न्यायालय ने पीएम फंड के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए प्रोफेसर को लगाई फटकार
न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा कि स्वयं यह विचार करना चाहिए कि एक पत्थर-दिल व्यक्ति ही महामारी के ऐसे समय में योगदान हेतु एक दिन की वेतन कटौती के निर्णय को चुनौती दे सकता है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों द्वारा पीएम फंड में शिक्षकों और कर्मचारियों के एक दिन के वेतन योगदान के खिलाफ दो जनहित याचिकाएं दायर की गई। आभा देव और कुछ अन्य इस दलील के साथ कोर्ट गए कि डीयू ने कर्मचारियों को एक दिन के 'वेतन दान' के बारे में न कोई व्यक्तिगत जानकारी दी गई और न ही अन्य माध्यमों से सूचित किया गया। जिसे अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस समय देश में कोविड 19 के कारण गंभीर संकट है।
कोर्ट ने कहा महामारी के कारण विकट परिस्थिति
कोर्ट ने यह भी कहा कि महामारी और इस विकट परिस्थिति में, ऐसी याचिकाओं को स्वीकारना उचित भी नहीं होगा। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर श्रीकांत गुप्ता ने भी दिल्ली उच्च न्यायालय में इसी तरह की याचिका दायर की थी।
आप सोशल मीडिया में सक्रिय हैं
न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संजीव नरुला की खंडपीठ ने माना कि योगदान की अपील यूजीसी चेयरमैन के साथ-साथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव द्वारा भी मार्च 2020 में की गई थी, जिसमें स्वेच्छा से कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत, योगदान का आह्वान किया गया था। इस अपील में आपत्ति हेतु अंतिम तिथि का भी स्पष्ट उल्लेख था। कोर्ट ने कहा कि हम 'इंटरनेट युग' में रहते हैं, जिसमें सभी लोग सोशलमीडिया पर प्रायः सक्रिय हैं। प्रथमदृष्टया, यह विश्वास करना कठिन है कि अपीलकर्ता, जो स्वयं दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में रहता है, उसे अपने सहयोगियों या कर्मियों से विश्वविद्यालय द्वारा इस दान की अपील के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिली हो।
यह कठोर या भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता
खंडपीठ द्वारा यह भी कहा गया कि महामारी की गंभीरता और वर्तमान स्थिति को देखते हुए, अपीलकर्ता के एक दिन के वेतन (7,500/-) में कटौती को, सार्वजनिक हित के खिलाफ, कठोर या भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता।
पत्थर दिन इंसान ही इसे चुनौती दे सकता है
न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि उसे स्वयं यह विचार करना चाहिए कि 'एक पत्थर-दिल व्यक्ति' ही, महामारी के ऐसे समय में योगदान हेतु एक दिन की वेतन कटौती के निर्णय को अदालत में चुनौती दे सकता है। दोनों जनहित याचिकाओं को न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया है।