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'पोस्ट बॉक्स नं. 203-नाला सोपारा' को लेकर लेखिका चित्रा मुद्गल ने खोले अहम राज

लेखिका चित्रा मुदगल को उनके उपन्यास पोस्ट बॉक्स नं. 203-नाला सोपारा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे जाने की घोषणा हुई है।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 06 Dec 2018 09:07 AM (IST)Updated: Thu, 06 Dec 2018 09:07 AM (IST)
'पोस्ट बॉक्स नं. 203-नाला सोपारा' को लेकर लेखिका चित्रा मुद्गल ने खोले अहम राज
'पोस्ट बॉक्स नं. 203-नाला सोपारा' को लेकर लेखिका चित्रा मुद्गल ने खोले अहम राज

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। लेखिका चित्रा मुदगल को उनके उपन्यास 'पोस्ट बॉक्स नं. 203-नाला सोपारा' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे जाने की घोषणा हुई है। जागरण संवाददाता से हुई टेलीफोन पर विशेष हुई बातचीत पर चित्रा मुद्गल ने उपन्यास को लेकर कहा- 'पहले मैं भी किन्नर को सामान्य नजरिए से ही देखती थी। मसलन, अन्य लोगों की तरह जब ये ट्रेन, बस में पैसे मांगने आते तो मना कर देती थी। उनके प्रति किसी तरह की संवेदनशीलता नहीं थी। एक दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में एक किन्नर चढ़ा। बातचीत में उसने जब अपनी कहानी बताई तो आंखें नम हो गईं और मेरा नजरिया भी बदल गया।'

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साहित्य सृजन के सवाल पर उन्होंने कहा-'सन 1979 में सफर के दौरान यह किन्नर मिला था। उसकी कहानी दिमाग में कौंध रही थी। उसने बताया था कि आठवीं पास करने के बाद ही उसे चंपाबाई एवं फिर तुलसीबाई के हाथ सौंप दिया गया, जो उसे साड़ी पहनने के लिए विवश करती थीं। इसे लिखने की पहले तो हिम्मत नहीं जुटा पाई, लेकिन सन 2011 की जनगणना में जब जीरो अदर्स कॉलम में इन्हें रखा गया तो मैं स्तब्ध रह गई। आरक्षण सहित अन्य मुद्दे सामने आने पर उपन्यास लिखने का निर्णय लिया।'

समाज में किन्नरों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? सवाल के जवाब में चित्रा मुद्गल ने कहा- 'आप इतिहास देखिए महिलाओं, दलितों से भेदभाव किया गया लेकिन कभी घर से नहीं निकाला, लेकिन इन्हें मां-बाप ही घर से निकला देते हैं। इस वर्ग को साहित्य में पर्याप्त जगह नहीं मिलने पर उन्होंने कहा कि बहुत ज्यादा साहित्य तो नहीं लिखा गया, लेकिन कई उपन्यासों में पात्र बनाया गया है। समाज ने इनको इस दशा में क्यों रखा, ये भी एक सवाल है। मैं 10 दिसंबर को 75 साल की हो जाऊंगी। मैं चाहती हूं कि इस उपन्यास को पाठयक्रम में शामिल किया जाए, ताकि नई पीढ़ी को किन्नरों को सम्मान देने की प्रेरणा मिले।'

यहां पर बता दें कि साहित्य अकादमी ने बुधवार को 24 भाषाओं में प्रतिष्ठित वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा की। हिंदी में चित्रा मुदगल, अंग्रेजी में अनीस सलीम, उर्दू में रहमान अब्बास, संस्कृत में रमाकात शुल्क, पंजाबी में मोहनजीत समेत कुल 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को साहित्य अकादमी पुरस्कार देने का ऐलान किया गया।

29 जनवरी 2019 को विशेष समारोह में लेखकों को ताम्रफलक शॉल और एक लाख रुपये नकद पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव ने बताया कि इस बार सात कविता-संग्रहों, छह उपन्यासों, छह कहानी संग्रहों, तीन आलोचनाओं और दो निबंध संग्रहों का चयन प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए किया गया है।

उन्होंने बताया कि हिन्दी में लेखिका चित्रा मुदगल को उनके उपन्यास 'पोस्ट बॉक्स नं. 203-नाला सोपारा' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जाएगा, जबकि अंग्रेजी में अनीस सलीम को उनके उपन्यास ' द ब्लाइंड लेडीज डीसेंडेंट्स' उर्दू में उपन्यास 'रोहजिन' के लेखक रहमान अब्बास, जबकि संस्कृत में कविता संग्रह 'मम जननी' के लिए रमाकात शुक्ल को साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है।

उन्होंने बताया कि पुरस्कारों की अनुशसा 24 भारतीय भाषाओं की निर्णायक समिति ने की थी और अकादमी के अध्यक्ष डॉ. चंद्रशेखर कंबार की अध्यक्षता में हुई अकादमी की कार्यकारी मंडल की बैठक में इन्हें बुधवार को अनुमोदित किया गया।

साहित्य अकादमी भाषा सम्मान साहित्य अकादमी ने कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य व गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं में योगदान के लिए साहित्य अकादमी भाषा सम्मान की भी घोषणा की है। भाषा सम्मान के अंतर्गत पुरस्कार विजेताओं को एक लाख रुपये नकद, एक ताम्र फलक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा। कुल नौ लेखकों को इसके लिए चुना गया है।

उत्तरी क्षेत्र से डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण (2017), दक्षिणी क्षेत्र (2017) से जी वेंकटसुबैय्या, पूर्वी क्षेत्र (2018) डॉ गगनेंद्र नाथ दास, पश्चिमी क्षेत्र से डॉ. शैलजा बापट को सम्मानित किया जाएगा। गैर मान्यताप्राप्त भाषाओं की श्रेणी में कोशली-संबलपुरी के लिए डॉ. हलधर नाग, डॉ. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी एवं पाइते के लिए श्री एच नेडसाड, हरियाणवी के लिए हरिकृष्ण द्विवेदी, डॉ. शमीम शर्मा को सम्मानित किया जाएगा।


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