Move to Jagran APP

Pollution Effect: कोरोना के बीच इन मरीजों को ज्यादा परेशान करेगा प्रदूषण, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

Pollution Effect लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डा. सुरेश कुमार ने बताया कि मौसम में बदलाव और आतिशबाजी व पराली जलने से बढ़ा वायु प्रदूषण स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। कोरोना से ठीक हुए और सांस संबंधी रोगों से ग्रसित लोगों के लिए यह और भी घातक है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 18 Nov 2021 03:36 PM (IST)Updated: Thu, 18 Nov 2021 04:06 PM (IST)
Pollution Effect: कोरोना के बीच इन मरीजों को ज्यादा परेशान करेगा प्रदूषण, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जरूरी है कि बचाव के सारे एहतियात अपनाएं जिससे सेहत रहे सुरक्षित...

नई दिल्ली [राहुल चौहान]। Pollution Effect: अभी लोग कोरोना के कहर से पूरी तरह उबरे नहीं हैं कि प्रदूषण की मार शुरू हो गई। हमारे यहां हर साल इन दिनों मौसम बदलने, पराली जलने और दीवाली पर आतिशबाजी से प्रदूषण की समस्या गंभीर हो जाती है और इसमें निर्माण स्थलों से होने वाला प्रदूषण भी शामिल है। इस समय तापमान कम होने की वजह से भी प्रदूषण का ज्यादा असर दिखाई देता है। निरंतर बढ़ते वाहनों के बोझ का दबाव भी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है। वाहनों के कारण लगने वाला जाम भी दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ने का कारण है।

loksabha election banner

जब वायु में पीएम-2.5, नाइट्रस आक्साइड, पीएम-10, सल्फर आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड और ओजोन की मात्रा बढ़ती है तो यह अधिक खतरनाक हो जाता है। इसी वजह से वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) में भी वृद्धि होती है। दिल्ली में प्रदूषण के बढ़े स्तर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली व आसपास के राज्यों को इसे गंभीरता से लेने की बात कही है। आने वाले समय में प्रदूषण का बढ़ना हवा की गति पर निर्भर करेगा। मौसम शुष्क रहेगा तो प्रदूषण भी बढ़ेगा, क्योंकि सरकार की सख्ती के बावजूद एनसीआर में कई जगहों पर अभी भी लोग पराली जला रहे हैं। इसकी वजह से भी प्रदूषण कम नहीं हो रहा है।

सांस व एलर्जी के मरीजों को परेशानी: सांस, फेफड़े और एलर्जी के मरीजों को प्रदूषण के कारण नींद न आना, सिर दर्द, अवसाद, ब्लड प्रेशर का बढ़ना, दिमाग पर असर होना, चिड़चिड़ापन, हृदय और न्यूरो संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। सांस के मरीजों को कई बार इनहेलर लेने की जरूरत पड़ रही है।

कैसे करें बचाव: प्रदूषण से बचाव के लिए घर से कम से कम बाहर निकलें। खुले में प्रदूषण का असर अधिक रहता है, जबकि घर के अंदर हवा की गुणवत्ता थोड़ी ठीक होती है। अगर बाहर निकल रहे हैं तो मास्क जरूर लगाएं। इससे धूल के बारीक कण, पीएम-2.5 शरीर के अंदर जाने की संभावना सामान्य मास्क से 70 से 80 फीसद कम हो जाती है। अगर एन-95 मास्क का प्रयोग करते हैं तो प्रदूषण के कण फेफड़ों में नहीं पहुंच पाते हैं। इससे 95 फीसद तक बचाव में मदद मिलती है। पानी ज्यादा से ज्यादा पिएं, मुंह धोते रहें या गीले कपडे़ से पोछते रहें। बच्चों और बुजुर्गों का अधिक खयाल रखें।

भाप लेने से होगा बचाव: बचाव के लिए भाप जरूर लें। जब भाप लेने पर गर्म हवा फेफड़ों में जाती है, वो बलगम को पतला करती है और नाक को भी खोलती है। इससे प्रदूषण के कणों से हुई जकड़न से राहत मिलती है। अगर प्रतिदिन बाहर निकलने का काम है तो दिन में कम से कम दो बार भाप जरूर लें। सांस के मरीज इनहेलर व नेबुलाइजर का इस्तेमाल कर सकते हैं। बाहर निकलने पर इनहेलर को साथ लेकर चलना चाहिए, जिससे परेशानी होने पर प्रयोग कर सकें।

खानपान में सावधानी: प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए ऐसी चीजों को अपने आहार में शामिल करें, जो स्वस्थ रहने के लिए जरूरी हैं। इससे सांस के ही नहीं हर तरह के संक्रमण से शरीर सुरिक्षत रहेगा। अखरोट, हल्दी वाला दूध, गुड़, शहद, अदरक वाली चाय आदि ठंड व प्रदूषण से होने वाले संक्रमण से बचाएंगे।

समस्या बढ़ने पर क्या करें: अगर आक्सीजन का स्तर 95 से कम आता है, खांसी अधिक आती है, सांस फूलती है तो चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। कोरोना से संक्रमित रहे मरीजों को भी प्रदूषण से अधिक बचाव करना चाहिए। कोरोना के कारण भी मुख्य रूप से फेफड़ों पर असर होता है और फेफड़ों पर ही प्रदूषण का भी अधिक प्रभाव होता है। प्रदूषण का असर होने पर फेफड़े सही से काम नहीं कर पाते हैं। ऐसे में रक्त शुद्ध नहीं होता है। रक्त शुद्ध न होने से हृदय पर जोर पड़ता है। इससे शरीर में सही तरीके से रक्त परिसंचरण नहीं हो पाता है और हृदय संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं। ऐसे में शरीर में आक्सीजन की कमी हो सकती है। परेशानी बढ़ने पर अधिक समय तक आक्सीजन सपोर्ट देना पड़ सकता है। इसके लिए घर पर भी आक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करनी पड़ सकती है।

प्रदूषण की वजह से कोरोना का वायरस वातावरण में अधिक समय तक रहता है। यह बात अमेरिका में हुए एक अध्ययन में सामने आई है। आमतौर पर कोरोना का वायरस सात से आठ घंटे में नष्ट हो जाता है। अगर प्रदूषण है तो कोरोना का वायरस पीएम-2.5 के कणों के साथ अधिक समय तक वातावरण में रह सकता है, जिससे संक्रमित होने का खतरा रहता है, लेकिन यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं कि प्रदूषण बढ़ने से कोरोना के मामलों में तेजी आ सकती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.