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Delhi News: जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का अहम फैसला, मृत घोषित होने में देरी पर बीमा लाभ से नहीं कर सकते वंचित

Delhi News साथ ही आरोप लगाया था कि वह कोर्ट के आदेश बीमा पालिसी के कागज किश्त भुगतान की रसीदें और क्लेम आवेदन लेकर एलआइसी के शाहदरा कार्यालय गई थीं। वहां उनके आवेदन को नहीं लिया गया था। इस पर उनको लीगल नोटिस भी भेजा था।

By Pradeep ChauhanEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 05:17 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 05:17 PM (IST)
Delhi News: जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का अहम फैसला, मृत घोषित होने में देरी पर बीमा लाभ से नहीं कर सकते वंचित
Delhi News: मृत घोषित होने की तिथि पर पालिसी वैध नहीं थी।

नई दिल्ली [आशीष गुप्ता]। लापता होने के वर्षो बाद व्यक्ति के मृत घोषित होने पर बीमा कंपनियां किश्त रुकने का आधार बनाकर नामिनी को पालिसी का लाभ देने से वंचित नहीं रख सकतीं। ऐसा ही राहत भरा निर्णय उत्तर पूर्वी जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने सुनाया है।

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आयोग ने लापता होने के ग्यारह वर्ष बाद एक ट्रक चालक को मृत घोषित किए जाने पर हुए बीमा विवाद में भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) को आदेश दिया है कि वह मृतक की पत्नी को दो लाख रुपये (बोनस व अन्य लाभ सहित) छह प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करे। साथ ही मानसिक उत्पीड़न के लिए दस हजार रुपये और कानूनी खर्च के लिए दस हजार रुपये भी छह प्रतिशत ब्याज सहित दे।

आयोग ने एलआइसी की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें मृत घोषित होने से पहले किश्त रुकने पर पालिसी अवैध होने की बात कही थी। गाजियाबाद शिब्बनपुरा निवासी परमजीत कौर के पति जगतार सिंह ट्रक चालक थे। वह 23 मार्च 2006 को साहिबाबाद से गुवाहाटी गए थे। वह 15 अप्रैल 2006 तक वापस नहीं आए तो परमजीत कौर ने गाजियाबाद के सिहानी गेट थाने में पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

फिर 15 अप्रैल 2007 को उन्होंने इसी थाने में दूसरी शिकायत दर्ज कराई, जिसमें क्लीनर शंभु कुशवाह और उसके सहयोगी हरिओम कुशवाह के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था। इस केस में आरोपित शंभु कुशवाह को वर्ष 2010 में गाजियाबाद की जिला अदालत ने दस साल कैद की सजा सुनाई थी। दिसंबर 2017 में कोर्ट ने ट्रक चालक जगतार सिंह को मृत घोषित किया था।

इस आधार पर जनवरी 2018 में उनका मृत्यु प्रमाणपत्र गाजियाबाद नगर निगम से जारी हुआ था। परमजीत कौर ने नामिनी होने के नाते फरवरी 2018 में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत दायर कर बताया था कि उनके पति ने जुलाई 2002 में एलआइसी से एक लाख रुपये राशि की बीमा पालिसी ली थी। साथ ही आरोप लगाया था कि वह कोर्ट के आदेश, बीमा पालिसी के कागज, किश्त भुगतान की रसीदें और क्लेम आवेदन लेकर एलआइसी के शाहदरा कार्यालय गई थीं। वहां उनके आवेदन को नहीं लिया गया था। इस पर उनको लीगल नोटिस भी भेजा था।

एलआइसी ने आयोग में पक्ष रखा कि उन्हें इस पालिसी के भुगतान के संबंध में कोई कागज नहीं दिए गए। न ही लीगल नोटिस प्राप्त हुआ। साथ ही कहा कि जगतार सिंह की बीमा पालिसी की किश्त का जुलाई 2006 से भुगतान नहीं हुआ, जबकि उन्हें वर्ष 2017 में मृत घोषित किया गया।

मृत घोषित होने की तिथि पर पालिसी वैध नहीं थी। आयोग ने माना कि जगतार मार्च 2006 में लापता हुए और उसके बाद उन्हें नहीं देखा गया। इसे देखते हुए आयोग ने एलआइसी की दलीलों को खारिज कर परमजीत कौर के पक्ष में निर्णय सुनाया।


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