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सिनौली में खोदाई के दौरान मिले राज परिवार के ताबूत, कुछ ऐसा भी है जो कभी नहीं हुआ

खोदाई में राज परिवार के मिले ताबूत की लकड़ी खराब हो चुकी है। इस पर सिर्फ तांबे की नक्काशी ही बची है। नक्काशी पर फूलपत्तियां आदि बनी हैं।

By Amit MishraEdited By: Published: Mon, 04 Jun 2018 10:41 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jun 2018 07:22 AM (IST)
सिनौली में खोदाई के दौरान मिले राज परिवार के ताबूत, कुछ ऐसा भी है जो कभी नहीं हुआ
सिनौली में खोदाई के दौरान मिले राज परिवार के ताबूत, कुछ ऐसा भी है जो कभी नहीं हुआ

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को बागपत के सिनौली में खोदाई के दौरान राज परिवार के ताबूत के साथ आठ नरकंकाल भी मिले हैं। इनके अलावा खोदाई में पहली बार मिले तीन रथ के अवशेष पुरातत्वविदों के लिए अध्ययन का विषय बन गए हैं। ये तमाम अवशेष 3800 से 4000 वर्ष पुराने हो सकते हैं। काल निर्धारण की दृष्टि से यह अवधि उत्तर वैदिक कालीन है। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल राखीगढ़ी, कालीबंगा और लोथल में खोदाई के दौरान कंकाल तो मिल चुके हैं, लेकिन रथ पहली बार मिला है।

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खोदाई में क्या-क्या मिला

खोदाई में राज परिवार के मिले ताबूत की लकड़ी खराब हो चुकी है। इस पर सिर्फ तांबे की नक्काशी ही बची है। नक्काशी पर फूलपत्तियां आदि बनी हैं। इस ताबूत के साथ दो रथ मिले हैं। रथ में भी तांबे का इस्तेमाल हुआ है। ताबूत के साथ बड़ी संख्या में पहने जाने वाले मनके मिले हैं, जिनमें पांच सोने के हैं। इससे कुछ दूरी पर एक अन्य ताबूत मिला है, जिसके बिल्कुल पास एक रथ के भी पुरातात्विक अवशेष मौजूद हैं। कुछ दूरी पर एक अन्य कंकाल मिला है। इस कंकाल के पास शीशे के पीछे का हिस्सा व कंघा मिला है। माना जा रहा है कि यह कंकाल किसी महिला का है।

यह है एएसआइ के विशेषज्ञों का अनुमान

इस कंकाल के साथ एक कटार मिली है। इसके पास दो और कंकाल मिले हैं। हालांकि, शरीर का पूरा ढांचा नहीं मिला है। एएसआइ के विशेषज्ञों का अनुमान है कि इन लोगों की मौत कहीं और हुई हो और वहां से लाकर इन्हें यहां दफनाया गया हो। तीन स्थानों पर अलग-अलग सामान मिले हैं, जिससे माना जा रहा है कि यह किसी की याद में प्रतीकात्मक रूप में रखे गए होंगे। कुछ दूरी पर एक कुत्ता और एक पक्षी का भी कंकाल मिला है। खोदाई में मृदभांड (मिट्टी के बर्तन), तांबे की तलवारें, मशाल व ढाल भी मिली हैं।

दिल्ली में होगी जांच

इतिहासकारों के मुताबिक यह काल सिंधु घाटी सभ्यता और उत्तर वैदिक काल की संधि अवधि हो सकती है। खोदाई से जुड़े डॉ. संजय मंजुल के अनुसार यह कह पाना अभी कठिन है कि इस स्थल का संबंध महाभारत काल से रहा होगा। इतना जरूर है कि महाभारत काल के अध्ययन को लेकर इस खोदाई ने इतिहासकारों को एक नया विषय दे दिया है। उन्होंने बताया कि खोदाई में निकले सभी पुरातात्विक साक्ष्यों का हर दृष्टि से अध्ययन कराया जाएगा। इनकी कार्बन डेटिंग भी कराई जाएगी। एएसआइ को ये तमाम साक्ष्य पिछले तीन माह की खोदाई के दौरान मिले हैं।

कैसे शुरू हुई खोदाई

सिनौली गांव में 2004-2005 में एएसआइ ने खोदाई कराई थी। उस समय यहां से सिंधु घाटी सभ्यता के 116 नरकंकाल मिले थे। तब खोदाई एएसआइ के अधिकारी डॉ. डीबी शर्मा ने कराई थी। इस वर्ष फरवरी में गांव के सत्येंद्र सिंह मान को अपने खेत में काम करते समय तांबे के कुछ टुकड़े मिले थे। उन्होंने एएसआइ से संपर्क किया था। इसके बाद मार्च में यहां खोदाई शुरू कराई गई। 

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