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Coronavirus Alert ! स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से कोरोना के मरीजों की गल रही हैं हड्डियां

देखा जा रहा है कि कोरोना ठीक होने के बाद सीआरपी (सी-रिएक्टिव प्रोटीन) मार्कर देखकर मरीज कई दिनों तक स्टेरायड का इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि उन्हें सांस लेने या किसी और तरह की शारीरिक परेशानी नहीं होती। इसलिए सिर्फ सीआरपी मार्कर अधिक होने से यह दवा नहीं देनी चाहिए।

By Jp YadavEdited By: Published: Wed, 07 Jul 2021 09:50 AM (IST)Updated: Wed, 07 Jul 2021 09:50 AM (IST)
Coronavirus Alert ! स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से कोरोना के मरीजों की गल रही हैं हड्डियां
Coronavirus Alert ! स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से कोरोना के मरीजों की गल रही हैं हड्डियां

नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। कोरोना से ठीक हुए मरीजों में कई तरह के फंगल संक्रमण होने की बात सामने आ चुकी है। कुछ दिन पहले साइटोमेगालो वायरस का संक्रमण होने की बात भी सामने आई थी। अब कोरोना से ठीक हुए मरीजों में हड्डियां गलने व कमजोर होने की भी बीमारी देखी जा रही है। एम्स में भी ऐसे चार मरीज देखे जा चुके हैं। एम्स के डाक्टर इसका सबसे बड़ा कारण स्टेरायड का अधिक इस्तेमाल बता रहे हैं। एम्स के आर्थोपेडिक्स विभाग व ट्रामा सेंटर के प्रमुख डा. राजेश मल्होत्रा ने कहा कि कोरोना के पहले से स्टेरायड के अधिक इस्तेमाल के कारण कूल्हे की हड्डी गलने की समस्या से पीड़ित मरीज देखे जाते थे। बुधवार को भी ऐसे तीन मरीजों के कूल्हे बदले जाएंगे, जिन्हें कोरोना नहीं था लेकिन स्टेरायड का इस्तेमाल कर रहे थे।

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उन्होंने कहा कि जिम जाने वाले कई युवा बाडी बिल्डिंग के लिए स्टेरायड युक्त फूड सप्लीमेंट का इस्तेमाल करते हैं। स्टेरायड के अधिक इस्तेमाल से हड्डियों में रक्त संचार प्रभावित होता है। इस वजह से हड्डियों में नया कैल्शियम बनने व पुराना कैल्शियम के हटने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। इस वजह से हड्डियां कमजोर होने लगती है।

कूल्हे के बॉल में समस्या अधिक देखी जाती और जोड़ खराब हो जाते हैं। ऐसे स्थिति में कूल्हा बदलना ही एक मात्र विकल्प होता है।उन्होंने कहा कि कोरोना से ठीक होने के बाद एवैस्कुलर नेक्रोसिस से पीडि़त तीन मरीज देखे गए हैं। एक मरीज को बोन मैरो एडिमा की बीमारी थी। बोन मैरो एडिमा की बीमारी में मैरो में सूजन हो जाती है। इन चारों मरीजों के कूल्हे की हड्डी खराब हो गई थी। रक्त संचार रुकने के कारण एवैस्कुलर नेक्रोसिस की बीमारी होती है। इसके वजह से हड्डी गलने लगती है। उन्होंने कहा कि कोरोना के इलाज में भी स्टेरायड का अधिक इस्तेमाल हुआ है। कई मरीजों को हाई डोज स्टेरायड भी दी गई है। इस वजह से आने वाले समय में हड्डियों की बीमारी बढ़ने की भी आशंका है।

यह देखा जा रहा है कि कोरोना ठीक होने के बाद भी सीआरपी (सी-रिएक्टिव प्रोटीन) मार्कर देखकर मरीज कई दिनों तक स्टेरायड का इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि उन्हें सांस लेने या किसी और तरह की शारीरिक परेशानी नहीं होती। इसलिए सिर्फ सीआरपी मार्कर अधिक होने से यह दवा नहीं देनी चाहिए। स्टेरायड जान बचाने के लिए जरूरी है लेकिन उसका गलत इस्तेमाल घातक हो सकता है। इससे आस्टियोपोरोसिस बीमारी भी हो सकती है। वैसे भी कोरोना से ठीक हुए मरीजों में मांसपेशियों व हड्डिों की जोड़ों में दर्द की परेशानी देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण भी कुछ लोगों में क्लाट की समस्या होती है। लिहाजा, कोरोना से ठीक हुए लोगों में एवैस्कुलर नेक्रोसिस होने का यह भी एक कारण हो सकता है।

एम्स करेगा शोध

डा. राजेश मल्होत्रा ने कहा कि कोरोना के ठीक होने के बाद हड्डियों की बीमारी पर एम्स में शोध किया जाएगा। इसके लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) से स्वीकृति मांगी गई है। 


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