मुख्य महानगर दंडाधिकारी की अदालत ने अपराध शाखा के डीसीपी से मांगा जवाब, दिल्ली पुलिस को लगाई फटकार
शस्त्र अधिनियम के तहत अभियोग चलाने के लिए सक्षम अधिकारी की मंजूरी न लाने पर मुख्य महानगर दंडाधिकारी की अदालत ने दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को फटकार लगाई है। सक्षम अधिकारी का मंजूरी पत्र जमा कराने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता । शस्त्र अधिनियम के तहत अभियोग चलाने के लिए सक्षम अधिकारी की मंजूरी न लाने पर मुख्य महानगर दंडाधिकारी की अदालत ने दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को फटकार लगाई है। कोर्ट ने संयुक्त पुलिस आयुक्त के माध्यम से डीसीपी अपराध शाखा से जवाब मांगा है। साथ ही आखिरी मौका देते हुए सक्षम अधिकारी का मंजूरी पत्र जमा कराने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। कोर्ट ने इस आदेश की प्रति पुलिस आयुक्त को भेजी है।
अपराध शाखा की टीम ने 28 जुलाई 2020 को आरोपित असद अली और वसीम के खिलाफ अवैध हथियार रखने के आरोप में शस्त्र अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया था। इसमें दावा किया गया था कि वसीम मेरठ के धूम ¨सह गैंग का बदमाश है। इस तरह के मामले में आरोपितों के खिलाफ अभियोग चलाने के लिए शस्त्र अधिनियम की धारा 39 के तहत सक्षम अधिकारी से मंजूरी लेना जरूरी होता है, जो इस मामले में अब तक कोर्ट के समक्ष नहीं रखी गई। न ही एफएसएल की रिपोर्ट दाखिल की गई है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए जवाब मांगा है।
दरअसल, अवैध हथियार रखने के शौक में कुछ युवा अपराधी बनते जा रहे हैं। पूर्व में पुलिस ने कई ऐसे युवकों को जेल भेजा है, जिन्हें अवैध रूप से हथियार रखने के आरोप में पकड़ा गया। हालांकि उन्होंने हथियार से कोई भी अपराध नहीं किया, मगर हथियार के शौक में जेल पहुंच गए। जिनके खिलाफ शस्त्र अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
जानकारी के मुताबिक कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें युवाओं ने अवैध हथियारों के जरिए लोगों को डराने -धमकाने के साथ ही अन्य आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया है। ऐसे मामलों में ज्यादातर लोगों ने अवैध हथियार रखने के संबंध में संबंधित अधिकारी से मंजूरी लेना मुनासिब नहीं समझा और अब सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं। पुलिस का कहना है कि शस्त्र अधिनियम के तहत हथियार रखने से पहले सक्षम अधिकारी की अनुमति लेना जरूरी है। ऐसा नहीं करने पर यह अपराध की श्रेणी में आता है।