Pollution Impact: प्रदूषण का स्तर बढ़ते ही अस्पतालों में बढ़े मरीज, बीमारी से बचने के लिए करें ये उपाय
Pollution Impact दीवाली के बाद प्रदूषण में हुई वृद्धि ने सांस के मरीजों के लिए संकट खड़ा कर दिया है। पिछले दो दिनों में सफदरजंग और राममनोहर लोहिया सहित सभी अस्पतालों में आंखों की जलन सांस लेने में तकलीफ और खांसी के मरीजों की संख्या दोगुनी तक पहुंच गई है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दीवाली के बाद प्रदूषण में हुई वृद्धि ने सांस के मरीजों के लिए संकट खड़ा कर दिया है। पिछले दो दिनों में सफदरजंग और राममनोहर लोहिया सहित सभी अस्पतालों में आंखों की जलन, सांस लेने में तकलीफ और खांसी के मरीजों की संख्या दोगुनी तक पहुंच गई है। इनमें बुजुर्ग मरीजों की संख्या अधिक है। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में पल्मोनोलाजी विभाग के निदेशक डा. मनोज गर्ग ने बताया कि पिछले दो दिनों में उनके अस्पताल की ओपीडी में करीब 20 फीसद मरीज बढ़ गए हैं। इसमें वायरल निमोनिया, अस्थमा और छाती में संक्रमण जैसे मरीजों की संख्या पहले से बढ़ रही है।
आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के पल्मोनोलाजिस्ट डा. अक्षय बुधराजा ने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में पिछले दो दिन से लगातार सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन जैसी शिकायतों के पांच-छह मरीज आ रहे हैं। इनमें कुछ ऐसे मरीज भी हैं, जिन्हें पहले से अस्थमा की बीमारी नहीं थी। इसके साथ ही दो-तीन मरीज प्रतिदिन कम्युनिटी एक्वायर्ड निमोनिया और वायरल निमोनिया के भी आ रहे हैं।
कोरोना से गंभीर पीड़ित रहें सावधान
एम्स के डा. अमरिंदर सिंह मल्ही ने कहा कि कोरोना की वजह से गंभीर रूप से पीडि़त रहे लोगों के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। ऐसे लोग प्रदूषण की मार झेलने में सक्षम नहीं होते। ऐसे लोगों में प्रदूषण से गंभीर संक्रमण फैलने का अधिक खतरा है। यही नहीं सर्दी जुकाम का भी खतरा बना रहेगा। ऐसे लोगों को उन्होंने प्रदूषण से बचाव के लिए मास्क लगाकर रहने की सलाह दी है।
ऐसे करें बचाव
- प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए सुबह शाम बाहर जाने से बचें।
- अगर बाहर जाना जरूरी हो तो एन-95 मास्क लगाकर ही निकलें।
- ठंडे पेय पदार्थों से परहेज करें। धूमपान भी छोड़ दें।
- सांस के मरीज हैं और इन्हेलर ले रहे हैं तो उसे नियमित लेते रहें।
- डाक्टर से परामर्श के बाद ही फ्लू और निमोनिया का टीका लगवाएं।
- घर वापस आने के बाद गुनगुने पानी से गरारे करें ताकि प्रदूषित कणों के शरीर के अंदर जाने की संभावना को कम किया जा सके।