न्याय पालिका लोकतंत्र का एक स्तंभ, दूसरों से तुलना करना सही नहीं: हाई कोर्ट
सालिस्टिर जनरल ने पीठ को बताया कि सरकार के शपथ से साफ जाहिर है कि नागारिकों के स्वास्थ्य को लेकर कितने गंभीर हैं। भारत अन्य देशों के मुकाबले टीकाकरण में कहीं आगे है। उन्होंने पीठ को स्पष्ट किया कि वे एक पेशे से दूसरे की तुलना नहीं कर रहे हैं।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। केंद्र ने कोरोना टीके से संबधित एक याचिका पर अपना जवाब दाखिल करते हुए हाई कोर्ट को बताया कि टीका पेशे के हिसाब से नहीं, बल्कि महामारी की चपेट में आने के लिए चयनित की गई अलग-अलग उम्र की श्रेणी के हिसाब से लगाया जा रहा है। बार काउंसिल ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर न्यायाधीश, अधिवक्ताओं और अदालत के कर्मचारियों को टीका लगाने की मांग की थी। इस पत्र को हाई कोर्ट ने जनहित याचिका के तौर पर मानते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र ने न्यायमूर्ति विपीन सांघी की पीठ को बताया कि टीकाकरण को पेशे के हिसाब से नहीं बांटा गया है। बल्कि की विशेषज्ञों ने जो उम्र की अलग-अलग श्रेणियां बांटी हैं, उसके मुताबिक टीकाकरण किया जा रहा है। इस पर पीठ ने कहा कि न्याय पालिका लोकतंत्र का एक स्तंभ है और इसकी तुलना अन्य किसी पेशे के साथ नहीं की जा सकती। रोजाना अदालतों में तरह-तरह के हजारों लोग आते हैं और ऐसे में यह नही का जा सकता कि यहां महामारी बेअसर हो चुकी है।
सालिस्टिर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि सरकार के शपथ से साफ जाहिर है कि नागारिकों के स्वास्थ्य को लेकर कितने गंभीर हैं। भारत अन्य देशों के मुकाबले टीकाकरण में कहीं आगे है। उन्होंने पीठ को स्पष्ट किया कि वे एक पेशे से दूसरे की तुलना नहीं कर रहे हैं। सरकार ने तीनों स्तभों में कार्यरत अलग-अलग उम्र की श्रेणियां बनाई हैं और किसी भी तरह से एक पेशे की दूसरे से तुलना नहीं की है। पीठ को बताया गया कि ऐसी ही एक अन्य याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और उस पर 15 मार्च को सुनवाई हो सकती है। ऐसे में पीठ से गुजारिश है कि इस याचिका को बाद में सुना जाए। इस पर पीठ ने सुनवाई 19 मार्च के लिए टाल दी।