जानिये- क्यों दिल्ली, वेस्ट यूपी और हरियाणा में रहने वालों के लिए ओमिक्रोन साबित हो सकता है बड़ा खतरा
Delhi Omicron News ओमिक्रोन वायरस की चपेट में आने पर दिल्ली एनसीआर के मरीज अधिक परेशान होंगे क्योंक एयर इंडेक्स 300 या 400 से ऊपर ही बना रहा तो मरीज के स्वस्थ होने में कहीं ज्यादा समय लगना तय है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली एनसीआर की खराब वायु गुणवत्ता, ओमिक्रोन वैरिएंट को और अधिक घातक बना सकती है। पर्यावरण विशेषज्ञ भी इस सच्चाई से इनकार नहीं करते। उनका साफ कहना है कि अगर आने वाले दिनों में भी हवा की गुणवत्ता ऐसी ही बनी रही तो ओमिक्रोन न केवल तेजी से पांव पसारेगा, बल्कि इससे संक्रमित लोगों की सेहत में सुधार होने में भी कहीं अधिक समय लगेगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) को लेकर गठित उप समिति के सदस्य डा. टी के जोशी कहते हैं, हालांकि कोविड-19 और डेल्टा के बनिस्पत ओमिक्रोन के लक्षण कुछ अलग सामने आ रहे हैं। पहला वैरिएंट जहां गले पर वार कर रहा था वहीं दूसरा फेफड़ों पर प्रहार कर रहा था। इससे इतर ओमिक्रोन शरीर में थकान, सिर दर्द और बुखार के लक्षण दिखा रहा है। इस दृष्टि से वायु प्रदूषण के साथ इसका सीधा संबंध नजर नहीं आ रहा, लेकिन रिकवरी की गति को तो प्रभावित कर ही सकता है।
डा. टीके जोशी बताते हैं कि वायु प्रदूषण फेफड़ों पर असर डालता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है, जबकि ओमिक्रोन के संक्रमण से उबरने के लिए भी अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता चाहिए। ऐसे में अगर दिल्ली एनसीआर का एयर इंडेक्स 300 या 400 से ऊपर ही बना रहा तो मरीज के स्वस्थ होने में कहीं ज्यादा समय लगना तय है।
क्या है प्रदूषण और कोरोना संक्रमण का संबंध
अत्यंत महीन प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 के सुक्ष्म कण कोरोना संक्रमण के दौरान फेफड़ों पर अत्यंत गंभीर प्रभाव डालते हैं। यह तथ्य भुवनेश्वर के उत्कल विवि, पुणो स्थित इंस्टीटयूट आफ ट्रापिकल मेट्रोलाजी, नेशनल इंस्टीटयूट आफ टेक्नोलॉजी राउरकेला व आइआइटी भुवनेश्वर के विज्ञानियों द्वारा कोरोना और वायु प्रदूषण के संबंधों को लेकर किए गए एक संयुक्त अध्ययन में भी साबित हो चुका है। ’भारत में सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम 2.5) क्षेत्रों और कोविड-19 के बीच एक लिंक की स्थापना’ शीर्षक से अध्ययन में बताया गया है कि अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग कोरोना संक्रमण के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील होते हैं।