पंडित ने अपनी सगी बहनों को मंदिर में पूजा से रोका तो HC ने पूछा-'ऐसा क्यों'
याची ने कहा कि प्राचीन काल से इस मंदिर में परिवार के पुरुष ही प्रसाद व आय के हकदार हैं, क्योंकि वे ही मंदिर में पूजा और अन्य रस्में अदा करते हैं।
नई दिल्ली (जेएनएन)। 'महिलाएं मंदिर में पूजा व सेवा क्यों नहीं कर सकतीं। अब समय बदल गया है। महिलाओं को भारतीय मंदिरों में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है।' हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी कालकाजी मंदिर के पुजारी द्वारा अपनी दो बहनों के खिलाफ मंदिर में पूजा करने पर रोक लगाने के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
न्यायमूर्ति बीडी. अहमद व न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में दिए एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं को पूजा स्थल में प्रवेश करने से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने याची पुजारी से पूछा, आप बताएं हमें ऐसा क्यों करना चाहिए। याची ने तर्क रखा कि शादी के बाद से उनकी बहनें अलग-अलग परिवार और गोत्र की हो गई हैं, ऐसे में उन्हें पूजा का कोई अधिकार नहीं है।
याची ने कहा कि प्राचीन काल से इस मंदिर में परिवार के पुरुष ही प्रसाद व आय के हकदार हैं, क्योंकि वे ही मंदिर में पूजा और अन्य रस्में अदा करते हैं।
मंदिर के इतिहास में कभी भी किसी महिला ने पूजा नहीं की। उन्होंने अदालत को बताया कि निचली अदालत ने उनकी बहनों को मंदिर में पूजा, सेवा और एकत्रित प्रसाद में हिस्सा प्रदान करने की इजाजत दी है।
ऐसे में उनकी याचिका पर तुरंत सुनवाई की जाए और उनकी दोनों बहनों को प्रदान पूजा व सेवा की इजाजत पर रोक लगाई जाए। दोनों बहनों ने निचली अदालत के आदेश के बाद 7 फरवरी से मंदिर में पूजा व सेवा शुरू कर दी है। वहीं याची पुजारी की सेवा 7 मार्च को खत्म हो रही है।
निचली अदालत ने 4 फरवरी को दिए फैसले में दोनों बहनों को पूजा की इजाजत प्रदान की है। याची का तर्क सुनने के बाद खंडपीठ ने याचिका पर पहले 8 फरवरी की तारीख तय की, लेकिन याची के कई बार आग्रह करने पर अदालत ने याचिका पर सुनवाई न्यायमूर्ति जेआर मिड्ढा के समक्ष तय की। जहां अदालत ने दोनों पक्षों से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति ने कहा कि वे दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही कोई निर्णय देंगे।