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Delhi Air Pollution: दिल्ली पर प्रदूषण की मार बरकरार, लोग अनेक प्रकार की बीमारियों से हो रहे ग्रस्त

दिल्ली की आबादी के अनुरूप ‘ट्रीटमेंट प्लांट’ की संख्या में बढ़ोतरी की जाए जो अभी बहुत कम है। डीजल एवं पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों को योजनाबद्ध तरीके से कम करना होगा। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को सुगम बनाना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 10:51 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 11:08 AM (IST)
Delhi Air Pollution: दिल्ली पर प्रदूषण की मार बरकरार, लोग अनेक प्रकार की बीमारियों से हो रहे ग्रस्त
प्रदूषण के समाधान के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार को साथ मिलकर प्रयास करने होंगे।

डा. सुनील कुमार मिश्र। विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में अग्रिम पंक्ति में खड़ी दिल्ली ने सरकार को भी हांफने पर मजबूर कर दिया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर पिछले लंबे समय से ‘गंभीर’ श्रेणी में है। अगले कुछ दिनों तक इसमें सुधार की उम्मीद कम ही दिखती है। इस कारण राजधानी दिल्ली में लोग अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। हवा में घुलते जहरीले कण लोगों में अस्थमा, बेचैनी, हृदय गति रुकना एवं थकान जैसे लक्षण पैदा कर रहे हैं जिससे अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ रही है।

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ऐसा नहीं है कि दिल्ली में पहली बार प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंचा है। पूर्व में भी कई बार ऐसा देखने को मिला है। इस बाबत पहले भी हाई कोर्ट दिल्ली सरकार एवं सिविक एजेंसियों को फटकार लगा चुकी है। जस्टीस बीडी अहमद एवं जस्टीस सिद्धार्थ मृदुल की पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए दिल्ली सरकार, नगर निगमों एवं दिल्ली जल बोर्ड से कहा था कि जीवन के लिए पानी सबसे महत्वपूर्ण है, परंतु यमुना में जिस कदर जहर घुला हुआ है, इसे ‘ड्रेन नदी’ कहना उचित होगा। जल बोर्ड ने दिल्ली में ड्रेनेज के लिए मास्टर प्लान की जानकारी देने की बात भी कही थी, परंतु आज तक किसी ठोस कार्ययोजना पर कार्य नहीं हुआ। उल्लेखनीय है कि केंद्र एवं राज्य सरकार में तालमेल का अभाव हर साल सैकड़ों जिंदगियों पर भारी पड़ता है एवं आरोप-प्रत्यारोप का दौर तब तक चलता है जब तक प्रकृति में अपेक्षित बदलाव न हो जाए और एक बार फिर सरकार को कुंभकर्णी नींद में जाने का मौका मिल सके।

वैसे दिल्ली सरकार में पर्यावरण मंत्री गोपाल राय का मानना है कि राजधानी में प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण दिवाली के दिन जलाए गए पटाखे एवं पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से आ रहा धुआं है। आनन-फानन सरकार ने प्रदूषण समाप्त करने के लिए पांच सूत्रीय योजना को क्रियान्वित करने की रणनीति बना तो दी है, परंतु ये सभी उपाय वही हैं जो सरकार द्वारा पूर्व में भी किए जा चुके हैं। इस संदर्भ में सरकार के उपाय अब तक ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की हमने’ जैसे ही रहे हैं। सरकार ने पराली से खाद बनाने की तकनीक के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों खर्च किए हैं। बेहतर होता कि राज्य सरकार स्वच्छ दिल्ली का सपना साकार करने के लिए एक दीर्घकालिक योजना बनाती एवं सभी पड़ोसी राज्यों एवं एनजीटी तथा अन्य केंद्रीय प्राधिकरणों के साथ मिलकर उसे क्रियान्वित करती।

समस्या के मूल में न जाकर केवल आपातकालीन उपाय के जरिये न तो वायु प्रदूषण दूर होगा और न ही यमुना का कायाकल्प हो सकेगा। यदि सरकार वास्तव में प्रदूषण को लेकर सजग है तो उसे व्यावहारिक स्तर पर दीर्घकालिक योजनाओं को आगे बढ़ाना होगा। इस गंभीर बीमारी का इलाज तात्कालिक उपाय नहीं है, अपितु इसे समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा। जहां तक पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की बात है तो वहां के किसानों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें आसान विकल्प भी उपलब्ध कराना होगा। यमुना में नालों एवं औद्योगिक इकाइयों के कचरे को जाने से रोकना एवं उनके शोधन का उपाय सुनिश्चित करना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि दिल्ली की आबादी के अनुरूप ‘ट्रीटमेंट प्लांट’ की संख्या में बढ़ोतरी की जाए, जो अभी बहुत कम है। डीजल एवं पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों को योजनाबद्ध तरीके से कम करना होगा। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को सुगम बनाना होगा। इससे पहले कि वायु प्रदूषण की समस्या लाइलाज हो जाए, इसके समाधान के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार को साथ मिलकर प्रयास करने होंगे।

[सहायक प्रोफेसर, विवेकानंद इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्टडीज, नई दिल्ली]


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