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दिल्ली में अस्थायी अस्पतालों के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटालाः आदेश गुप्ता

Delhi Politics News दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता एवं उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने बृहस्पतिवार को दिल्ली सरकार पर सात स्थानों पर अस्थायी अस्पताल बनवाने में करोड़ों रुपये का घोटाला करने का आरोप लगाया।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 30 Sep 2021 08:40 PM (IST)Updated: Thu, 30 Sep 2021 08:40 PM (IST)
दिल्ली में अस्थायी अस्पतालों के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटालाः आदेश गुप्ता
दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता। फोटो सौ. ट्विटर

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। भाजपा ने राजधानी में अस्थायी अस्पताल बनवाने में दिल्ली सरकार पर घोटाले का आरोप लगाया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता एवं उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने बृहस्पतिवार को दिल्ली सरकार पर सात स्थानों पर अस्थायी अस्पताल बनवाने में करोड़ों रुपये का घोटाला करने का आरोप लगाया। प्रेस वार्ता में इन नेताओं ने बताया कि इस मामले में दिल्ली की एक अदालत ने भी भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के आदेश दिए हैं।

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आदेश गुप्ता ने कहा कि शालीमार बाग, किराड़ी, सुल्तानपुरी, चाचा नेहरु बाल चिकित्सालय, जीटीबी अस्पताल परिसर, सरिता विहार और रघुवीर नगर में 1256 करोड़ रुपये की लागत से अस्थायी अस्पताल बनने हैं, लेकिन निविदाओं में भारी घोटाला किया गया। लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के एक वरिष्ठ अधिकारी की सेवानिवृत्ति के दिन ही सैम इंडिया को निर्माण कार्य सौंप दिया गया। साथ ही स्ट्रक्चरल ट्यूब के दाम बढ़ने के नाम पर टेंडर में 40 फीसद की वृद्धि कर दी गई। उन्होंने कहा कि द्वारका स्थित 1725 बिस्तरों वाले अस्पताल को अभी तक चालू न करके अस्थायी अस्पताल पर इतनी भारी रकम खर्च की गई। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दूसरे राज्यों में जाकर चुनावी वादे कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली सरकार घोटालों में लिप्त है,जिसका जवाब उनके पास नहीं है।

मनोज तिवारी ने कहा कि इस परियोजना को मंजूरी बाद में मिली, लेकिन टेंडर पहले ही जारी कर दिया गया। इस मामले में जांच के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हमेशा दावा करते हैं कि हम किसी भी प्रोजेक्ट को कम लागत में करने की कोशिश करते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि पहले ही किसी भी प्रोजेक्ट की लागत अधिक कर दी जाती है, जिसके बाद कम करने के बावजूद लागत बाजार की लागत से ज्यादा होती है। इस संबंध में दिल्ली सरकार से पक्ष लेने की कोशिश की गई, लेकिन उपलब्ध नहीं हुआ।


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