Move to Jagran APP

Delhi Air Pollution: कुंद हथियार से प्रदूषण से जंग में कैसे होगा वार, रिपोर्ट से सामने आया चौंकाने वाला सच

सेंटर फॉर एन्वायरमेंटल हेल्थ पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के उप निदेशक डॉ. पूर्णिमा प्रभाकरण ने बताया कि वायु प्रदूषण के अधिक संपर्क में रहना भारत में सेहत के लिए जोखिम पैदा करने वाला सबसे बड़ा कारण है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 04 Nov 2020 07:07 AM (IST)Updated: Wed, 04 Nov 2020 07:07 AM (IST)
Delhi Air Pollution: कुंद हथियार से प्रदूषण से जंग में कैसे होगा वार, रिपोर्ट से सामने आया चौंकाने वाला सच
वायु गुणवत्ता में सुधार की योजनाओं को जमीन पर उतारने में व्याप्त खामियों को समझना बेहद महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। ठंड के साथ जहां एक ओर वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) सहित तमाम राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। न इनके पास पर्याप्त बजट है और न ही तकनीकी दक्षता। यह सच सामने आया है सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजिज कंट्रोल (सीसीडीसी) की नई रिपोर्ट में। सोमवार को जारी "स्ट्रेंथनिंग पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड टू अचीव द नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स इन इंडिया" नामक इस रिपोर्ट में देश भर में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों के लक्ष्यों को हासिल करने में आ रही संस्थागत और सूचनागत बाधाओं को समझने की कोशिश की गई है। साथ ही उन्हें दूर करने के उपाय भी सुझाए गए हैं।

loksabha election banner

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अपने मूल लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अत्यधिक पेशेवर रवैया अपनाने के साथ-साथ हालात की वास्तविकता समझने और उसका समाधान निकालने के लिए बोर्डों को तकनीक और प्रौद्योगिकी में दक्ष लोगों को जिम्मेदारी दिए जाने की जरूरत है।

यह रिपोर्ट बताती है कि राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने पिछले दो दशक के दौरान भले ही अपने दायरे को विस्तृत कर लिया हो, लेकिन उनके पास इतना बजट एवं कर्मचारी नहीं हैं कि वे इसे ठीक से संभाल पाएं। इस अध्ययन के लिए प्राथमिक अनुसंधान का काम देश के आठ चुनिंदा शहरों में किया गया। इनमें लखनऊ, पटना, रांची, रायपुर, भुवनेश्वर, विजयवाड़ा, गोवा और मुंबई शामिल हैं। इस दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और संबंधित राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के प्रतिनिधियों तथा सदस्यों से गहन बातचीत की गई।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की प्रमुख बाधाएं

1. प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में नेतृत्व का जिम्मा लोक सेवकों पर होता है। जिनके पास अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम देने के लिए जरूरी विशेषज्ञता की कमी रहती है।

2. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी अपनी भूमिका और जिम्मेदारी को लेकर तंग नजरिया रखते हैं। इसलिए उनसे जिस भूमिका की उम्मीद की जाती है, वह निभाई नहीं जा पाती। प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के बहुत से अधिकारी तो मौजूदा कानूनों के तहत खुद को मिली जिम्मेदारी के बारे में ही पूरी तरह से नहीं जानते।

3. केंद्र और राज्य स्तरीय विभिन्न सरकारी विभागों के बीच तालमेल की कमी के कारण विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अनेक ऐसे निर्देश लागू ही नहीं हो पाते जिन्हें अमली जामा पहनाने का जिम्मा संबंधित विभागों पर होता है। कुछ राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी यही कहना है कि नौकरशाही संबंधी रुकावटें मौजूद हैं। नौकरशाही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में मानव स्वास्थ्य की रक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बजाय सिर्फ फाइलें निपटाने को ही अपना काम मानती है।

4. पिछले एक दशक के दौरान हवा की गुणवत्ता की निगरानी करने का काम तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों में शामिल रहा है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास इतने कर्मचारी और विशेषज्ञता ही नहीं कि वह अपने काम को अपेक्षित मुस्तैदी और गुणवत्ता से कर सकें। साथ ही साथ कार्रवाई करने के आधार के तौर पर देखे जाने के बजाए निगरानी को ही अंतिम कार्य मान लिया जाता है

5. देश में बने पर्यावरण संबंधी प्रमुख कानूनों का उद्देश्य मानव स्वास्थ्य की रक्षा करना है लेकिन राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में वायु प्रदूषण संबंधी तथ्यों की गलत समझ या गलत सूचनाएं महामारी विज्ञान पर हावी हो जाती हैं। अगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अपने उद्देश्यों में सफल होना है तो इन गलतफहमियों को दूर करना बहुत जरूरी है।

सेंटर फॉर एन्वायरमेंटल हेल्थ, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के उप निदेशक डॉ. पूर्णिमा प्रभाकरण ने बताया कि वायु प्रदूषण के अधिक संपर्क में रहना भारत में सेहत के लिए जोखिम पैदा करने वाला सबसे बड़ा कारण है। सिर्फ पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) और ओजोन के संपर्क में आने से ही हर साल 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है।

खास बात यह कि भारत ने हवा की गुणवत्ता के स्वीकार्य न्यूनतम मानकों को हासिल करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए अंतरिम लक्ष्यों के अनुरूप खुद अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (एनएनएक्यूएस) तैयार किए हैं। हालांकि भारत में वायु गुणवत्ता संबंधी मानक वैश्विक मानकों के मुकाबले कम कड़े हैं, इसके बावजूद हिंदुस्तान के ज्यादातर राज्य इन मानकों पर भी खरे नहीं उतर पाते। ऐसे में वायु गुणवत्ता में सुधार की योजनाओं को जमीन पर उतारने में व्याप्त खामियों को समझना बेहद महत्वपूर्ण है।

Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.