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दिल्ली दंगा: शाहरुख पठान की जमानत याचिका पर कोर्ट ने भेजा नोटिस, पुलिसकर्मी पर तानी थी पिस्टल

दिल्ली हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को शाहरुख पठान द्वारा दायर जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया है। शाहरुख ने दिल्ली दंगों के दौरान पिस्टल तान दी थी। जबकि दंगे से सबंधित एक मामले में पुलिसकर्मियों को चोटें आई थी। दंगे में एक पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल भी हो गया था।

By Pradeep ChauhanEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 01:32 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 01:38 PM (IST)
दिल्ली दंगा:  शाहरुख पठान की जमानत याचिका पर कोर्ट ने भेजा नोटिस, पुलिसकर्मी पर तानी थी पिस्टल
दंगे में एक पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल भी हो गया था।

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। दिल्ली हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को शाहरुख पठान द्वारा दायर जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया है। आरोपित शाहरुख ने दिल्ली दंगों के दौरान पिस्टल तान दी थी। जबकि दंगे से सबंधित एक मामले में पुलिसकर्मियों को चोटें आई थी। दंगे में एक पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल भी हो गया था। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने चार सप्ताह की अवधि के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए आदेशित किया है।

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वहीं, वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि अधीनस्थ न्यायालयों की अवमानना के लिए नोटिस जारी करने की शक्ति केवल हाई कोर्ट के पास है और वही इस पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करती है। न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कहा कि अधीनस्थ न्यायालय क्षेत्रधिकार ग्रहण नहीं कर सकते हैं और न ही अवमानना कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की गई इस संबंध में कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं। एक अधीनस्थ अदालत केवल अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए हाई कोर्ट का संदर्भ दे सकती है।

वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर हाई कोर्ट विचार कर रहा था। इसमें प्रतिवादी को वाट्सएप के माध्यम से समन की तस्वीर भेजने पर न्यायालय ने आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड को नोटिस जारी करने का निर्देश देते हुए पूछा था कि क्यों न आपराधिक अवमानना की प्रक्रिया शुरू की जाए।

पीठ ने माना कि वादी ने प्रक्रिया शुल्क दिया था और सामान्य प्रक्रिया के साथ-साथ स्पीड पोस्ट के माध्यम से प्रतिवादी को नियमित समन जारी करने के लिए कदम उठाए थे।

समन की तस्वीर केवल वाट्सएप के माध्यम से एक अतिरिक्त उपाय के रूप में भेजी गई थी ताकि प्रतिवादी को वाणिज्यिक न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सके। इस प्रकार इसमें कुछ भी दुर्भावनापूर्ण नहीं है और यह नहीं कहा जा सकता है कि यह न्यायिक कार्यवाही को खत्म करने का प्रयास था। पीठ ने कहा कि अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा-10 और 15 के मद्देनजर केवल उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ न्यायालयों की अवमानना के संबंध में संज्ञान लेने की शक्ति है।


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