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इमरजेंसी की भेंट चढ़ गए थे दिल्ली के एक उपराज्यपाल, आज तक नहीं खुला मौत का राज; बता रहे हैं लेखक विष्णु शर्मा

Delhi Former Lieutenant Governor Death Mystery इमरजेंसी की जांच को बने शाह आयोग के सामने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के एक बयान से इस बात को बखूबी समझा जा सकता है कि संजय गांधी ने इमरजेंसी के दौरान कैसे लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाईं थीं।

By Geetarjun GautamEdited By: Published: Fri, 24 Jun 2022 03:47 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 09:19 AM (IST)
इमरजेंसी की भेंट चढ़ गए थे दिल्ली के एक उपराज्यपाल, आज तक नहीं खुला मौत का राज; बता रहे हैं लेखक विष्णु शर्मा
इमरजेंसी की भेंट चढ़ गए थे दिल्ली के एक उपराज्यपाल

नई दिल्ली [विष्णु शर्मा]। इमरजेंसी की जांच को बने शाह आयोग के सामने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के एक बयान से इस बात को बखूबी समझा जा सकता है कि संजय गांधी ने इमरजेंसी के दौरान कैसे लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाईं थीं। रे ने अपने बयान में कहा था कि, “25 जून की आधी रात को कुछ ‘अनुत्तरदायी’ व्यक्तियों ने एक बैठक में फैसला किया कि अदालतें बंद कर दी जाएं, और समाचार पत्रों के बिजली कनेक्शन काट दिए जाएं।”

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कौन थे वो अनुत्तरदायी व्यक्ति, जो देश के पीएम के होते हुए बिना पद पर होते हुए भी फैसले ले रहे थे, संजय गांधी उनका अगुवा थे। तभी तो इस गवाही के बाद शाह आयोग ने संजय गांधी के लिए ये शब्द इस्तेमाल किया था, ‘भारत सरकार का बेटा।’

1978 के जुलाई महीने में एक और हृदय विदारक घटना हुई, जिसका सच आज तक सामने नहीं आ पाया। शाह आयोग के समक्ष इंदिरा गांधी के करीबी अधिकारियों इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर के धवन, दिल्ली के उपराज्यपाल कृष्ण चंद के पूर्व सचिव नवीन चावला, पूर्व डीआईजी पीएस भिंडर आदि ने जिस व्यक्ति के सिर कई फैसलों का ठीकरा फोड़ा था, वो थे दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल कृष्ण चंद। इन लोगों का कहना था कि मीसा के तहत सारी गिरफ्तारियां हों या फिर दिल्ली में तोड़फोड़, सब उपराज्यपाल के आदेश से हुईं।

फिर कृष्ण चंद की भी गवाही शाह आयोग के सामने हुई। उसके बाद 9 जुलाई 1978 को 61 साल के कृष्ण चंद रात आठ बजे वकील से मिलने की बात कहकर दक्षिण दिल्ली के अपने घर से निकले और फिर वापस नहीं आए।

अगले दिन तड़के उनकी लाश उनके घर से 2 किलोमीटर दूर एक 60 फुट गहरे कुंए में मिली। ये कुंआ दक्षिण दिल्ली में शाहपुर जट गांव के पास था। उस वक्त दिल्ली में ऐसे तमाम कुंए खुले रहते थे।

उन्होंने एक सुसाइड नोट पत्नी सीता के नाम बैडरूम में छोड़ा कि वह शाह आयोग के सामने हुई पूछताछ के चलते तनाव में हैं, जबकि दूसरा सुसाइड नोट कुंए की मुंडेर पर रखे जूतों के साथ मिला, जिसमें हिंदी में लिखा था, ‘’जीना जिल्लत से है, तो उससे मरना अच्छा है।”

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि उनकी मौत 9 जुलाई की रात आठ बजकर चालीस मिनट पर हुई थी। उनकी मौत की वजह डूबने से शरीर को ऑक्सीजन ना मिलना बताई गई। हालांकि फॉरेंसिक रिपोर्ट में दोनों सुसाइड नोट्स पर उनकी ही हैंडराइटिंग पाई गई, लेकिन ज्योति बसु ने इस केस की न्यायिक जांच की मांग की, जिसके चलते केस साउथ दिल्ली पुलिस से लेकर क्राइम ब्रांच को दे दिया गया था.

