Coronavirus को लेकर सामने आयी चौंकाने वाली बात, बिना लक्षण वाले मरीज हो रहे लकवा के शिकार
एम्स में लकवा के 31 ऐसे मरीजों में कोरोना पाया गया जिनमें पहले इसके लक्षण नहीं थे। चर्चा के दाैरान बताया गया कि कोरोना फेफड़े के अलावा अन्य सभी अंगों पर भी अटैक करता है।
नई दिल्ली [सुशील गंभीर]। Covid-19: कोविड-19 में कार्डियक और न्यूरोलॉजिकल लक्षण पर चर्चा के लिए बुधवार को एम्स की तरफ से एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस दौरान चर्चा में सामने आया कि बगैर कोरोना लक्षण वाले मरीज दिल की बीमारी और लकवा के शिकार हो रहे हैं। न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. एमवी पदमा ने बताया कि कोरोना से पहले ज्यादा उम्र के लोग लकवा के शिकार होते थे, लेकिन कोरनो के बाद से कम उम्र के लोग इसके शिकार हो रहे हैं।
कम उम्र के लोग भी हो रहे लकवा से ग्रस्त
पिछले साल मार्च से मई के बीच 145 लकवा के शिकार मरीज आए थे, जिनकी उम्र 67 साल के आस-पास थी। जबकि इस साल मार्च से मई के बीच 111 मरील लकवा के शिकार हुए, लेकिन उम्र का दायरा 54 साल से नीचे का रहा। लॉकडाउन के बाद से एम्स में रोजाना चार से पांच मरीज लकवा के शिकार हो रहे हैं, जबकि लॉकडाउन से पहले यह आंकड़ा एक या दो मरीज का था।
लकवा के मिले 31 मरीज जिन्हें लक्षण नहीं था
वहीं, एम्स में लकवा के 31 ऐसे मरीजों में कोरोना पाया गया, जिनमें पहले इसके लक्षण नहीं थे। चर्चा के दाैरान बताया गया कि कोरोना फेफड़े के अलावा अन्य सभी अंगों पर भी अटैक करता है। कई केस की स्टडी में ऐसा पाया गया। वहीं होम आइसोलेशन वाले मरीजों के लिए सलाह दी गई कि प्रोफाइलैक्टिक के रूप में लो डोज एंटीकोगुलेंट दवा देनी चाहिए।
स्टीरॉयड का इस्तेमाल बेहद गंभीर स्थिति में
डॉक्टरों को मरीज के उपचार के दौरान स्टीरॉयड का इस्तेमाल बेहद गंभीर स्थिति में ही करना चाहिए। इस चर्चा के दौरान कोरोना के मरीज के ठीक होकर फिर से शिकार होने का मसला भी उठा। इस पर यूएसए के वाशिंगटन से डॉ. उमा मल्होत्रा ने कहा कि दक्षिण कोरिया और हांगकांग में ऐसे कुछ मामले सामने आए। यह वायरस कितने माह तक रह सकता है, इसका अभी कोई स्टिक आकलन नहीं हो पाया है।
विस्तृत जानकारी जुटाए जाने की जरूरत
वहीं एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि अभी इस पर विस्तृत जानकारी जुटाए जाने की जरूरत है। अभी तो साफ तौर पर यह भी नहीं कह सकते कि जो मरीज कोरोना से ठीक होकर फिर से बीमार हुए, वे असल में दोबारा कोरोना के ही शिकार हुए। इस चर्चा में डॉ. आयुष अग्रवाल और डाॅ. दीप्ति ने अलग-अलग मरीजों की केस हिस्ट्री का भी विवरण दिया।
रूटीन में फेविपिराविर का इस्तेमाल नहीं
कोरोना के हल्के व कम गंभीर मरीजों के इलाज में फेविपिराविर का निजी अस्पतालों में धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन एम्स रूटीन में कोरोना मरीजों के इलाज में इस दवा का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। एम्स के मेडिसिन विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डाॅ. नीरज निश्चल ने कहा कि अभी इस बात का पुख्ता प्रमाण नहीं है कि यह दवा हल्के लक्षण वाले मरीजों के इलाज में असरदार है या नहीं। रेमडेसिवीर भी सभी मरीजों के इलाज में इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए। सिर्फ इमरजेंसी में इस्तेमाल होनी चाहिए।
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