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1984 anti Sikh riots : ... ये दर्द का दरिया और मुट्ठी भर सुकून

सियासत के ठेकेदारों ने चंद लोगों के कृत्य की सजा पूरे समाज को देने का फरमान जारी कर दिया। दिल्ली के तमाम सिख बहुल इलाकों पर नेताओं की अगुआई में भीड़ ने दरिंदगी का नंगा नाच किया।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 18 Dec 2018 09:31 AM (IST)Updated: Tue, 18 Dec 2018 09:31 AM (IST)
1984 anti Sikh riots : ... ये दर्द का दरिया और मुट्ठी भर सुकून
1984 anti Sikh riots : ... ये दर्द का दरिया और मुट्ठी भर सुकून

नई दिल्ली [मनोज झा]। कई सर्दी व गर्मियां गुजर गईं, फागुन भी आते रहे और बेरंग जाते रहे, लेकिन नाउम्मीदी का मौसम शायद अब 34 साल बाद जाकर बदला है। उदास चेहरों पर मुरझाई-सी खुशी, बहुत कुछ खोकर कुछ पाने का संतोष...। 84 के सिख विरोधी दंगे के एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का ताजा फैसला पीड़ितों को शायद मुट्ठी भर ही सुकून दे पाए। यह ठीक है कि इस नरसंहार के मुख्य आरोपितों में से एक सज्जन कुमार पर आखिरकार कानून ने अपना डंडा चला दिया, लेकिन ऐसा क्या है कि पीड़ित पक्ष के मन में खुशियों के बदले कसक है। जगदीश व निरप्रीत कौर जैसे पीड़ितों को यह दंड नाकाफी क्यों लगता है।

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इसके लिए वक्त का पहिया 34 साल पीछे घुमाना पड़ेगा। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली की गलियों में सियासत का कवच पहने नफरत का जैसा दावानल दहका था, इतिहास में ऐसे उदाहरण विरले हैं।

नफरत की इस आग ने कई पीढ़ियां तबाह कर दीं, कई अरमान जला दिए, कई उम्मीदों को हमेशा-हमेशा के लिए दफन कर दिया। होली, दिवाली, ईद, प्रकाशोत्सव मिलजुल कर मनाने वाली दिल्ली सब कुछ भूल-भटककर पागल-सी हो गई थी। सियासत की खुली शह के चलते पूरी सिख कौम को ही दुश्मन करार दे दिया गया। उसकी बहादुरी, बलिदानी और मुहब्बत के तमाम किस्सों पर कालिख पोत दी गई।

सियासत के ठेकेदारों ने चंद लोगों के कृत्य की सजा पूरे समाज को देने का फरमान जारी कर दिया। दिल्ली के तमाम सिख बहुल इलाकों पर नेताओं की अगुआई में भीड़ ने दरिंदगी का नंगा नाच किया। घरों में घुसकर सीनों में संगीनें घोंपी गईं, गले काटे गए, चौराहों पर लोग जिंदा जलाए गए, धर्मग्रंथों की बेअदबी की गई, महिलाओं, बुजुर्गों व बच्चों तक से नृशंसता की गई। केश और वेश बदलकर डरे-सहमे सिख मारे-मारे मुंह छिपाए फिर रहे थे। उनकी न तो सियासत सुन पा रही थी, न पुलिस।

यह सब कुछ इतिहास का दर्द भरा अध्याय है। सवाल यह है कि सियासत ने इस दर्द की दवा कितनी दी, पीड़ितों के आंसू पोंछने के जतन क्या किए? जवाब में हैरत और क्षोभ ही हाथ लगता है। कई वारदात का तो शुरू में मुकदमा तक नहीं लिखा गया।

उम्मीदों के मलबे से पीड़ित साक्ष्य बटोरते रहे, लेकिन उन्हें अनसुना-अनदेखा किया जाता रहा। सज्जन पर ही अर्से बाद मामला दर्ज किया गया। कमजोर पैरवी और साक्ष्य के अभाव में निचली अदालत ने उसे बेकुसूर भी ठहरा दिया। उसे चुनावों में टिकट दिया गया और जीता भी। ऐसे इनामों से कई अन्य आरोपित भी नवाजे गए।

इन सबके बीच यदि कुछ नहीं था तो वह थी पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की तड़प। इसलिए इस नरसंहार के प्रत्येक मामले में, जब भी अदालत सजा सुनाती है तो पीड़ितों के चेहरों पर सुकून नहीं, बल्कि गम का गुबार ही ज्यादा दिखाई देता है। पता नहीं, दर्द के इस गुबार के बीच सियासत कितना सीख-समझ पाती है।

तारीखों में घटना

  • 31 अक्टूबर 1984: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके निवास स्थान पर सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी।
  • 1 नवंबर 1984: भीड़ ने दिल्ली कैंट के राजनगर एरिया में पांच सिखों की हत्या की।
  • मई 2000: मामलों की जांच के लिए आयोग गठित किया गया।
  • दिसंबर 2002: जिला अदालत से सज्जन कुमार को एक मामले में बरी कर दिया।
  • 24 अक्टूबर 2005: आयोग की सिफारिश पर सीबीआइ ने सज्जन कुमार के खिलाफ केस दर्ज किया।
  • 1 फरवरी 2010: निचली अदालत ने सज्जन कुमार व अन्य को आरोपित मानते हुए समन जारी कर ट्रायल शुरू किया।
  • 24 मई 2010: अदालत ने आरोपितों के खिलाफ हत्या, डकैती और आगजनी सहित अन्य आरोप तय किए।
  • 30 अप्रैल 2013: निचली अदालत ने सज्जन कुमार को बरी किया, जबकि अन्य को दोषी करार दिया गया था।
  • 9 मई 2013: दोषी बलवान खोखर, भागमल और गिरधारी लाल को उम्रकैद व दो अन्य को तीन साल कैद की सजा हुई।
  • 19 जुलाई 2013: सज्जन कुमार को बरी करने के फैसले के खिलाफ सीबीआइ ने हाई कोर्ट में अपील दायर की।
  • 22 जुलाई 2013: हाई कोर्ट ने सीबीआइ की अपील पर सज्जन कुमार को नोटिस जारी किया। इसके बाद हाई कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, जो वर्ष 2018 तक चली।
  • 29 अक्टूबर 2018: हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
  • 17 दिसंबर 2018: हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया और सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा दी। बलवान खोखर, भागमल और गिरधारी लाल को उम्रकैद की सजा बरकरार रखी गई। दो अन्य दोषियों की सजा बढ़ाकर दस साल कर दी गई।

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