सेवानिवृत्त मुख्य न्यायमूर्ति गीता मित्तल के नेतृत्व में प्रशासकों की समिति करेगी टीटीएफआइ का संचालन
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय कोच को अपनी निजी अकादमी चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती और न ही दी जानी चाहिए। अगर इसी तरह की नियुक्तियां अन्य खेल में भी हैं तो केंद्र सरकार और अन्य खेल संगठनों को सुधारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता व खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित टेबल टेनिस खिलाड़ी मनिका बत्रा की याचिका पर सुनवाई के विस्तृत आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय टेबल टेनिस महासंघ (टीटीएफआइ) के संचालन के लिए प्रशासकों की समिति गठित कर दी है। इस समिति का प्रमुख जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की सेवानिवृत्त मुख्य न्यायमूर्ति गीता मित्तल को नियुक्त किया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता चेतन मित्तल और एथलीट एसडी मुदगिल को समिति का सदस्य बनाया है। आदेश में कहा गया है कि जब तक केंद्र सरकार या फिर स्वतंत्र संस्था टीटीएफआइ के मामलों की गहराई तक जांच नहीं करती, तब तक महासंघ के संचालन के लिए प्रशासकों की समिति नियुक्त की जरूरत है।
टेबल टेनिस खिलाड़ी मनिका बत्रा को पिछले साल एशियाई टेबल टेनिस चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में नहीं चुना गया था। उन्होंने राष्ट्रीय कोच सौम्यदीप रॉय पर अपनी एक निजी प्रशिक्षु के हाथों ओलंपिक क्वालीफायर मैच गंवाने के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया था। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने आदेश में कहा कि बत्रा के आरोपों की जांच के लिए गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर कहा कि अपनी निजी अकादमी चलाने वाले सौम्यदीप की राष्ट्रीय कोच पद पर नियुक्ति प्रथम दृष्टया हितों के टकराव का मामला है। जो मुद्दा याचिकाकर्ता ने उठाया, उसके बारे में टीटीएफआइ को शुरुआत से मालूम था। इस बारे में टीटीएफआइ ने पीठ को कोई जवाब नहीं दिया कि जब सौम्यदीप राय अपनी निजी अकादमी चला रहे थे, तो उन्हें राष्ट्रीय कोच के रूप में क्यों जारी रखा गया।
पीठ न कहा कि टीटीएफआइ को टेबल टेनिस को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन इसने केवल अपने अधिकारियों के हितों का बचाव किया। खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के बजाय उन्हें अपनी शर्तों पर चलाने की कोशिश की। मनिका बत्रा की शिकायत पर टीटीएफआइ का रवैया देख पता चलता है कि उसने राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 के अंतर्गत अपना कर्तव्य निभाने के बजाय खिलाड़ी के विकास में बाधा डालने की कोशिश की। राष्ट्रीय कोच पर लगे मैच फि¨क्सग के प्रयास जैसे गंभीर आरोप की शिकायत मिलने पर टीटीएफआइ को मामले की तह तक पहुंचने की जरूरत थी, ताकि एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी को इस अनावश्यक तनाव से न गुजरना पड़े। इस मामले में अफसोस की बात है कि टीटीएफआइ ने अलग दृष्टिकोण चुना और अपने अधिकारियों को खुश करने के लिए खिलाडि़यों के हितों को नजरअंदाज किया।
इस कारण प्रशासकों की समिति नियुक्त करना ही एकमात्र विकल्प बचा था। पीठ ने माफी मांगने पर राष्ट्रीय चयनकर्ता अरूल सेल्वी को चेतावनी देकर छोड़ दिया। सेल्वी ने मनिका बत्रा को एक संदेश भेजा था, जिसमें केस वापस लेने के लेने की बात लिखी थी। इस संदेश पर पीठ ने आश्चर्य भी व्यक्त किया।ये जिम्मेदारी तय कीपीठ ने आदेश दिया कि अब टीटीएफआइ प्रशासकों की समिति के माध्यम से खिलाडि़यों या अंतरराष्ट्रीय खेल संस्थाओं से संपर्क करेगी। मौजूदा अधिकारियों को कोई भी कार्य करने का अधिकार नहीं होगा। साथ ही कहा है कि प्रशासकों की समिति जब भी अधिकारियों से कोई अनुरोध करेगी तो वह अपनी मदद प्रदान कर सकते हैं। पीठ ने समिति की अध्यक्ष के लिए तीन लाख रुपये और दोनों सदस्यों के लिए एक-एक लाख रुपये मासिक वेतन निर्धारित किया है। पीठ ने प्रशासकों की समिति को निर्देश दिया है कि वह प्रत्येक दो महीने में एक आवधिक रिपोर्ट सौंपेगी, जिसमें महासंघ के खातों से संबंधित जानकारी होगी।
अन्य खेल संगठनों को नसीहत
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय कोच को अपनी निजी अकादमी चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती और न ही दी जानी चाहिए। अगर इसी तरह की नियुक्तियां अन्य खेल में भी हैं तो केंद्र सरकार और अन्य खेल संगठनों को सुधारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।