बदलते मौसम चक्र के चलते दिल्ली-एनसीआर में घट रहे कोहरे के भी दिन
दिसंबर से फरवरी तक तीन माह के दौरान अमूमन 25 दिन और 140 घंटे का कोहरा पड़ता है। घने कोहरे के लिए पश्चिमी विक्षोभों की सक्रियता वातावरण में नमी की अधिकता और बीच बीच में बारिश होना जरूरी होता है लेकिन कुछ सालों से इसकी मात्रा में कमी आई है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। जलवायु परिवर्तन के असर से बदलते मौसम चक्र का असर कोहरे पर भी दिखाई देने लगा है। कोहरे के दिनों और घंटों दोनों में ही कमी आई है। खासकर दिल्ली-एनसीआर में तो यह साफतौर पर देखा ही जा रहा है। विशेषज्ञों ने इस स्थिति के लिए मौसमी परिस्थितियों को ही मुख्य कारक बताया है। मौसम विभाग के मुताबिक दिसंबर से फरवरी तक तीन माह के दौरान अमूमन 25 दिन और 140 घंटे का कोहरा पड़ता है। घने कोहरे के लिए पश्चिमी विक्षोभों की सक्रियता, वातावरण में नमी की अधिकता और बीच बीच में बारिश होना जरूरी होता है, लेकिन पिछले कुछ सालों से इसकी मात्रा में कमी आई है। वर्ष 2007-2008 में केवल दो दिन और 10 घंटे ही कोहरा पड़ा था। उसके बाद के वर्षों में भी बहुत ज्यादा कोहरा पड़ने के मामले कम ही सामने आए। इस साल भी कमोबेश वही हालात बन रहे हैं। दिसंबर में कोहरा पड़ा ही नहीं तो जनवरी में भी अभी तक यह पांच दिन और 17 घंटे का रहा है। 21 एवं 22 जनवरी को हल्की बारिश होने के आसार हैं। इसके बाद फिर से कोहरा पड़ने की कुछ संभावना बन सकती है।
मौसम विज्ञानियों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते साल दर साल एक्सट्रीम वेदर इवेंटस यानी चरम मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं जबकि सामान्य घट रही हैं। मसलन, बारिश के दिन घट गए हैं, शीत लहर के दिन भी कम हुए हैं। जून की बजाए अब बारिश जुलाई से शुरू होती है और सितंबर के बजाए अक्टूबर तक चलती है। गर्मियों के दिन भी बढ़े हैं जबकि सर्दियों के घटे हैं।
आर के जेनामणि (वरिष्ठ मौसम विज्ञानी) ने बताया कि इस बार दिसंबर में बारिश ज्यादा नहीं हुई। हवा भी चलती रही और नमी की मात्रा भी वातावरण में ज्यादा नहीं रही। इसी वजह से कोहरा भी नहीं पड़ा। सप्ताह भर बाद एक बार फिर कोहरा पड़ने के आसार बन रहे हैं। फरवरी के विषय में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।
महेश पलावत, उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन), स्काईमेट वेदर) का कहना है कि कोहरा तभी पड़ता है जब बारिश हो और वातावरण में नमी भी बढ़े। बारिश के लिए पश्चिमी विक्षोभ आना जरूरी है। दिसंबर में पश्चिमी विक्षोभ ज्यादा नहीं आए। जनवरी में कई आए तो थोड़ा कोहरा भी पड़ा। इन सब स्थितियों के पीछे जलवायु परिवर्तन का भी असर तो देखा ही जा रहा है।