Cyber fraud: विशेषज्ञ बोले- हम साइबर अपराधों के समुद्र पर सर्फिंग कर रहे, रोक के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं
Cyber fraud साइबर अपराध के निवारण में आगे के अपराधों की घटना को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने आनलाइन और आफलाइन रिपोटिर्ंग सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करने अपराधियों की त्वरित पहचान और अभियोजन वित्तीय नुकसान की वसूली और पीड़ितों की प्रतिष्ठा की बहाली सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
नई दिल्ली। Cyber fraud: साइबर अपराध एक ऐसा अपराध है जिसमें कंप्यूटर, मोबाइल फोन और सूचना प्रौद्योगिकी प्लेटफार्म सहित डिजिटल मीडिया को या तो लक्षित किया जाता है या अपराध करने के साधन के रूप में उपयोग किया जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हम साइबर अपराधों के समुद्र पर सर्फिंग कर रहे हैं। दूसरी ओर कानून प्रवर्तन एजेंसियां अनभिज्ञ हैं और साइबर अपराध के सभी आयामों का संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हैं।
पीड़ितों को यह भी नहीं पता कि किसे और कहां रिपोर्ट करनी है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित अपराध के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में पुलिस द्वारा दर्ज किए गए 27,248 साइबर अपराधों में से केवल तीन प्रतिशत ही चार्जशीट किए गए थे। इन मामलों में सजा की दर बहुत कम है। मौजूदा आपराधिक न्याय प्रणाली बुनियादी ढांचे और कौशल के लिए चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नहीं है।
साइबर अपराध के निवारण में आगे के अपराधों की घटना को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने, आनलाइन और आफलाइन रिपोटिर्ंग सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करने, अपराधियों की त्वरित पहचान और अभियोजन, वित्तीय नुकसान की वसूली और पीड़ितों की प्रतिष्ठा की बहाली सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
जांच और सजा की निश्चितता हो
साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए गुणवत्ता जांच और सजा की निश्चितता बेहद आवश्यक है। इसमें संदेह नहीं कि डिजिटल जांच के लिए पुलिस के पास कंप्यूटर साक्षर और प्रशिक्षित जांच अधिकारी उपलब्ध नहीं हैं। साइबर फारेंसिक सपोर्ट सिस्टम पूरी तरह से गायब है। यहां तक कि वकीलों, अभियोजकों और न्यायाधीशों को भी डिजिटल साक्ष्य की बारीकियों के बारे में पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं किया जाता है।
डिजिटल जांच से संबंधित साक्ष्य और आपराधिक प्रक्रियाओं का कानून अभी भी विकसित हो रहा है। साइबर अपराधों में कम चार्जशीट और दोष सिद्धि दर के पीछे यही कारण है। साइबर अपराधी या तो फेसलेस होते हैं या फिर नकाबपोश। इंटरनेट सेवा प्रदाता के सहयोग के बिना उन्हें पहचानना और उनका पता लगाना एक कठिन कार्य है। सेल फोन के सक्रिय सिम कार्ड और फर्जी कागजों से खुलवाए गए बैंक खातों की आसान उपलब्धता से समस्या और बढ़ जाती है।
साइबर अपराधी पहचान छिपाने के लिए द ओनियन राउटर (टीओआर) का इस्तेमाल कर रहे हैं। पेगासस जैसे स्पाइवेयर पहले से ही लोगों की गोपनीयता भंग करने के लिए जाने जाते हैं। साइबर स्पेस में गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पारस्परिक रूप से सहमत अंतरराष्ट्रीय विनियमन और नियंत्रण तंत्र पूरी तरह से अनुपस्थित हैं।
साइबर अपराधियों की पहचान और गतिविधियों के बारे में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को जानकारी देने से इन्कार करते हुए इंटरनेट सेवा प्रदाता अक्सर निजता के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की छत्रछाया में शरण लेते हैं। यह एकमात्र तथ्य से स्पष्ट है कि ट्विटर और फेसबुक जैसे इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म ने ऐसे अनुरोध के लिए पहले ही इन्कार कर चुके हैं।
साइबर अपराध पर अंकुश के लिए सुझाव है कि इसके लिए अलग से थाने बनाए जाएं। कानूनों को और समृद्ध किया जाए। वहीं पुलिस जांच अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाए।
(डा.केपी सिंह, सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक, हरियाणा से बातचीत पर आधारित।)