दिल्ली गेट कब्रिस्तान में नहीं दफनाए जाएंगे कोरोना से मृत ‘बाहरी’ लोग, पढ़िए कब्रिस्तान संचालन समिति का फैसला
दिल्ली गेट स्थित कब्रिस्तान में कोरोना से मरे ‘बाहरी’ लोगों के शवों का प्रवेश बंद हो गया है। दूसरे राज्यों और दिल्ली के दूसरे स्थानों के शवों को वापस भेजा जा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि कोरोना के आने वाले शवों से कब्रिस्तान जल्दी भर गया है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली गेट स्थित कब्रिस्तान में कोरोना से मरे ‘बाहरी’ लोगों के शवों का प्रवेश बंद हो गया है। दूसरे राज्यों और दिल्ली के दूसरे स्थानों के शवों को वापस भेजा जा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि कोरोना के आने वाले शवों के कारण कब्रिस्तान जल्दी भर गया है। दिल्ली गेट स्थित जदीद कब्रिस्तान अहले इस्लाम तकरीबन 45 एकड़ का है। इसमें वर्ष 1924 से शवों को दफन किया जा रहा है।
वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण से लोगों के निधन को देखते हुए इस कब्रिस्तान के पांच एकड़ जमीन को कोरोना संक्रमितों शवों के लिए आरक्षित किया गया था। दो वर्ष में अब तक यहां 1350 से अधिक कोरोना संक्रमितों के शव यहां दफन किए जा चुके हैं। इनमें बड़ी संख्या दूसरे राज्यों या दिल्ली के दूसरे स्थानों में रहने वाले लोगों की है।
कब्रिस्तान के संचालन समिति के सचिव शमीम अहमद खान के मुताबिक कब्रिस्तान से कुछ सौ मीटर की दूरी पर ही कोरोना इलाज के लिए सबसे बड़ा अस्पताल लोकनायक स्थित है। ऐसे में दफनाने के लिए शव यहीं आते थे। स्थिति यह कि आरक्षित जगह भर गई है, जबकि सामान्य शवों के लिए भी जगह कम है। इस स्थिति में फिलहाल पुरानी दिल्ली के स्थानीय लोगों को ही प्राथमिकता देने का फैसला हुआ है। उन्होंने कहा कि मौजूदा लहर में राहत है। कोरोना संक्रमित के रोज एक-दो शव ही आ रहे हैं। पिछली लहर में यह आंकड़ा 60 से ऊपर तक था। कोरोना शवों के लिए पहले जगह नहीं थी। ऐसे में कई पुरानी कब्रों को समतल कराया गया। वर्ष 1960 में भी इस तरह की स्थिति पैदा हुई थी। तब भी काफी कब्रों को समतल कराया गया था।
मिलेनियम पार्क स्थित जमीन पर दावा: जदीद कब्रिस्तान अहले इस्लाम ने मिलेनियम पार्क के नजदीक चार एकड़ जमीन को कब्रिस्तान बताते हुए दावा किया है। फिलहाल उसपर विवाद है। पहले उसी को कोरोना संक्रमण के लिए आरक्षित करने की कोशिश हुई थी, लेकिन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) तथा स्थानीय निवासियों के विरोध के चलते यह प्रयास सफल नहीं हो सका था। विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि वहां कोई जमीन कब्रिस्तान के लिए आरक्षित नहीं है। इस नाम पर जमीन कब्जाने का प्रयास है जिसे सफल नहीं होने दिया जाएगा। शमीम अहमद खान ने दावा किया कि वह जमीन वर्ष 1964 में समिति को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने दी थी। फिलहाल इस मामले पर डीडीए कुछ कहने से बच रहा है।
फैसले को लेकर समिति में ही गतिरोध
कब्रिस्तान प्रबंधन समिति में ही इस फैसले को लेकर गतिरोध है। समिति के सदस्य एडवोकेट मसरूर हसन सिद्दकी ने इस फैसले को तुगलकी बताते हुए कहा कि इस कब्रिस्तान पर सभी मुस्लिमों का हक है। इस फैसले को कानून के खिलाफ बताते हुए पत्र लिखकर उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली वक्फ बोर्ड व जिलाधिकारी को भेजा है।
पक्की कब्रों पर चुप्पी
जदीद कब्रिस्तान में सैकड़ों की संख्या में पक्की कब्रें हैं, जबकि पक्की कब्रें गैर इस्लामिक है। पिछले वर्ष सीवान के बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन की कब्र को जब पक्का करने का प्रयास हुआ तो काफी विवाद हुआ था। शमीम कहते हैं कि पुरानी पक्की कब्रों को फिलहाल समतल करने का फैसला नहीं हुआ है।