी। फिर इसका समाधान क्या है? प्रवेश परीक्षा बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। जेएनयू इसका अच्छा उदाहरण रहा है। जहां देशभर से मेधावी छात्रों को प्रवेश परीक्षा के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। जेएनयू ने देश के दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों को चिन्हित करते हुए एक क्वारटाइल के अंतर्गत शामिल करके अंक प्रदान करते हुए सामाजिक न्याय को सुचारु रूप से लागू किया है। यही कारण है कि अन्य विश्वविद्यालयों की अपेक्षा जेएनयू ने देश को एक से बढ़कर एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी दिए हैं। जेएनयू की इस परीक्षा प्रणाली को प्रवेश प्रक्रिया के लिए अपनाना चाहिए ताकि समाज के सभी वर्गों के छात्रों के साथ न्याय हो और ऊंचे कटआफ से छात्रों को छुटकारा मिले।
आलेख डॉ. हंसराज सुमन एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय