Delhi Riots: निर्दोष होने की धारणा को मीडिया ट्रायल से समाप्त नहीं करना चाहिए: कोर्ट
मुख्य महानगर दंडाधिकारी दिनेश कुमार ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में मीडिया को चौथा स्तंभ बताया गया है। अगर मीडिया अपने काम को सावधानी से करने नहीं कर पाए तो तो पूर्वाग्रह का खतरा पैदा हो जाता है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली दंगे के आरोपित जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए कड़कड़डूमा कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत में निर्दोष होने की धारणा को मीडिया ट्रायल से समाप्त नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि उसे उम्मीद है कि जिस मामले में जांच व सुनवाई चल रही है, उसमें रिपोर्टिंग करते वक्त मीडिया स्वयं द्वारा तय नियमों का अनुसरण करेगा।
उमर खालिद ने कुछ दिन पहले कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि दंगे के मामले में उसके खिलाफ मीडिया द्वेषपूर्ण अभियान चला रही है।
इस मामले में शुक्रवार को सुनवाई करते हुए मुख्य महानगर दंडाधिकारी दिनेश कुमार ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में मीडिया को चौथा स्तंभ बताया गया है। अगर मीडिया अपने काम को सावधानी से करने नहीं कर पाए तो तो पूर्वाग्रह का खतरा पैदा हो जाता है। इसी तरह का खतरा मीडिया ट्रायल है। कोर्ट ने कहा कि एक समाचार में दिल्ली दंगे को पूरी तरह हिंदू विरोधी दंगे के तौर पर पेश किया गया, जबकि सभी समुदायों ने इसके दुष्परिणामों को महसूस किया।
देवांगना ने मांगी वकील को नोट्स भेजने की इजाजत
दिल्ली दंगे के मामले में आरोपित पिंजरा तोड़ संगठन की सदस्य देवांगना कलीता ने कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की कोर्ट में अर्जी दायर कर अपने वकील को नोट्स सील कवर में डाक के जरिये भेजने की इजाजत मांगी है। तिहाड़ जेल अधीक्षक ने कहा कि जेल नियमावली के तहत वकील को भेजने से पहली संबंधित अधिकारी नोट्स को मंजूरी देंगे। इस पर देवांगना के वकील ने कहा कि उन्हें जेल के नियम अच्छी तरह मालूम हैं।
नोट्स अपने बचाव से जुड़े हैं, ऐसे में जेल प्रशासन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इस पर जेल प्रशासन ने पक्ष रखा कि ऐसा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। क्योंकि इसमें आरोपित द्वारा स्वजन को कोई निजी संदेश भेजने का खतरा है। कोर्ट ने इस मामले में कोर्ट ने शनिवार को जेल अधीक्षक को विधिक अधिकारी समेत सुनवाई में हाजिर होने का आदेश दिया है।
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