बिना आधार व नोटिस के तलाक दिए जाने पर महिला ने खटखटाया कोर्ट का दरवाजा, केंद्र सरकार को भेजा नोटिस
याचिकाकर्ता महिला ने कहा है कि यह प्रथा मनमानी शरिया विरोधी असंवैधानिक स्वेच्छाचारी और बर्बर है। इसलिए पति के किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को मनमाना कदम घोषित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि तीन तलाक की प्रथा अवैध और असंवैधानिक है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। शरिया कानून के तहत बिना आधार व नोटिस के तलाक दिए जाने के प्रविधान को चुनौती देते हुए एक मुस्लिम महिला ने एक बार फिर दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई 12 मई को होगी। इससे पहले पीठ ने 27 सितंबर को इस तरह की मांग को ठुकराते हुए कहा था कि इससे संबंधित कानून संसद में पहले ही पारित हो चुका है। ऐसे में याचिका पर सुनवाई की जरूरत नहीं है।
अधिवक्ता बजरंग वत्स के माध्यम से याचिका दायर कर बिना नोटिस के अपनी पत्नी को किसी भी समय व बिना आधार के तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के पुरुषों के एकतरफा अधिकार को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता महिला ने कहा है कि यह प्रथा मनमानी, शरिया विरोधी, असंवैधानिक, स्वेच्छाचारी और बर्बर है। इसलिए पति के किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को मनमाना कदम घोषित किया जाए।
महिला ने याचिका में दलील दी है कि मुस्लिम पति द्वारा किसी भी समय अपनी पत्नी को बिना कारण व पहले से नोटिस दिए बगैर तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) दिया जाना शरिया कानून के साथ-साथ संविधान और सुप्रीम कोर्ट के अगस्त-2017 में पारित फैसले के खिलाफ है। इसे निरस्त किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि तीन तलाक की प्रथा अवैध और असंवैधानिक है।
याचिकाकर्ता महिला को आशंका है कि उसका पति तलाक-उल-सुन्नत का सहारा लेकर उसे तलाक दे देगा। अदालत के विचार से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019 और विशेष रूप से उसकी धारा-तीन के तहत यह पूरी तरह से गलत है। धारा-तीन के अनुसार कोई मुस्लिम पति लिखित, मौखिक, इलेक्ट्रानिक या किसी अन्य माध्यम से पत्नी को तलाक देता है तो यह अवैध है।