सावधान! राष्ट्र के लिए गंभीर चुनौती बना कोहरे और धुंध की समस्या
इस साल जागरण सुरक्षित यातायात सप्ताह 24 नवंबर-30 नवंबर तक चलाया जा रहा है। राष्ट्र के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी इस समस्या के समाधान के लिए इसके सारे आयामों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
नई दिल्ली, जेएनएन। देश में सड़क दुर्घटनाएं और उसमें हताहत होने वालों की संख्या किसी आपदा का रूप लेती जा रही हैं। हर साल जीडीपी का तीन से पांच फीसद इस मद में हमें नुकसान पहुंचता है। ये टाली जा सकने वाली मौतें हैं। थोड़ी सी एहतियात और जागरूकता हमारे इन बेशकीमती मानव संसाधनों को सुरक्षित रख सकती हैं। ये विडंबना है कि दुनिया के कुल वाहनों में भारत की हिस्सेदारी महज एक फीसद है, लेकिन वैश्विक सड़क दुर्घटनाओं में इसकी हिस्सेदारी का फीसद छह से अधिक है। दुखद यह है कि भारत में करीब 70 फीसद दुर्घटनाओं में हम युवाओं को खोते हैं।
सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है। आने वाले दिनों में पूरा उत्तर भारत घने कोहरे और धुंध की चादर से लिपट जाता है। दृश्यता शून्य हो जाती है। लिहाजा सड़क पर निकलना किसी जोखिम से कम नहीं होता। कोहरे जैसे खराब मौसम के चलते होने वाली दुर्घटनाओं में हर साल हजारों लोग मारे जाते हैं। करोड़ों का नुकसान होता है। चिंताजनक बात ये है कि जान-माल का ये नुकसान हर साल तेज दर से बढ़ रहा है। सड़क दुर्घटनाएं सामान्य दिनों में भी होती हैं, लेकिन कोहरे और धुंध के दौरान इनकी आशंका गुणात्मक रूप से बढ़ जाती है। वजहें तमाम हैं, जो सामान्य दिनों में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन धुंध में कम दृश्यता, सड़कों की खराब डिजायन, वाहनों में सुरक्षा उपकरणों की कमी आदि चीजें इन्हें बढ़ाती हैं।
ऐसे में अगर समाज और सरकार इन समस्याओं के निदान के प्रति गंभीरता से कदम बढ़ाए तो हम अपने अनमोल अपनों को सुरक्षित रख सकते हैं। इस गंभीर समस्या के प्रति सरकारों का ध्यानाकर्षण कराने और लोगो को जागरूक करने के लिए हर बार की तरह इस साल भी जागरण सुरक्षित यातायात सप्ताह 24 नवंबर-30 नवंबर तक चलाया जा रहा है। राष्ट्र के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी इस समस्या के समाधान के लिए इसके सारे आयामों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
सर्दियां शुरू हो चुकी हैं। आने वाले कुछ ही दिनों में पूरा उत्तर भारत घने कोहरे की चादर से ढक जाया करेगा। चूंकि कोहरे की अवधि लंबी होती है। शाम ढलते ही यह छाने लगता है और दूसरे दिन सूरज चढ़ने के साथ इसका काम तमाम होता है, लिहाजा बाहर निकलना लोगों की विवशता होती है। कई बार इस दौरान बहुत कम दृश्यता होती है। इसमें जरा सी चूक हमें अपने जीवन की कीमत देकर चुकानी पड़ सकती है। सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि कोहरे के दौरान सड़क दुर्घटनाओं और उनमें हताहत होने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। यह स्थिति चिंताजनक है। इसे बदलना ही होगा।
100% वृद्धि : 2014 में कोहरे के चलते हुई सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 5,886 थी। महज दो साल बाद ही ये आंकड़ा 11 हजार को पार गया। ये वृद्धि करीब सौ फीसद के आसपास बैठती है। दृश्यता कम क्यों : पानी की बूंदों से बने घने बादल जब वायुमंडल में कोहरे के रूप में फैले रहते हैं तो ये बूंदें चारों दिशाओं में प्रकाश का परावर्तन करती हैं जो सीधे हमारी आंखों पर पड़ता है। लिहाजा साफ दिन की तुलना में कोहरे की स्थिति में हम बहुत दूर तक नहीं देख पाते हैं।
हर साल ऐसी स्थिति : हर साल उत्तर भारत का मैदानी इलाका घने कोहरे से घिर जाता है। मौसम विज्ञानी इसके लिए नॉक्टरनल जेट मौसमी परिघटना को उत्तरदायी ठहराते हैं। नॉक्टरनल जेट मौसमी परिस्थिति तब बनती है जब वायुमंडल के निचले हिस्से में रात के समय तेज वायु का प्रवाह होता है और आसमान साफ होता है। ऐसे में जब धरती के पास का तापमान रात में गिरता है तो धरती के ऊपर ओस की बूंदे संघनित होकर जम जाती हैं। इसे ही कोहरा कहते हैं। सामान्यतौर पर कोहरा बनने के लिए तीन कारक जिम्मेदार होते हैं। उच्च आद्र्रता, कम तापमान और हल्की हवा। हालांकि नॉक्टरनल जेट परिघटना में हवाएं तेज चलती हैं और आद्र्रता का स्तर बहुत कम होता है। ये सभी कारक मिलकर उत्तर भारत के मैदानी हिस्से में हर साल कोहरे की चादर तान देते हैं।
Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो