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Delhi Farmer Protest Violence: उपद्रवियों के खिलाफ दिल्ली पुलिस के धैर्य और साहस को सलाम

Delhi Farmer Protest Violence देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी को किसान के वेश में उपद्रवियों की भीड़ ने व्यापक उत्पात मचाया लेकिन विपरीत अवस्था में भी दिल्ली पुलिस ने बहुत ही धैर्य और साहस का परिचय दिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 29 Jan 2021 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 29 Jan 2021 12:16 PM (IST)
Delhi Farmer Protest Violence: उपद्रवियों के खिलाफ दिल्ली पुलिस के धैर्य और साहस को सलाम
उपद्रवियों के खिलाफ धैर्य और साहस का परिचय देते दिल्ली पुलिस के जवान। फाइल

मनु त्यागी। Delhi Farmer Protest Violence जज्बे को सलाम। संयम को सलाम। राष्ट्र के प्रति समर्पण को सलाम। उन घायल 394 पुलिस के जवानों को कोटि कोटि प्रणाम, जिन्होंने राष्ट्र के मान और किसान के सम्मान को आत्मरक्षा से ऊपर रखा। राष्ट्र के समक्ष एक अनूठी मिसाल पेश की। अभी चंद दिनों पहले की ही बात है जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली पुलिसकíमयों को संबोधित करते हुए कहा था कि आप सब ऐसा कार्य करें कि पुलिस विभाग सेवा संगठन बनकर उभरे। अब इससे बड़ी देश सेवा, समाज सेवा की मिसाल भला और क्या होगी कि तलवार, बंदूक, लाठी सब उनके सीने पर थी, फिर भी वर्दी चुप थी। संयम के साथ शांति का संदेश दे रही थी।

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किसानों का चोला पहने घूम रहे उपद्रवी पुलिसकर्मियों पर लाठी चला रहे थे। लाठी-डंडों से खाकी को ललकार रहे थे। ईंट-पत्थर चलाकर अपने उपद्रवी होने के सुबूत दे रहे थे। देश के लिए अन्न उगाने को जमीन तैयार करने वाले ट्रैक्टर जवानों को रौंदने पर उतारू थे। सड़कों पर स्टंट कर रहे थे। लेकिन वर्दी खामोश थी, राष्ट्र के मान में इस उपद्रव के घूंट पी रही थी। वर्दी ने तो यहां तक याद दिलाया मत भूलो भारत की माटी के अभिमान को, उसके दो ही तो बेटे, एक जवान और दूजा किसान।

तभी तो कहलाया जय जवान, जय किसान। इन्हीं से ही तो भारत माता और माटी पुष्पित पल्लवित है। जिस तरह जवान देश की सीमाओं पर डटकर खड़े हो जाते हैं, पहले हमसे टकराना पर तुम्हें देश की चौखट में नहीं घुसने देंगे, देश की आन पर आंच नहीं आने देते। कुछ इसी तरह पुलिस वाले किसानों के वेश में छिपे उपद्रवियों से जय जवान जय किसान के नारे को बुलंद करते हुए कहते हैं, अगर तुम्हें ये भी नहीं याद रहा तो फिर हमारे ऊपर से ही गुजर कर जाना होगा। वर्दी अपने संयम और समर्पण की इससे अभूतपूर्व क्या नजीर पेश करती।

लाठी डंडे ङोलने वाला जवान भी तो किसान का बेटा है, वो भला किसान पर कैसे आक्रामक होता। उसने तो उन असामाजिक तत्वों में भी अपने किसान भाई, चाचा, ताऊ को देखा, उन अपनों को देखा जिन्हें वो घर छोड़कर यहां फर्ज निभा रहा है, तभी उनके आगे शांति-संयम बनाए रखने के लिए हाथ जोड़कर बार-बार विनती करता रहा।

