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Delhi Violence: स्थिति का सही आकलन नहीं कर सके पुलिस अधिकारी, सबक लेने की दरकार

Delhi Violence हिंसा में दर्जनों लोगों की मौत के साथ ही करोड़ों की संपत्ति व माल का नुकसान हुआ दंगा होने के बाद इससे निबटने के लिए तैयारियों का भी पूरी तरह अभाव दिखा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2020 03:10 PM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2020 03:10 PM (IST)
Delhi Violence: स्थिति का सही आकलन नहीं कर सके पुलिस अधिकारी, सबक लेने की दरकार
Delhi Violence: स्थिति का सही आकलन नहीं कर सके पुलिस अधिकारी, सबक लेने की दरकार

संतोष शर्मा। Delhi Violence: जहां तक हिंसा भड़कने की बात है तो इस मामले में स्थानीय अधिकारी मामले में स्थिति का सही आकलन करने में असफल रहे। वहीं, शीर्ष नेतृत्व पर भी त्वरित और उचित निर्णय नहीं लिए गए। जिससे इतने बड़े स्तर पर हिंसा हुई और स्थिति विस्फोटक बन गई। दरअसल इस तरह की घटना में इलाके की स्थिति का आकलन बेहद महत्वपूर्ण होता है। हिंसा भड़कने पर यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि स्थानीय अधिकारियों को इलाके के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी।

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जबकि स्थानीय स्तर पर तैनात अधिकारी से अपेक्षा की जाती है उन्हें इलाके में कितने घर हैं, वहां की जनसंख्या कितनी है, किस-किस समुदाय के लोग वहां रहते हैं इत्यादि की पूरी जानकारी होगी। लेकिन शुरुआत में पुलिस ज्यादा कुछ नहीं कर सकी। वहीं, दंगा होने के बाद इससे निबटने के लिए तैयारियों का भी पूरी तरह अभाव दिखा।

पर्याप्त संख्या में हथियार तक नहीं: घटना के वक्त पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों के पास ना तो पर्याप्त संख्या में हथियार और अन्य उपकरण थे और ना ही उन्होंने हेलमेट इत्यादि लगा रखे थे। जिसकी कारण पत्थरबाजी से कई अधिकारी और पुलिसकर्मी घायल हो गए। जबकि प्रशिक्षण के दौरान ही प्रत्येक पुलिस अधिकारी और कर्मी को सिखाया जाता है कि इस तरह की परिस्थिति से निबटने के लिए क्या-क्या प्रयास करने चाहिए। इस घटना में दिल्ली पुलिस पेशेवर नहीं दिखी। शुरुआत में तो कार्रवाई में देरी हुई ही समय रहते अतिरिक्त पुलिसबल की मदद भी नहीं ली गई। जिससे स्थिति और बिगड़ती चली गई। योजना के अभाव में पुलिस फुलप्रूफ एक्शन नहीं ले सकी। यह पुलिस की बहुत बड़ी चूक है।

जनप्रतिनिधि और धर्म गुरु करें शांति की अपील: अब घटना के कई दिन बीत जाने के बाद लोगों में कानून-व्यवस्था के प्रति विश्वास पैदा करना पुलिस के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। घटना के आरोपितों के खिलाफ मुकदमा और उनकी गिरफ्तारी तो की जानी चाहिए। इसके साथ ही वह तमाम प्रयास पुलिस को करने होंगे जिससे लोगों में दोबारा से पुलिस और कानून पर भरोसा जगे। इसके लिए पुलिस को सुरक्षात्मक कार्रवाई के साथ ही विश्वास हासिल करने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि, धर्म गुरु और गैर सरकारी संगठनों की भी मदद लेनी होगी। स्थानीय लोगों को समझाना होगा कि दंगा और तनाव की स्थिति से किसी का भी भला नहीं होने वाला है। जो हो गया उसे भूल कर दोबारा से इलाके में शांति बहाली का प्रयास होना चाहिए।

सबक लेने की दरकार: इसके साथ ही पुलिस को दंगा ग्रस्त इलाके में पुलिस की तैनाती लंबे समय तक रखनी होगी। इस दौरान यह ध्यान देना होगा कि आपराधिक तत्व दोबारा से सक्रिय ना हो सकें। ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर उन्हें पुलिस की सख्ती का संदेश दिया जाना चाहिए। अफवाह पर लगाम लगाने के लिए भी पुलिस को विशेष रणनीति बनानी होगी ताकि उत्तरी पूर्वी जिले में जनजीवन दोबारा से तेजी से सामान्य हो सके। सबसे पड़ा सबक पुलिस इस मामले में हुई खामियों पर ले सकती है।

निर्णय लेने में हुई देरी: पुलिस को इन मामले में शुरू से ही सर्तक रहना चाहिए था। जब शाहीनबाग इलाके में रोड बंद कर प्रदर्शन शुरू हुआ था। पुलिस को उसी वक्त प्रदर्शनकारियों को सड़क से हटा देना चाहिए था। ऐसा न करने से यातायात व्यवस्था खराब होने के साथ ही कानून-व्यवस्था की स्थिति भी खराब हुई। वहीं दो समुदाय के बीच तनाव बढ़ा। पुलिस ने मामले में निर्णय लेने में देरी की।

[अशोक चांद पूर्व एडिशनल पुलिस कमिश्नर]


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