निर्माण स्थलों पर धूल उड़ने से रोकने के लिए दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने दी सलाह, आप भी जानें
शहरी क्षेत्रों के लिए अनुकूलित एंटी-स्माग गन आमतौर पर प्रति मिनट 40 से 250 लीटर पानी का उपयोग करती है। यह मात्रा उनके प्रकार और विशेषताओं के आधार पर भिन्न हो सकती है। स्माग गन में उपयोग किया जाने वाला पानी कोलीफार्म वायरस और बैक्टीरिया से मुक्त होना चाहिए।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने निर्माण स्थलों पर धूल उड़ने से रोकने के लिए एंटी-स्माग गन में उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग नहीं करने की सलाह दी है। साथ ही 20 हजार वर्ग मीटर से कम के निर्माण और विध्वंस स्थलों पर कम से कम एक एंटी-स्माग गन जबकि 20 से 40 हजार वर्गमीटर के बीच की साइटों पर दो एंटी स्माग गन तैनात करने के लिए भी कहा है। यही नहीं 40 हजार से ऊपर तीन और 60 हजार वर्गमीटर से ऊपर चार स्माग गन तैनात करने के लिए कहा गया है। इससे कार्य-क्षेत्र में धूल कणों को दबाने में मदद मिलती है।
शहरी क्षेत्रों के लिए अनुकूलित एंटी-स्माग गन आमतौर पर प्रति मिनट 40 से 250 लीटर पानी का उपयोग करती है। यह मात्रा उनके प्रकार और विशेषताओं के आधार पर भिन्न हो सकती है। दिशा निर्देशों के अनुसार, स्माग गन में उपयोग किया जाने वाला पानी कोलीफार्म, वायरस और बैक्टीरिया से मुक्त होना चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो पानी कीटाणु रहित भी किया जाए। उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग उन निर्माण स्थलों पर नहीं किया जा सकता है, जहां श्रमिक काम कर रहे होते हैं।
उधर एक खबर ये भी है कि देश के पहले रीजनल रेल कारिडोर के निर्माण में कुछ क्षेत्रों में जहां दो पिलरों के बीच में नियत दूरी को बनाए रखना संभव नहीं है, वहां एनसीआर परिवहन निगम विशेष स्पैन की मदद लेगा। नदियों, पुलों, रेलवे क्रासिंग, मेट्रो लाइन, एक्सप्रेस-वे को पार करने वाली जगहों पर निगम ने विशेष स्पैन का निर्माण शुरू कर दिया है। इसके अलावा भीड़भाड़ वाले इलाकों में भी पिलरों को जोड़ने के लिए इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। इनकी संरचना विशाल होती हैं जिनमें स्टील से बने बीम होते हैं। इनका निर्माण पहले ही एक फैक्टरी में कर लिया जाता है।
भीड़भाड़ वाली जगह को ध्यान में रखते हुए रात में ट्रेलरों द्वारा साइट पर स्पैन लाया जाता है और विशेष क्रेन की मदद से लगा दिया जाता है। यह कारिडोर दिल्ली को गाजियाबाद, मुराद नगर, मोदी नगर और मेरठ के रीजनल नोड्स से जोड़ता है। इस 82 किमी लंबे कारिडोर में कुल 70 किमी का भाग एलिवेटेड है और 12 किमी भूमिगत है। अधिकांश एलिवेटेड हिस्सा घनी आबादी वाले क्षेत्रों के बीच से होकर गुजर रहा है।
दूसरी ओर नई दिल्ली स्थित चिड़ियाघर में अब बड़ी संख्या में हिमाचल प्रदेश के कूफरी से रंग-बिरंगे दिखने वाले पेंटेड स्टार्क पहुंच गए हैं। बेहद खूबसूरत दिखने वाले पेंटेड स्टार्क चिडि़याघर में आने वाले पर्यटकों को खूब लुभा रहे हैं। शेर, हाथी और बाघ की तरह ही बड़ी संख्या में लोग पेंटेड स्टार्क को देखने के लिए खड़े हो रहे हैं, लोग मोबाइल से उनका फोटो व सेल्फी ले रहे हैं।चिडि़याघर के अधिकारियों का कहना है कि सितंबर की शुरुआत से ही रंग-बिरंगे दिखने वाले इन पक्षियों का आना शुरू हो गया था, लेकिन शुरुआत में इनकी संख्या बहुत कम थी।
हर साल अगस्त के अंत तक बड़ी संख्या में ये पक्षी पहाड़ी इलाकों से दिल्ली प्रजनन के लिए आते हैं, लेकिन इस वर्ष ऐसा नहीं हुआ, बल्कि अब सितंबर के अंत में ये चिडि़याघर आए हैं। चिडि़याघर के मेहमान के रूप में आए इन पक्षियों की चिडि़याघर प्रबंधन भी जमकर खातिरदारी कर रहा है। उनके खानपान का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। तालाब में मछलियां डाली जा रही हैं। पक्षियों के आने से पहले ही पेड़ों की कटाई छटाई की जाती है, जिससे उन्हें बैठने और घोंसला बनाने में दिक्कत न हो। इसके साथ ही तालाब के आसपास गार्ड की भी तैनाती की गई है, जो पर्यटकों पर नजर रख रहे हैं।