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प्रवेश परीक्षा के कटऑफ नियम में बदलाव से रेजिडेंट डॉक्टरों में नाराजगी

एम्स के सुपर स्पेशियलिटी प्रवेश परीक्षा के कटऑफ के नियम सख्त होने से सीटें खाली रह जाएंगी। इससे संस्थान के रेजिडेंट डॉक्टरों में नाराजगी है।

By Edited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 08:45 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 09:07 PM (IST)
प्रवेश परीक्षा के कटऑफ नियम में बदलाव से रेजिडेंट डॉक्टरों में नाराजगी
प्रवेश परीक्षा के कटऑफ नियम में बदलाव से रेजिडेंट डॉक्टरों में नाराजगी

नई दिल्ली, जेएनएन। एक तरफ अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं, खास तौर पर अति विशिष्ट (सुपर स्पेशलिस्ट) डॉक्टरों की कमी बड़ी समस्या है। दिल्ली के कई सरकारी अस्पतालों में अति विशिष्ट डॉक्टर नहीं मिल रहे है। वहीं दूसरी तरफ, एम्स के सुपर स्पेशियलिटी प्रवेश परीक्षा के कटऑफ के नियम सख्त होने से सीटें खाली रह जाएंगी। इससे संस्थान के रेजिडेंट डॉक्टरों में नाराजगी है।

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रेजिडेंट डॉक्टर कहते हैं कि एम्स प्रशासन की सख्ती के कारण कई आवेदक एम्स के सुपर स्पेशियलिटी कोर्स में दाखिला पाने से महरूम हो गए। इसका असर अस्पताल में मरीजों के इलाज पर भी पड़ेगा। कैंसर सर्जरी व पीडियाट्रिक सर्जरी में वेटिंग और बढ़ सकती है।

इस मामले में रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (आरडीए) ने एम्स प्रशासन को शिकायत देकर अपने कटऑफ के नये नियम के फैसले पर विचार करने की मांग की है। डॉक्टर कहते हैं कि एम्स प्रशासन ने दो टूक जवाब दिया है कि वह कटऑफ में रियायत नहीं दे सकता। इसलिए जुलाई के शैक्षिणक सत्र में 11 विभागों में सुपर स्पेशियलिटी की 45 सीटें खाली रहना निश्चित है। क्योंकि उन सीटों पर प्रवेश परीक्षा में छात्र उत्तीर्ण नहीं कर पाए हैं।

इसका कारण यह है कि एम्स ने सुपर स्पेशियलिटी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए 50 परसेंटाइल की जगह कम से कम 50 फीसद अंक होना अनिवार्य कर दिया है। रेजिडेंट डॉक्टर कहते हैं कि एम्स के सुपर स्पेशियलिटी की प्रवेश परीक्षा के पेपर ऐसे बनाए (सेट) जाते हैं कि सभी सवालों को हल करना व 50 फीसद अंक लाना आसान नहीं होता।

इसलिए पहले की तरह 50 परसेंटाइल के आधार पर ही कटऑफ तय होना चाहिए। संस्थान के एक डॉक्टर ने कहा कि एमडी (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) व एमएस (मास्टर ऑफ सर्जरी) कर चुके विशेषज्ञ डॉक्टर सुपर स्पेशियलिटी में दाखिला लेते हैं। इसलिए मरीजों के इलाज में उनकी अहम भूमिका होती है। ऐसे में सुपर स्पेशियलिटी कोर्स में 45 सीटें खाली रहने का मतलब है कि इतने वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर (अकेडमिक) कम रह जाएंगे। इसका असर इलाज पर पड़ेगा।

खासतौर पर नियोनेटोलॉजी, पल्मोनरी मेडिसिन, सर्जिकल आंकोलॉजी व पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के मरीजों का इलाज अधिक प्रभावित होगा। इस मामले पर एम्स यह कह चुका है कि वह सुपर स्पेशियलिटी की शिक्षा में डॉक्टरों की दक्षता से समझौता नहीं करेगा। उसका कहना है कि जो सीटें खाली रहेंगी वह आगामी जनवरी की सत्र में जुड़ जाएंगी।

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