दरअसल कृष्ण चंद ने शाह आयोग को अपनी गवाही में बताया था कि कैसे कई नेताओं की गिरफ्तारी, तोड़फोड़ आदि जैसे फैसले ज्यादातर संजय गांधी से मिले थे, और कई इंदिरा गांधी से भी।

हालांकि इंदिरा के करीबियों ने इमरजेंसी में ज्यादतियों का पूरा जिम्मेदार कृष्णचंद को ठहराने की कोशिश की। जबकि कृष्ण चंद ने बताया था कि कैसे तोड़फोड़ के दौरान खुद संजय गांधी मौजूद रहते थे। कृष्ण चंद ने आयोग से कहा था कि उनको केवल बलि का बकरा बनाया जा रहा है।

इमरजेंसी के इतने बड़े फैसले वो भला कैसे ले सकते हैं और ये तार्किक भी नहीं था। विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर कृष्ण चंद की हत्या का आरोप भी लगाया, क्योंकि उसी तरह जून 1977 में संजय गांधी के श्वसुर कर्नल आनंद की भी संदिग्ध मौत हुई थी. उसको लेकर भी संजय गांधी विपक्ष के निशाने पर थे।

मीडिया ने भी आसपास के लोगों से बातचीत करके उस वक्त छापा था कि 15-20 लोग दो कारों में उस रात उस कुंए के आस पास देखे गए थे। अखबारों ने इस पर आश्चर्य जताया कि इतने गहरे कुंए में कृष्ण चंद बिना कुंए की दीवारों से टकराए सीधे तलहटी में ही कैसे गिरे।

कृष्ण चंद के चश्मे, घड़ी और पेन के गायब होने पर भी सवाल उठे, लेकिन पुलिस ने जांच में उसे आत्महत्या ही बताया। दोनों सुसाइड नोट्स से भी इतना तो पता चल रहा था कि वो शाह आयोग में हो रही पूछताछ को लेकर तनाव में थे।

जाहिर है पूर्व प्रधानमंत्री और उनके बेटे के खिलाफ बोलना काफी हिम्मत का काम था, वो वापस भी सत्ता में आ सकती थीं। लेकिन सच नहीं बताते तो सारा ठीकरा उन्हीं के सर मढ़ दिया जाता। आज तक कृष्णचंद की मौत का राज नहीं खुल पाया। विपक्ष जरुर हत्या का आरोप लगाता रहा, उनका कहना था कि कृष्ण चंद के पास ही गांधी परिवार के खिलाफ सबसे ज्यादा सुबूत थे।

सीपीएम के नेताओं ने उस वक्त केवल न्यायिक जांच की ही मांग नहीं की थी, बल्कि वो इस उप राज्यपाल नाम की ही संस्था के खिलाफ खुलकर आ गए थे। उन्होंने पार्टी की बैठक में उप राज्यपाल पद को ही तब खत्म करने का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार से ये मांग की थी।

संजय गांधी, दिल्ली में उनकी तोड़फोड़, नसबंदी गैंग की आप तमाम कहानियां पढ़ेंगे। डीके बरुआ, बंसी लाल जैसे उनकी खुशामद में लगे रहने वाले नेताओं की भी, लेकिन उनके खिलाफ खड़े होने वालों की कहानियां काफी कम हैं।

कृष्ण चंद जैसे लोग भी शायद हिम्मत हार गए। ऐसे में जिस अंदाज में जेल में बंद अटल बिहारी वाजपेयी ने संजय गांधी के खिलाफ लिखा, वो आज की पीढ़ी को भी पसंद आएगा। संजय गांधी को लेकर उनकी कविता की लाइनें थीं-

“सब सरकारों से बड़े हैं छोटे सरकार,

गुड्डी जिनकी चढ़ रही, दिल्ली के दरबार!

दिल्ली के दरबार, बुढ़ापा खिसियाता है,

पूत सवाया सिंहासन, चढता आता है!

कह कैदी कविराय, लोकशाही की छुट्टी,

बेटा राज करेगा, पीकर मुगली घुट्टी!!”

                                                                                                           (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


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