जानिए कौन हैं चुनावी रणनीति के चाणक्य 'PK', आठ साल में जीत का स्कोर रहा है 5-1
Prashant Kishor पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और दिल्ली विधानसभा चुनाव में क्रमशः ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को सत्ता में वापस कराने की चुनौती पीके लिए बाकी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Prashant Kishor : वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने बेहतर चुनावी रणनीतिक प्रबंधन के जरिये भारतीय जनता पार्टी को जिताने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके अब आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आम आदमी पार्टी के लिए रणनीति बनाएंगे। अपने आठ साल के चुनावी प्रबंधन के दौरान 90 फीसद से अधिक सफलता हासिल करने वाले प्रशांत किशोर ने बेहद कम समय में बड़ी कामयाबी का सफर तय किया है। 2011 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा से जुड़ने के बाद वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में दोबारा भाजपा को जिताने का श्रेय लेने वाले प्रशांत किशोर वर्ष 2015 में बिहार की जटिल राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यू को भी जीत दिला चुके हैं। यह जीत इस मायने में खास है, क्योंकि मोदी लहर के डेढ़ साल के भीतर यह चुनाव हुआ था।
पीके का स्कोर 5-1 है
फिलहाल प्रशांत किशोर के लिए अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और दिल्ली विधानसभा चुनाव में क्रमशः ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को सत्ता में वापसी कराने की चुनौती है। प्रशांत किशोर पर वर्ष 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी दुर्गति का दाग भी है। बावजूद इसके गुजरात विधानसभा चुनाव 2011, लोकसभा चुनाव 2014, बिहार विधानसभा चुनाव 2015, पंजाब विधानसभा चुनाव और आंध्र प्रदेश चुनाव में जीत का रिकॉर्ज दर्ज तो वहीं यूपी में विधानसभा चुनाव 2017 में हार मिली है।
वर्ष 2011 में मोदी के साथ की अपनी सफलता की शुरुआत
अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र की नौकरी छोड़कर वर्ष 2011 में नरेंद्र मोदी से जुड़े प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2014 जो सफलता हासिल की, वह अब भी कायम है। यूपी विधानसभा चुनाव 2017 की हार को छोड़ दें तो गुजरात, बिहार, पंजाब, आंध्र प्रदेश समेत आधा दर्जन राज्यों में वह अपनी सौ फीसद सफलता दर से आगे बढ़ रहे हैं। दरअसल, पीके 2011 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम से जुड़े थे। इसके बाद उसी साल हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की तीसरी बार वापसी हुई तो इसका कुछ हद तक क्रेडिट प्रशांत किशोर को भी मिला। यह सिलसिला अगले कुछ सालों तक चला। प्रशांत किशोर का नाम तब तेजी से चर्चा में आया जब वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई।
ब्रांडिंग में पीके का जवाब नहीं
बताया जाता है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने प्रशांत किशोर को खुलकर अपना काम करने का मौका दिया। इसी का नतीजा था कि प्रशांत किशोर ने मोदी की इमेज को और बेहतर करने के लिए कई तरह के कैंपेन चलाए। इस दौरान चलाए गए प्रोग्राम 'चाय पे चर्चा', 'रन फॉर यूनिटी' और 'मंथन' जैसे आयोजित खासे सफल होने के साथ चर्चित भी हुए। इसी की नतीजा था कि जब पीके ने वर्ष यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के लिए कांग्रेस से जुड़े तो उ्न्होंने 'खाट सभा' शुरू की, लेकिन मोदी के चाय पे चर्चा जैसी आशातीत कामयाबी नहीं मिली। वहीं यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस ने उन्हें खुलकर काम नहीं करने दिया।
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के बाद दुनिया ने माना पीके का लोहा
वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी को जिताने वाले प्रशांत किशोर ने मतभेदों के चलते दूरी बना ली। फिर उसके बाद बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू से जुड़ गए। यह चुनाव प्रशांत किशोर के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं था, लेकिन पीके ने ऐसा चुनावी प्रबंधन किया कि भारतीय जनता पार्टी चारों खाने चित हो गई। मोदी और भारतीय जनता पार्टी के लिए सालभर के भीतर दूसरी बड़ी हार थी, इससे पहले वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल से भाजपा से शिकस्त खा चुकी थी।
यूपी में हारे तो आंध्र प्रदेश में फिर दिखा पीके का जलवा
यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस को मिली शिकस्त ने पीके को थोड़ा निराश किया, लेकिन फिर इसी साल आंध्र प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में पीके ने फिर अपना दम दिखाया और जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाइएसआर की पार्टी बंपर जीत के साथ सत्ता में आई।
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