समयपूर्व रिहाई के एसआरबी की संस्तुति से असहमत होने का केंद्र का फैसला अवैध : हाई कोर्ट
अपहरण के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे कार्तिक सुब्रमण्यम की समयपूर्व रिहाई का दिल्ली हाई कोर्ट ने रास्ता साफ कर दिया। न्यायमूर्ति विभू बाखरू की पीठ ने एसआरबी के फैसले से असहमत होने की केंद्र की दलीलों को खारिज करते हुए उसके आदेश को रद कर दिया।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। अपहरण के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे कार्तिक सुब्रमण्यम की समयपूर्व रिहाई का दिल्ली हाई कोर्ट ने रास्ता साफ कर दिया है। न्यायमूर्ति विभू बाखरू की पीठ ने सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) के फैसले से असहमत होने की केंद्र सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए उसके आदेश को रद कर दिया। पीठ ने कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) और पुलिस लगातार दोषी की समयपूर्व रिहाई का विरोध कर रही हैं, लेकिन इसके पीछे के कारण को लेकर कोई पुख्ता दलील नहीं पेश करे सकी। पीठ ने उक्त टिप्पणी के साथ ही केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि एसआरबी की संस्तुति और उपराज्यपाल की अनुमति के आधार पर याची को समयपूर्व रिहा करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया।
समयपूर्व रिहाई की याचिका का विरोध करते हुए सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा है कि उम्र कैद की सजा का मतलब प्राकृतिक जीवन से है। पीठ ने इस दलील को ठुकराते हुए कहा कि अगर इसे सभी मामलों पर लागू किया जाएगा तो फिर उम्रकैद की सजा काट रहे किसी भी दोषी की समयपूर्व रिहाई नहीं हो सकेगी।
पीठ ने कहा कि सीबीआइ ने याची के पैरोल पर रिहा होने का इस आधार पर विरोध किया था कि वह भाग सकता है, जबकि कई बार पैरोल पर रिहा हुआ और ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है कि उसने इसका दुरुपयोग किया हो। पीठ ने रिकॉर्ड पर लिया कि याची के पिता की उम्र 81 वर्ष है और गॉलब्लाडर -कैंसर के मरीज हैं और याची ने अब तक 26 साल से अधिक की सजा कारावास में बिता चुका है।
अधिवक्ता वरीशा फरासत के माध्यम से दायर की गई याचिका के अनुसार शिकायतकर्ता रिहामत सिद्दीकी की यूएई के भारतीय दूतावास द्वारा भेजी गई शिकायत पर सीबीआइ को भेजी गई ने अपहरण, साजिश रचने समेत अन्य धाराओं में मार्च 2001 में मुकदमा दर्ज किया था। सीबीआइ ने जून 2001 में कार्तिक समेत चार के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। मामले में सुनवाई के बाद निचली अदालत ने वर्ष 2005 में पांच हजार रुपये का जुर्माना और उम्र कैद की सजा सुनाई थी। याची ने इस फैसले को वर्ष 2007 में हाई कोर्ट में चुनौती दी, हालांकि अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। वारदात के दौरान याची कार्तिक की उम्र 20 साल की थी।
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