'दुरुपयोग का डर वैवाहिक दुष्कर्म को आइपीसी में अपवाद बनाए रखने का आधार नहीं'
दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद की तरह आइपीसी में रखने के लिए इसके दुरुपयोग की आशंका या विवाह को बचाए रखने को आधार नहीं बनाया जा सकता है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण की मांग वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद की तरह आइपीसी में रखने के लिए इसके दुरुपयोग की आशंका या विवाह को बचाए रखने को आधार नहीं बनाया जा सकता है। भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) में वैवाहिक दुष्कर्म के अपवाद को बनाए रखने के लिए विवाह संस्था के दुरुपयोग और संरक्षण की आशंकाएं आधार नहीं हो सकती हैं।
वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान राजशेखर राव ने यह भी कहा कि कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग की हमेशा संभावना रहती है और कानून का उद्देश्य विवाह की संस्था की रक्षा करना है। पत्नियों को यौन अपराधों सहित किसी भी अपराध के लिए पतियों पर मुकदमा चलाने की शक्ति नहीं दी जाती। उन्होंने न्यायमूर्ति राजीव शकधर और सी. हरिशंकर की पीठ से कहा कि अदालत मूकदर्शक नहीं हो सकती और यह आपत्ति कि संसद वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद का ध्यान रखेगी स्वीकार नहीं की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि पति द्वारा जबरदस्ती संभोग के मामले में नाबालिग पत्नियों की रक्षा करने वाले कानून को देखते हुए अदालत को यह आकलन करना है कि क्या अपवाद संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 21 (जीवन का अधिकार) की कसौटी पर खरा उतरता है। राव ने कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत महिला की सहमति को मान्यता दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता दी है, लेकिन कानून का प्रभाव यह है कि पत्नी की सहमति को अप्रासंगिक बना दिया गया है।