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न कोई एक्शन प्लान न जागरुकता, भीषण जल संकट की ओर इशारा कर रहे हैं सूखते जलाशय

सरकारी उदासीनता व जन जागरूकता के अभाव के कारण दिल्ली के तमाम पारंपरिक जल स्रोत सूखते जा रहे हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 17 Jul 2019 11:22 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2019 11:22 AM (IST)
न कोई एक्शन प्लान न जागरुकता, भीषण जल संकट की ओर इशारा कर रहे हैं सूखते जलाशय
न कोई एक्शन प्लान न जागरुकता, भीषण जल संकट की ओर इशारा कर रहे हैं सूखते जलाशय

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। प्राकृतिक जल स्रोतों पर किए गए एक सर्वे में दिल्ली में 1012 जलाशयों की जानकारी मिली है। इनमें से ज्यादातर दिल्ली सरकार, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और नगर निगम के पास हैं। कुछ जलाशय दिल्ली जल बोर्ड, लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ), वन विभाग, दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी), दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड (डीयूएसआइबी) व वक्फ बोर्ड के हिस्से में भी हैं।

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बहुनिकाय व्यवस्था के अधीन होने के कारण इनके रख-रखाव में विभागों के बीच तालमेल ही नहीं है। सरकारी उदासीनता व जन जागरूकता के अभाव के कारण दिल्ली के तमाम पारंपरिक जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। सरकार के पास जलाशयों की बदहाली दूर करने का कभी कोई पुख्ता प्लान रहा ही नहीं। ग्रामसभा, आरडब्ल्यूए की उदासीनता एवं जनजागरूकता का अभाव भी जलाशयों की मौत के लिए कसूरवार कहा जा सकता है।

लोग भी करते रहे अनदेखी

जानकारों की मानें तो 20वीं सदी में बडे़ पैमाने पर दिल्ली की पानी की जरूरतों को पूरा करते रहे ये जलाशय 21वीं सदी में तेजी से लुप्त होना शुरू हुए। दबंगों ने इन पर कब्जा कर लिया। खुद सरकार व सरकारी एजेंसियों ने भी कई जगह जलाशयों की जमीन पर स्कूल, खेल के मैदान और डिस्पेंसरी बना दीं। कहीं पानी सूख जाने पर लोगों ने उनमें कूड़ा डालना शुरू कर दिया तो काफी जगह उनमें सीवरेज का पानी जा रहा है।

सन् 2000 में ऐसे जोहड़ों का मामला हाई कोर्ट में जाने से पहले तक न तो दिल्ली सरकार के पास ही इनके संरक्षण व जीर्णोंद्धार का कोई एक्शन प्लान था, न ही जनता अपनी भूमिका को लेकर जागरूक थी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. फैयाज ए खुदसर का कहना है कि इसमें संदेह नहीं कि अतिक्रमण, अवैध निर्माण और सीवरेज की गंदगी जोहड़ों की बदहाली का प्रमुख कारण है। बावजूद इसके इनका संरक्षण संभव है। लेकिन इसके लिए निगरानी तंत्र को विकसित करना होगा। बिना निगरानी व रख-रखाव की व्यवस्था के कुछ समय बाद ही स्थिति फिर बदहाल हो जाएगी।

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