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भारतीय पुरातत्व के इतिहास में नया मोड़, सिनौली की धरा से चार हजार साल पुराने इतिहास को जानेगी दुनिया

दुनियाभर के लोग यहां प्राचीन वस्तुओं को देखने आएंगे। खेत मालिक सतेंद्र मान का कहना है कि सिनौली दुनिया के नक्शे पर आ चुका है। यदि सरकार स्मारक आदि का निर्माण करती है तो यहीं के लोगों को रोजगार देना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 04 Dec 2020 11:07 AM (IST)Updated: Fri, 04 Dec 2020 11:07 AM (IST)
भारतीय पुरातत्व के इतिहास में नया मोड़, सिनौली की धरा से चार हजार साल पुराने इतिहास को जानेगी दुनिया
सिनौली साइट से निकला रथ। जागरण आर्काइव

वीके शुक्ला/राजीव पंडित, दिल्ली/बागपत। बागपत का सिनौली गांव एक आम गांव नहीं है। इस गांव की धरा ने चार हजार साल पुराने इतिहास के प्रमाण को उगला है। इस इतिहास को महाभारत कालीन के आसपास का माना जा रहा है। खोदाई में सिनौली में मिली कब्र, तीन रथ, तलवार व मशाल आदि प्राचीन वस्तुओं ने दुनिया के सामने एक नये इतिहास के प्रमाण रखे हैं। गांव में 15 साल पहले एक किसान के खेत से शुरू हुई प्राचीन धरोहरों की खोज का सफर तो जारी है, लेकिन अभी तक उत्खनन के दौरान मिली वस्तुओं को देखते हुए एएसआइ ने गांव की 28 हेक्टेयर भूमि को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित किया है। इससे गांव में खुशी का माहौल नजर आ रहा है।

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अभी भी भूमि के नीचे वे तमाम प्राचीन वस्तुएं दफन है जो आने वाले समय में भारतीय पुरातत्व के इतिहास में नया मोड़ लाने का माद्दा रखती है। गांव के लोग चाहते हैं कि सरकार उनके गांव में कुछ ऐसा करे, जिससे दुनियाभर के लोग प्राचीन धरोहरों को देखने यहां आए। एक तरह से यहां ऐतिहासिक महत्व को बताने वाली पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो जाए। इससे न सिर्फ उनके गांव को पहचान मिलेगी बल्कि आमदनी भी होगी।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के सिनौली में कुछ ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जिससे यहां महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़ी पुरातात्विक धरोहर मिलने की संभावना है। इसके चलते एएसआइ ने सिनौली में 28.6 हेक्टेयर भूमि को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित कर दिया है। सुझाव और आपत्तियों के बाद इस संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी गई है। एएसआइ के अधिकारियों के मुताबिक अधिसूचित की गई जमीन को घेरने के लिए चारों ओर से कटीले तार लगाने के निर्देश दे दिए गए हैं। इससे इस जमीन की पहचान हो सकेगी। यह कार्य अगले छह माह में पूरा कर लिया जाएगा। किसान इस जमीन पर खेती तो करते रहेंगे, लेकिन निर्माण नहीं कर सकेंगे।

ढाई बीघा भूमि के समतलीकरण ने उठाया इतिहास से पर्दा : गांव में सबसे पहले वर्ष 2005 में खोदाई की शुरुआत प्रभाष शर्मा के खेत से ही हुई थी। प्रभाष बताते हैं कि वह ढाई बीघा भूमि का समतलीकरण करा रहे थे। उसी दौरान कई ऐसी प्राचीन वस्तुएं निकलकर सामने आई, जिन्होंने सबको चौंका दिया और इसकी जानकारी उन्होंने भारतीय पुरातत्व विभाग को दी, जिसके बाद उनकी भूमि में खोदाई का काम शुरू हुआ। प्रभाष शर्मा का कहना है कि गांव की 28 हेक्टेयर भूमि को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित करने के बाद उन्हें खुशी है, चूंकि अब यहां सरकार बड़े स्तर पर विकास कराएगी। अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा भी मिलना चाहिए।

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