जीएनसीटीडी संशोधित अधिनियम असंवैधानिक घोषित करने की मांग, अब 28 मई को होगी सुनवाई
याचिकाकर्ता नीरज ने अधिवक्ता मेघन नकुल बैसोया और मोहम्मद सुजा फैसल जरिये दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है जिसमें SC ने कहा था कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार अधिकार क्षेत्र में सभी निर्णय ले सकती है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। देश की राजधानी दिल्ली में उपराज्यपाल को असीमित अधिकार प्रदान करने संबंधी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021 को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई है। इस पर सोमवार सुनवाई हुई। उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर आम आदमी पार्टी के सदस्य नीरज शर्मा की तफ से दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र व दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने दोनों सरकारों को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई 23 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी। मुख्य पीठ इससे पहले भी इसी मामले से जुड़ी दो विधि छात्रों की याचिकाओं पर नोटिस जारी कर चुकी है।
याचिकाकर्ता नीरज शर्मा ने दलील दी कि संशोधित जीएनसीटीडी अधिनियम विभिन्न मौलिक अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 239-एए के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विपरीत है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि और हर चीज के संबंध में शक्तियां होंगी और इसके अलावा वे मत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य होंगे। वहीं, विधि छात्र ने याचिका में दावा किया था कि अधिनियम दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल के रूप में फिर से परिभाषित करता है और कार्यवाही करने के लिए दिल्ली विधानसभा की शक्ति पर अंकुश लगाता है।
जागरण संवाददाता से मिली जानकारी के मुताबिक, याचिकाकर्ता नीरज शर्मा ने अधिवक्ता मेघन, नकुल बैसोया और मोहम्मद सुजा फैसल जरिये दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है, जिसमें SC ने साफ-साफ कहा था कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में सभी निर्णय ले सकती है। इतना ही नहीं, उपराज्यपाल की सहमति हासिल किए बिना भी उन पर अमल कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच किसी मामले पर मतभेद के मामले में दोनों को इसे सुलझाने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो इस मामले को किसी फैसले के लिए राष्ट्रपति के पास भेजना चाहिए।