Move to Jagran APP

युवाओं के प्रयास से निखर गई जोहड़ की सूरत, जमा होने लगा बारिश का पानी

जोहड़ में बारिश का पानी संग्रह होने लगा है। उन्होंने जोहड़ परिसर में 50 से अधिक स्थानीय प्रजाति के पौधे लगाए। युवाओं की इस मुहिम को इलाके के बुजुर्ग महिलाओं ने भी पूरा समर्थन किया। अब इसकी तारीफ हो रही है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 04:15 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 08:30 PM (IST)
युवाओं के प्रयास से निखर गई जोहड़ की सूरत, जमा होने लगा बारिश का पानी
नरेला के जोहड़ का ग्रामीणों ने किया जीर्णोद्धार।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। नरेला इलाके में लगातार गिरते भूजल स्तर को लेकर चिंतित युवाओं ने प्राचीन पतौड़ी जोहड़ का कायाकल्प कर दिया। उन्होंने महीनों तक मुहिम चलाकर जोहड़ की सफाई कर भारी मात्र में मलबा, खरपतवार, प्लास्टिक और जैविक कचरे को हटाने का काम पूरा किया और जोहड़ के प्राचीन स्वरूप को वापस लाने में कामयाबी पायी। नतीजतन, अब जोहड़ में बारिश का पानी संग्रह होने लगा है। उन्होंने जोहड़ परिसर में 50 से अधिक स्थानीय प्रजाति के पौधे लगाए। युवाओं की इस मुहिम को इलाके के बुजुर्ग, महिलाओं ने भी पूरा समर्थन किया।

loksabha election banner

कभी पानी से लबालब भरा रहता था जोहड़

मुहिम में शामिल राजेंद्र सैनी, राजेंद्र सैनी, राजे सिंह, राज सिंह, पवन, अश्वनी, घनश्याम, गौरव, सुंदर, कुलदीप अजीत आदि ने बताया कि रामदेव चौक स्थित पतौड़ी जोहड़ 13 बीघे में फैला है। वर्षो पूर्व इस जोहड़ में बारिश का पानी जमा होता था। साल भर लबालब पानी भरे रहने वाले इस जोहड़ में कछुए जैसे कई जलीय जीव पाए जाते थे। जोहड़ के किनारे तीन कुएं थे, जिससे गांव वाले पीने का पानी भरते थे। इनका अब वजूद मिट चुका है। 25 साल पहले गांव का गंदा पानी जोहड़ में डालना शुरू किया गया, जिससे यह प्रदूषित हो गया।

नरेला के युवाओं ने प्राचीन जोहड़ का किया कायाकल्प

सुंदरीकरण के नाम पर डीडीए ने कुछ साल पूर्व जोहड़ के आसपास पत्थर लगाए थे और जोहड़ के बड़े हिस्से में पार्क बनाने की योजना बनाई, लेकिन पार्क की जमीन को निर्माण सामग्री के मलबे से भर दिया गया। स्थानीय नागरिक भीम सिंह रावत ने बताया कि उन्होंने दिल्ली स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी व डीडीए को पत्र लिखा है, ताकि जोहड़ के चारों ओर दीवार का निर्माण हो सके। युवाओं का अब प्रयास है कि नालों के गंदे पानी को भी शुद्ध करके जोहड़ में डाला जाए।

गिरते भूजल स्तर ने बढ़ाई चिंता

नरेला इलाके में दो दशकों में बेतहाशा निर्माण कार्य हुए हैं। इससे हरियाली में कमी के साथ भूजल दोहन भी कई गुणा बढ़ गया है। गिरते भूजल स्तर के कारण कई सबमर्सिबल पानी छोड़ चुके हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए तालाबों का संरक्षण बहुत जरूरी है। इसी सोच के साथ युवाओं ने प्राचीन जल स्नोतों के कायाकल्प का बीड़ा उठाया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.