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History Of The Red Fort: इधर लाल किले की नींव खोदी जा रही थी, उधर ईंटें भट्टी में जल गईं

History Of The Red Fort लाल किले की आधारशिला 1639 में रखी गई। 29 अप्रैल के दिन। किला नौ साल बाद यानी 1648 में बनकर तैयार हुआ। लेकिन जब इसकी नींव रखी जा रही थी तो एक दिलचस्प घटना घटी।

By Jp YadavEdited By: Published: Thu, 29 Apr 2021 12:41 PM (IST)Updated: Thu, 29 Apr 2021 12:41 PM (IST)
History Of The Red Fort: इधर लाल किले की नींव खोदी जा रही थी, उधर ईंटें भट्टी में जल गईं
History Of The Red Fort: इधर लाल किले की नींव खोदी जा रही थी, उधर ईंटें भट्टी में जल गईं

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। मुगल बादशाह शाहजहां ने सन् 1638 में आगरा से हटाकर अपनी राजधानी दिल्ली ले आने के लिए शाहजहानाबाद के निर्माण की योजना बनाई। आगरा में ताजमहल तो दिल्ली में को कुछ नायाब चीज मिली थी। इसी के तहत लाल किले की आधारशिला 1639 में रखी गई, वह भी 29 अप्रैल के दिन। किला नौ साल बाद यानी 1648 में बनकर तैयार हुआ। लालकिला के 9 साल तक चले निर्माण के दौरान कई किस्से मशहूर हैं। एक हैरान करने वाली घटना तो तब घटी जब इसकी नींव रखी जा रही थी। यह बेहद दिलचस्प घटना थी। 'दिल्ली था जिसका नाम' नामक पुस्तक में इंतिजार हुसैन लिखते हैं कि इज्जत खां को मीर ए इमारत मुकर्रर किया गया। वास्तुकार के रूप में उस्ताद हामिद और उस्ताद अहमद निगरान नियुक्त हुए। आधारशिला रखने से पहले ही तैयारियां शुरू हो चुकी थी। मुल्कों मुल्कों से संगमरमर, लाल बलुआ पत्थर, मसाला मंगाया जाने लगा। ईंटों के इस्तेमाल की जिम्मेदारी एक ठेकेदार को दी गई। कहा गया कि-ऐसी ईंट तैयार करो। कच्ची ना रहे, लखोरी हो।

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इंतिजार हुसैन लिखते हैं कि ठेकेदार बहुत खुश हुआ। लाख रुपये लिए और मनमाफिक ईंट बनाने की हामी भर दी। ईंटे बनाने में जी जान से जुट गया। खैर, इधर निर्माण सामग्री इक्ट्ठी होती रही। एक दिन ठेकेदार रोता हुआ आया और इज्जत खां के पैर पकड़ लिए। बोला- मैं लुट गया। बर्बाद हो गया। आंच बहुत तेज हो गई थी, जिसकी वजह से ईंटों का खंगर बनकर रह गया। यानी ईंटे सिकुड़कर चिपक गईं। ठेकेदार रोते हुए बोला कि यदि ये बात बादशाह को पता चली तो कोल्हू में पिसवा देंगे।

इज्जत खां ने ठेकेदार को ढांढस बंधाया कि फिक्र ना करे, कोई रास्ता निकाला जाएगा। इज्जत खां ने बादशाह को अर्जी भेेजी कि बुनियाद में बजाए संग-ए-खाराह (एक प्रकार का खुरदरा और लाली लिए हुए पत्थर जो बहुत कड़ा होता है) के खंगर भरा जाना चाहिए। खंगर पानी को खूब सोंखता है जिससे बुनियाद भी मजबूत रहेगी। बादशाह ने अर्जी मंजूर कर ली। ठेकेदार खुश होकर ईंटे बनाने में जुट गया। इतिहासकारों की मानें तो उस समय चारो तरफ बड़ी बड़ी कढ़ाई ही दिखती। ईंटों को इन कढ़ाई में खौलाया जाता। 1648 में लाल किले का निर्माण पूरा हुआ। ऐसा माना जाता है कि उस दौर में इसके बनने में लगभग एक करोड़ रूपया लगा। लाल किला योजना में अष्टभुजाकार है और इसके पूर्वी और पश्चिमी किनारे लम्बे हैं। उत्तर की ओर यह किला सलीमगढ़ से एक पुल द्वारा जुड़ा हुआ है। यह 900 मीटर लम्बा और 550 मीटर चौड़ा है और इसकी प्राचीरें 241 किलोमीटर परिधि में है, जो ऊंचाई में शहर की ओर 335 मीटर है, और नदी के साथ-साथ 18 मीटर ऊंची हैं।

इस किले का मुख्य प्रवेश द्वार लाहौरी दरवाजे के जरिए है और महलों तक छत्तादार मार्ग के जरिए पहुंचा जाता है, जिसकी बगल में मेहराबी कमरे हैं जिन्हें छत्ता चैक कहते थे। अब इनको दुकानों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अन्य भागों में राजदरबारियों और परिजनों के रिहायशी आवास थे। लाल किले में स्थित नौबत या नक्कार खाना का इसका इस्तेमाल दिन में पांच बार संगीत बजाने के लिए किया जाता था।


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