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1984 सिख विरोधी दंगा : जो फाइल हो गई थी बंद उसमें मिली दोषी को फांसी

सिख विरोधी दंगों को लेकर एसआइटी की राह इतनी आसान नहीं थी। उसने सात समंदर पार बैठे लोगों तक से संपर्क किया और उनके बयान दर्ज किए।

By Edited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 08:05 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 12:24 PM (IST)
1984 सिख विरोधी दंगा : जो फाइल हो गई थी बंद उसमें मिली दोषी को फांसी
1984 सिख विरोधी दंगा : जो फाइल हो गई थी बंद उसमें मिली दोषी को फांसी

नई दिल्ली, जेएनएन।  34 साल बाद कोर्ट ने सिख विरोधी दंगे में कोर्ट ने इसे रेयरेस्‍ट ऑफ रेयर मामला बताया। इस मामले से जुड़े कई फाइलों को बंद कर दिया गया था बाद में इसे फिर से खोला गया। जांच के बाद दोषी को फांसी मिली है। एसआइटी के द्वारा जांच के बाद यह पहला मामला है जिसमें यह फांसी दी गई है। इससे पहले किशोरी लाल को इसी दंगे से जुड़े दूसरे मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी मगर बाद में इसे उम्र कैद की सजा में तब्‍दील कर दिया गया था।

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34 साल से न्याय की आस
34 साल से न्याय की आस लगाए बैठे सिख विरोधी दंगा पीड़ितों को आखिरकार विशेष जांच दल (एसआइटी) की जांच की बदौलत न्याय मिला और दोषी सलाखों के पीछे पहुंचे। जांच को लेकर एसआइटी की राह इतनी आसान नहीं थी। उसने सात समंदर पार बैठे लोगों तक से संपर्क किया और उनके बयान दर्ज किए।

इटली व अमेरिका में रह रहे पीड़ित परिवारों के बयान समेत तमाम सबूत एसआइटी ने अदालत में पेश किए। मृतक हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह द्वारा वर्ष 1994 में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के अनुसार एक नवंबर 1984 को हरदेव सिंह, कुलदीप सिंह व संगत सिंह महिपाल पुर स्थित अपनी दुकान पर थे। इस बीच दंगाई वहां पहुंचे। उन्हें देखकर सभी वहां सुरजीत सिंह के किराये के मकान में घुस गए।

दुकानों में आग लगाने के बाद दंगाई सुरजीत के घर पहुंचे और हरदेव, संगत, अवतार सिंह समेत अन्य पर हमला किया और सभी को बालकनी से नीचे फेंक कर घर में आग लगा दी। घायलों को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान हरदेव व अवतार सिंह की मौत हो गई।

एसआइटी ने मामले की तह तक जाने के लिए पीड़ितों की तलाश शुरू की। इसको लेकर एसआइटी के आग्रह पर पंजाब सरकार ने एक टीम गठित की। वहीं, दिल्ली के सभी सिख संगठनों को पत्र लिखकर पीड़ितों की जानकारी साझा करने को भी कहा।

हिंदी व अंग्रेजी अखबारों के जरिये जनता से आग्रह किया कि वे सिख विरोधी दंगों से जुड़े तथ्य एसआइटी से साझा करें। आखिरकार दंगे के पीड़ित संगत संह ने एसआइटी से संपर्क किया और उन्होंने दो लोगों की हत्या के मामले में दोषी नरेश सहरावत और यशपाल सिंह की पहचान की।

संगत सिंह ने बताया कि नरेश महिपालपुर में पोस्ट ऑफिस में पोस्टमास्टर था और यशपाल ट्रांसपोर्टर था। 31 जनवरी 2017 में दाखिल आरोप पत्र में एसआइटी ने कहा कि जिस घर में पीड़ित छिपे थे, यशपाल व नरेश ने उसके दरवाजे पर केरोसिन डालकर आग के हवाले कर दिया था।

एसआइटी को कई पीड़ितों की जानकारी अलग-अलग माध्यमों से मिली। टीम ने दंगे में मारे गए अवतार सिंह के भाई रतन से संपर्क किया। रतन इटली में रह रहे हैं। टीम के आग्रह पर रतन सिंह अक्टूबर 2017 में भारत आए और बयान दर्ज कराया। रतन सिंह वह अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने घटना के बाद अस्पताल में भाई के शव की पहचान की थी। एसआइटी ने अमेरिका में रह रहे मामले से जुड़े लोगों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये संपर्क कर बयान रिकार्ड किए।

सिख विरोधी दंगे और न्याय का तकाजा, जानें- जांच कमेटियों और आयोग का सच

अहम तथ्य
-1 नवंबर 1984 सिख विरोधी दंगा मामले में दिल्ली पुलिस ने 650 मामले दर्ज किए थे
-इनमें से 267 को अनसुलझा होने की बात कहकर बंद कर दिया था।
-केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआइ ने इन सभी मामलों की जांच की थी।
-गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा फरवरी 2015 में गठित एसआइटी ने भी इसमें से 60 मामलों की जांच की।
-एसआइटी ने गत डेढ़ साल में 52 मामलों में कोई सुबूत नहीं मिलने के कारण अनट्रेस रिपोर्ट फाइल की। 
-आठ मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए, जिनमें से तीन में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार आरोपित हैं।


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