ड्राइविंग लाइसेंस के लिए दिल्ली में शुरू होगा Automated Driving Test Track पढ़ें-इसके बारे में
Delhi Driving Licence New Guideline दिल्ली में डीएल टेस्ट सिर्फ ऑटोमेटेड (स्वचालित) ट्रैक पर होंगे। इन ट्रैक को भी अगले कुछ माह में शुरू कर दिया जाएगा।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। Delhi Driving Licence New Guideline: ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के दौरान खामियों में कमी लाने के मकसद से दिल्ली सरकार बड़ा बदलाव करने जा रही है। इसके तहत दिल्ली में ड्राइविंग लाइसेंस (Driving Licence ) टेस्ट के लिए मैनुअल टेस्ट की प्रक्रिया जल्द खत्म होने जा रही है। हाल ही में बनकर तैयार हुए झड़ोदा कलां और लोनी रोड अथॉरिटी (परिवहन कार्यालय) में भी जल्द ही ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक (Automated Driving Test Track) शुरू होने जा रहे हैं। इनकी तैयारी पूरी हो गई है। इसके अलावा रोहिणी, द्वारका, लाडो सराय, हरिनगर व राजा गार्डन में इन ट्रैक के लिए काम अंतिम चरण में है।
बता दें कि दिल्ली में डीएल टेस्ट सिर्फ ऑटोमेटेड (स्वचालित) ट्रैक पर होंगे। इन ट्रैक को भी अगले कुछ माह में शुरू कर दिया जाएगा। वहीं वर्तमान में छह ऑटोमेटेड ट्रैक पर ही टेस्ट लिए जा रहे है। इनमें सूरजमल विहार, मयूर विहार, सराय काले खा, शेख सराय, वजीरपुर व मालरोड अथॉरिटी में ऑटोमेटेड टेस्ट ट्रैक चल रहे हैं। सभी अथॉरिटी में ऑटोमेटेड ट्रैक होने पर दिल्ली में मैनुअल टेस्ट की प्रक्रिया लगभग खत्म हो जाएगी।
मिली जानकारी के मुताबिक, जिन अथॉरिटी के लिए ऑटोमेटेड ट्रैक नहीं बने थे उन जगहों पर लोगों से मैनुअल टेस्ट लिया जाता है। इस प्रक्रिया में थोड़ा समय भी लग जाता है, लेकिन ऑटोमेटेड ट्रैक पर ड्राइविंग टेस्ट देने से लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया बेहद सटीक, पारदर्शी, और गुणवत्ता वाली होती है। बता दें कि 2018 में सबसे पहले शेख सराय अथॉरिटी में आने वाले आवेदकों का ऑटोमेटेड टेस्ट लिया जाना शुरू किया गया था। उसके बाद धीरे-धीरे दूसरे परिवहन कार्यालयों में भी ऑटोमेटेड ट्रैक भी शुरू किए जा रहे हैं। बताते चले कि दिल्ली में 13 अथॉरिटी हैं। सभी के लिए अलग-अलग ऑटोमेटेड ट्रैक बनाए जाने हैं। एक ऑटोमेटेड ट्रैक बनाने में एक करोड़ रुपये खर्च हो रहा है। जिसमें अलग-अलग जगह कई तरह के सेंसर के अलावा ट्रैक पर 50 मीटर की ऊंचाई पर आठ सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं। जो कि टेस्ट देने वालों की कमिया पकड़ते हैं।
यह भी जानिए
- सेंसर ड्राइविंग पर नजर रखता है। अगर आपने इस दौरान कोई भी गलती की तो ऑटोमैटिक कंप्यूटर आपको फेल कर देगा।
- ऑटोमेटेड ट्रैक पर ड्राइविंग टेस्ट देना मुश्किल होता है।
- ट्रैक को आठ अंक के आकार में तैयार किया जाता है।
- जिस पर आवेदक को गाड़ी से चक्कर लगाना होता है और आगे-पीछे भी करके दिखानी होती है। इसके लिए उसको एक निश्चित समय दिया जाता है।
क्यों लागू किया जा रहा ये नियम
इस प्रक्रिया को अपनाने के पीछे कारण है कि इससे केवल योग्य व्यक्ति को ही लाइसेंस मिल सकेगा। इस टेस्ट के चालू होने के बाद से रोजाना कुल टेस्ट देने वालों में से 40 से 50 फीसद लोग अब भी फेल हो जाते हैं। उन्हें तैयारी के बाद अगली बार फिर मौका दिया जाता है।