यदि वे सचमुच किसान होते तो उनके कानों तक वो गूंज पहुंचती भी, जवानों का लहू बहते दिखता भी। लाल किला पर रैलिंग के नीचे दबी महिला पुलिसकíमयों पर उनके डंडे नहीं चलते। पुलिसकमियों को ऊंची दीवारों से धकेला नहीं जाता। वे केवल और केवल उपद्रवी थे। ऐसे उपद्रवी जिनकी मंशा केवल देश-जवान और किसान, हर किसी को कलंकित करने की थी। हिंसा की चिंगारी में देश के गौरव को स्वाहा करने की धारणा थी। देश का सिर गणतंत्र दिवस के दिन वैश्विक पटल पर नीचा दिखाने की थी। इन उपद्रवियों से कोई पूछे कि देश के सम्मान को नीचा करके वो ऊंचा रह सकते हैं क्या? वर्दी का अपमान कर इस समाज में स्वयं को महफूज रख सकते हैं क्या?

इस उपद्रव में करीब 394 पुलिसकर्मी घायल हुए। बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी अस्पतालों में दाखिल हैं। किसी का सिर फटा है, किसी का पैर टूटा है, किसी का हाथ, पीठ टूटी है, तो किसी के चेहरे का हुलिया बिगड़ गया है। उनके स्वजन पर क्या बीत रही होगी। हम सबको यह समझना चाहिए कि इस खाकी के बूते ही तो हर दिन आप और हम घरों में महफूज महसूस करते हैं। जरा भी कुछ असुरक्षित जैसा महसूस होता है या कोई घटना होती है तो सबसे पहले 100 नंबर पुलिस का ही तो डायल होता है। 24 घंटे, 365 दिन की ड्यूटी पर वे डटे रहते हैं। इनके स्वजन पीड़ा में देख दुखी तो हैं, पर गौरवान्वित भी हैं कि उपद्रवियों के आगे राष्ट्र सवरेपरि की मिसाल प्रस्तत की। उपद्रवी तो यही चाहते थे कि पुलिस डंडा उठाए, गोली चलाए, खून खराबा हो। उपद्रवी रह-रह कर हुंकार भरते थे, ताकि पुलिस आवेग में आए और वे उसका लाभ उठा तांडव मचाएं। लेकिन पुलिस ने ऐसा होने नहीं दिया।

जब उपद्रवियों के मंसूबे सफल नहीं हुए तो लाल किला परिसर में जहां स्वतंत्रता दिवस के दिन राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है, उसी जगह पर जाकर एक अलग ही झंडा फहरा दिया। वे इतने पर ही नहीं थमे, देश की ऐतिहासिक धरोहर में उत्पात मचाकर, गणतंत्र दिवस की झांकियों में तोड़फोड़ कर डाली। इतिहास को अपनी कुंठित मंशाओं से छलनी किया। एक किसान ऐसा नहीं कर सकता। वह अपनी बात रख सकता है, जरूरतों को अभिव्यक्त कर सकता है।

अन्न से देश सेवा कर सकता है, लेकिन देश, माटी और जवान का निरादर कभी नहीं कर सकता। देश, जवान और किसान तीनों का ही निरादर करने वाले इन उपद्रवियों को दोबारा मौका बिल्कुल नहीं मिलना चाहिए। आंदोलन-प्रदर्शन की आड़ में ये बार-बार देश में दंगों की आग को सुलगाने की कोशिश करते रहे हैं। उससे सतर्क होकर आगे की दिशा में सख्त कार्रवाई का संदेश भी इसी खाकी को देना होगा। हमने अक्सर पुलिस को कठघरे में ही खड़ा किया है। अक्सर लोग इस तरह की टिप्पणियां भी करते पाए जाते हैं कि अपने ऊपर आने पर पुलिस संयम और धैर्य सब खो देती है, लेकिन इस घटना ने पुलिस की भूमिका के बारे में हमें नए सिरे से सोचने पर विवश किया है।

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