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HC की अहम टिप्पणी- समझौता होने के आधार पर नहीं हो दुष्कर्म केसों का निपटारा

मानसिक पीड़ा देने वाले दुष्कर्म और आर्थिक अपराध जैसे गंभीर मामलों का निपटारा करने को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 29 Apr 2019 10:35 AM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2019 10:35 AM (IST)
HC की अहम टिप्पणी-  समझौता होने के आधार पर नहीं हो दुष्कर्म केसों का निपटारा
HC की अहम टिप्पणी- समझौता होने के आधार पर नहीं हो दुष्कर्म केसों का निपटारा

नई दिल्ली, जेएनएन। मानसिक पीड़ा देने वाले दुष्कर्म और आर्थिक अपराध जैसे गंभीर मामलों का निपटारा करने को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आपसी समझौता होने के आधार पर दुष्कर्म और आर्थिक अपराध के गंभीर मामलों का निपटारा न किया जाए। पीठ ने कहा कि किसी भी ऐसे गंभीर मामले का निपटारा करने से पहले अदालत जांच करे कि कानून इसकी इजाजत देता है या नहीं। याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आरके गाबा ने इस बाबत सभी निचली अदालतों के लिए दिशा-निर्देश तय किए और इसकी जानकारी सभी अदालतों को भेजने के निर्देश दिए।

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पीठ ने इन टिप्पणियों के साथ आपसी समझौता होने के आधार पर गंभीर आपराधिक मामले को निरस्त करने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुये जरूरी है कि इस तरह के मामलों को खारिज न किया जाए। पीठ ने कहा कि मामलों को देखकर यह लगता है कि निपटारा करने के पीछे अच्छी मंशा नहीं है और यह कानूनी न्याय के लिहाज से ठीक नहीं है। पीठ ने कहा कि इससे पहले भी हाई कोर्ट इस तरह के मामलों को निरस्त करने से इन्कार कर चुका है। हालांकि, हाई कोर्ट द्वारा इस संबंध में पूर्व में दिए गए फैसलों का जिक्र आरोपित के अधिवक्ता ने अदालत में नहीं किया। पीठ ने कहा कि यह बेमानी है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि गंभीर आपराधिक मामलों को आपसी समझौता होने पर समाप्त नहीं किया जाए। इसका ध्यान न्यायाधीश भी रखें। पीठ ने निचली अदालत को कहा कि वे प्रशासनिक कार्य से पहले आपराधिक मामलों के निपटारे को प्राथमिकता दें, क्योंकि वर्षो पुराने कई आपराधिक मामले लंबित हैं।

पॉक्सो एक्ट में अहम सुबूत होने पर नहीं दे सकते जमानत : हाई कोर्ट

बच्ची से दुष्कर्म के आरोप में चार साल से अधिक समय से जेल में बंद 65 वर्षीय आरोपित समशेर की जमानत याचिका हाई कोर्ट ने खारिज कर दी। जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने कहा कि अदालत के सामने पेश की गई प्रगति रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि आरोपित के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।

मामले से जुड़ी फारेंसिक लैब की रिपोर्ट और आरोपित के डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आरोपित के खिलाफ है। ऐसे में तथ्यों एवं वारदात की परिस्थितियों को देखते हुए आरोपित को जमानत नहीं दी जा सकती। पीठ ने यह भी कहा कि आरोपित पर गंभीर आरोप हैं और अदालत में पेश किए गए तथ्य उसके खिलाफ हैं। पीठ ने कहा कि पीड़िता द्वारा दिए गए अब तक के बयानों में कोई बदलाव नहीं है। जमानत याचिका के अनुसार 30 सितंबर 2014 को समयपुर बादली थाना क्षेत्र में बच्ची की तरफ से आरोपित के खिलाफ प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंस (पॉक्सो) की धारा के तहत दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था।

आरोप है कि पानी की सप्लाई करने वाले आरोपित समशेर बच्ची को लेकर अपने घर गया और वहां पर उसके साथ दुष्कर्म किया। वहीं, आरोपित के अधिवक्ता ने आरोपों को निराधार बताते हुए जमानत देने की मांग की। उन्होंने कहा कि आरोपित एक अक्टूबर 2014 से जेल में बंद है और वह अकेला अपने घर में कमाने वाला है। पीड़िता की तरफ से अभियोजक ने कहा कि आरोपित पर गंभीर आरोप हैं और उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए।


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