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दिल्ली दंगा की जांच करने में पुलिस की विफलता लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा देगी, कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी

दिल्ली दंगे के दौरान दयालपुर इलाके में घर जलाने व लूटपाट के मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने शाह आलम समेत तीन लोगों को आरोप मुक्त कर दिया है। साक्ष्यों के अभाव में कोर्ट ने तीनों को बरी किया है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 02 Sep 2021 04:53 PM (IST)Updated: Thu, 02 Sep 2021 07:25 PM (IST)
दिल्ली दंगा की जांच करने में पुलिस की विफलता लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा देगी, कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी
दयालपुर दिल्ली दंगा मामले में ताहिर हुसैन के भाई समेत तीन लोग बरी

नई दिल्ली [आशीष गुप्ता]। दिल्ली दंगे में दयालपुर इलाके में खोखा व दुकान जलाने के दो मामलों में बृहस्पतिवार को कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव के कोर्ट ने तीन आरोपितों को साक्ष्यों के अभाव में आरोप मुक्त कर दिया। इनमें से एक दंगे के मुख्य आरोपित एवं आप के पार्षद रहे ताहिर हुसैन का भाई है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि जब इतिहास विभाजन के बाद के दिल्ली के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगे को देखेगा, तो नवीनतम वैज्ञानिक तरीकों के बावजूद उचित जांच करने में पुलिस की विफलता निश्चित रूप से लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा देगी।

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गत वर्ष 24 फरवरी को दंगाइयों ने भजनपुरा गली नंबर-15 में रहने वाले ओम सिंह के खजूरी खास करावल नगर रोड ई-पांच स्थित पान के खोखे को जला दिया था। इस घटना के अगले दिन दंगाइयों ने चांद बाग क्षेत्र में मुख्य वजीराबाद रोड पर हरप्रीत सिंह की दुकान आनंद टिंबर फर्नीचर में लूटपाट के बाद आग लगा दी थी। दयालपुर थाने में दर्ज अलग-अलग मुकदमों में पुलिस ने दिल्ली दंगे के मुख्य आरोपित एवं आप के पार्षद रहे ताहिर हुसैन के भाई शाह आलम के अलावा राशिद सैफी और शादाब को आरोपित बनाया गया था। दोनों ही मामलों में एक-एक कांस्टेबल की गवाही दिलवाई गई।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव के कोर्ट में बचाव पक्ष के वकील दिनेश तिवारी ने कहा कि उनके मुवक्किलों के पास से कोई हथियार नहीं मिला है, न ही उनकी उपस्थिति को दर्शाता वीडियो फुटेज अब तक पेश किया गया। साथ ही कहा कि इन मामलों में केवल एक-एक गवाह है, वो भी पुलिस वाले। कोई सार्वजनिक गवाह नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस कांस्टेबलों ने झूठी गवाही दी है, वह घटनास्थल पर नहीं थे। वह मौके पर होते तो पुलिस कंट्रोल रूम को काल कर सूचना देते, लेकिन इसका कोई रिकार्ड पुलिस के पास नहीं है।

घटनास्थलों पर कांस्टेबलों की रवानगी और आमद का कोई रिकार्ड नहीं है। दिनेश तिवारी ने मुवक्किलों की गिरफ्तारी को लेकर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि तीनों की गिरफ्तारी नौ मार्च 2020 को खजूरी खास थाने में दर्ज एफआइआर संख्या 101 में कर ली गई थी। उसके बाद पुलिस ने इन दोनों मामलों में उनके मुवक्किलों को झूठा फंसा कर अप्रैल में इन मामलों में तीनों की गिरफ्तारी दिखाई।

अभियोजन पक्ष की तरफ से वरिष्ठ लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कहा कि कांस्टेबल घटना के वक्त मौके पर मौजूद थे, उन्होंने आरोपितों की पहचान की है। सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को लेकर उन्होंने तर्क दिया कि दंगाइयों ने उस क्षेत्र में काफी संख्या में कैमरे तोड़ दिए थे। दोनों तरफ की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने बचाव पक्ष के तर्कों को मानते हुए सुबूतों के अभाव में दोनों मामलों में तीनों आरोपितों को आरोप मुक्त कर दिया। तीनों इस वक्त जमानत पर बाहर हैं। बता दें कि शाह आलम अभी नौ मामलों में आरोपित है। राशिद और शादाब पर सात-सात चल रहे हैं।

 इन धाराओं में दर्ज थे मुकदमें

147 (दंगा करने), 148 (घातक हथियार इस्तेमाल करने), 149 (गैर कानूनी समूह में समान मंशा से अपराध करने), 188 (सरकारी आदेश का उल्लंघन करने), 380 (चोरी करने), 427 (पचास रुपये से अधिक की हानि करने) और 436 (संपत्ति या उपासना स्थल को आग लगाने), 454 (छिप कर गृह भेदन करना)


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