Rahul Gandhi: दिल्ली कांग्रेस तो है राहुल गांधी के साथ, लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने साध रखी है चुप्पी
Rahul Gandhi राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने के समर्थन में प्रस्ताव पास कर दिया गया वहीं वरिष्ठ नेताओं ने बैठक से भी दूरी बनाए रखी और चुप्पी भी साधे रखी।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Rahul Gandhi: कांग्रेस की कमान राहुल गांधी को मिले या किसी गैर कांग्रेसी को, इस विवाद में पार्टी की दिल्ली इकाई दो धड़ों में बंट गई है। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अनिल चौधरी (Delhi Pradesh Congress Committee chief Anil choudhary) के नेतृत्व में रविवार को जहां एक आपात बैठक बुलाकर राहुल गांधी के समर्थन में प्रस्ताव पास कर दिया गया, वहीं वरिष्ठ नेताओं ने बैठक से भी दूरी बनाए रखी और चुप्पी भी साधे रखी।
अनिल चौधरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर, पूर्व मंत्री डॉ नरेंद्र नाथ, पूर्व विधायक मतीन अहमद ने गांधी परिवार के प्रति आस्था जताते हुए राहुल गांधी को ही पुनः पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का समर्थन किया है। वहीं, दूसरी तरफ सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष योगानंद शास्त्री ने इस बाबत अपनी बात कहने के लिए फ़ोन ही नहीं उठाया। अन्य तमाम वरिष्ठ नेताओं ने इस विवाद पर चुप रहना ही बेहतर समझा है। न उन्होंने कोई ट्वीट ही किया और न बयान दिया।
दिल्ली में आपसी फूट ही बहुत ज्यादा
दिल्ली के जिन चार नेताओं ने उक्त चिट्ठी पर हस्ताक्षर किए हैं, उन्हें लेकर भी पार्टी में बड़े स्तर पर विद्रोह है। लवली और अनिल चौधरी का 36 का आंकड़ा है। संदीप दीक्षित को ज्यादातर नेता पसंद नहीं करते। सिब्बल के बयानों पर पहले भी तीखी प्रतिक्रिया होती रही है। योगानंद की अपनी बेटी प्रियंका सिंह ही उनसे इत्तेफाक नहीं रखती और प्रदेश की बैठक में भी पहुंची हुई थी।
... इसलिए भी उठे बगावत के सुर
सूत्र बताते हैं कि अजय माकन को एआइसीसी महासचिव बनाया जाना भी कुछ नेताओं को नागवार गुजरा है। इनका मानना है कि एक ओर पार्टी दिल्ली के तमाम वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर रही है वहीं लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से गठजोड़ की वकालत करने वाले माकन को पदोन्नति दे दी। आक्रोश यह भी है कि राहुल गांधी ने चौधरी को प्रदेशध्यक्ष अपने एक सुरक्षा अधिकारी के कहने पर बना दिया, जबकि उनकी स्वीकार्यता को जांचा ही नहीं।
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