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दिल्ली की सातों सीटों पर हार के बावजूद कांग्रेस के लिए छिपी है यह 'खास बात'

दरअसल कांग्रेस के वोट फीसद में इजाफा होने के साथ ही पार्टी दिल्ली में पांच संसदीय क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी से आगे निकल गई है।

By Edited By: Published: Thu, 23 May 2019 08:17 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 11:10 AM (IST)
दिल्ली की सातों सीटों पर हार के बावजूद कांग्रेस के लिए छिपी है यह 'खास बात'
दिल्ली की सातों सीटों पर हार के बावजूद कांग्रेस के लिए छिपी है यह 'खास बात'

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। बेशक दिल्ली की सातों सीटों में से कांग्रेस किसी पर भी जीत दर्ज नहीं कर सकी, लेकिन यह हार भी पार्टी के लिए संजीवनी का काम करेगी। दरअसल कांग्रेस के वोट फीसद में इजाफा होने के साथ ही पार्टी दिल्ली में पांच संसदीय क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी से आगे निकल गई है। राज्य में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को दूसरे स्थान से तीसरे स्थान पर पहुंचाने की वजह से विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा।

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वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा ही विजयी रही थी. लेकिन, तब सभी जगह दूसरे नंबर पर AAP रही थी और कांग्रेस का नंबर तीसरा था। जहां तक वोट फीसद का सवाल है तो भाजपा को 46, AAP को 32 और कांग्रेस को 15 फीसद वोट मिले थे।

वहीं, इस बार दक्षिणी दिल्ली और उत्तर पश्चिमी दिल्ली की सीट छोड़ दें तो बाकी सभी सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही है जबकि AAP का नंबर तीसरा रहा है। वोट फीसद की बात करें तो भाजपा को 56.6, कांग्रेस को 22.4 और AAP को 18.2 फीसद वोट मिला है।

कहने का अभिप्राय यह कि आप का वोट फीसद 32 से घटकर 18 पर आ गया, जबकि कांग्रेस का वोट फीसद 15 से बढ़कर 22.4 पर पहुंच गया।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश अध्यक्ष पद पर शीला दीक्षित की वापसी से दिल्ली में पार्टी मजबूत हुई है और मतदाताओं का भरोसा भी बढ़ा है। वहीं यह प्रदर्शन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का भी शीला पर भरोसा बढ़ाएगा। सूत्रों की मानें तो यह भी संभव है कि लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद पार्टी विधानसभा में भी शीला को ही चेहरा बनाकर पेश करे।

गुटबाजी से हुआ ज्यादा नुकसान
कांग्रेस इन चुनावों में अधिक बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी, लेकिन चुनाव के दौरान भी पार्टी में न केवल गुटबाजी बल्कि भितरघात जारी रहा, जिससे पार्टी को ज्यादा नुकसान हुआ। यहां तक कि पार्टी के सातों उम्मीदवार भी अपने दम पर लड़ते नजर आए, पार्टी के दम पर संयुक्त रूप से चुनाव लड़ते कहीं कोई दिखाई नहीं दिया। मसलन, पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से अर¨वदर ¨सह लवली ने अपनी सीट का घोषणा पत्र तक तैयार किया, जबकि अन्य किसी उम्मीदवार ने ऐसा नहीं किया। इनकी हार में एक पूर्व सांसद का भी योगदान बताया जा रहा है।

उत्तर-पश्चिमी लोकसभा सीट से दलित नेता राजकुमार चौहान अंतिम क्षणों में भाजपा में शामिल हो गए, जिससे दलित वोट बंट गए। इसी लोकसभा सीट से कई ब्लॉक अध्यक्ष भी इसी दौरान पार्टी से बाहर कर दिए गए। उत्तर पूर्वी लोकसभा सीट पर पार्टी के पूर्व विधायक भीष्म शर्मा की बगावत भी भारी पड़ी। भीष्म को चुनावी माहौल में ही पार्टी से बाहर किया गया, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए।

दक्षिणी दिल्ली में स्थानीय नेता बॉक्सर विजेंदर सिंह को पचा ही नहीं पाए। यही वजह रही कि उनका चुनाव प्रचार भी जोर नहीं पकड़ सका। चांदनी चौक में पूर्व सांसद कपिल सिब्बल पार्टी को पहले से ही हार का मुंह दिखा रहे थे।

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