वायु प्रदूषण से होने वाले दुष्प्रभाव पर एम्स और आइआइटी दिल्ली मिलकर करेंगे शोध
Effects of Air Pollution एम्स के डाक्टर कहते हैं कि आने वाले दिनों में देश में प्रदूषण की स्थिति और अधिक खराब होगी। ऐसे में वायु गुणवत्ता के मानकों को सख्त किया जाएगा। इसके लिए स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रदूषण के दुष्प्रभाव का डाटा होना जरूरी है।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली ने मिलकर कोलाब्रेटिव फार एयर पाल्यूशन एंड हेल्थ इफेक्ट रिसर्च इन इंडिया (केफर-इंडिया) नेटवर्क शुरू किया है। एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया व आइआइटी दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर रामगोपाल राव ने मंगलवार को इसका शुभारंभ किया। इस नेटवर्क का संचालन एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के कार्यालय से होगा। लिहाजा अब दोनों संस्थान मिलकर प्रदूषण और स्वास्थ्य पर उसके दुष्प्रभाव पर शोध करेंगे। डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि मौजूदा परिस्थिति में स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रदूषण के प्रभाव की सही जानकारी के लिए दोनों संस्थानों व विभागों को मिलकर शोध करने की जरूरत है। एम्स के डाक्टर कहते हैं कि आने वाले दिनों में देश में प्रदूषण की स्थिति और अधिक खराब होगी। ऐसे में वायु गुणवत्ता के मानकों को सख्त किया जाएगा। इसके लिए स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रदूषण के दुष्प्रभाव का डाटा होना जरूरी है।
एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के अतिरिक्त प्रोफेसर डा. हर्ष आर साल्वे ने कहा कि प्रदूषण को लेकर कई संस्थान अलग-अलग शोध कर रहे हैं। कुछ संस्थान प्रदूषण और हवा की गुणवत्ता पर शोध करते हैं। ऐसे संस्थानों के शोधार्थी चिकित्सक नहीं होते। दूसरी तरफ एम्स जैसे संस्थान में डाक्टर स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव का शोध करते है। ऐसे में वायु गुणवत्ता व स्वास्थ्य पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव को लेकर शोध करने वाले संस्थानों को एक नेटवर्क पर लाना जरूरी है। इसी क्रम में अब एम्स व आइआइटी मिलकर शोध करेंगे। इससे यह पता चल सकेगा कि प्रदूषण का स्तर थोड़ा या ज्यादा बढ़ने पर स्वास्थ्य को किस तरह नुकसान हो रहा है। इस आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाई जा सकेगी। यही नहीं इसके जरिये प्रदूषण के खिलाफ जंग में भी सहायता मिलेगी और पता चल सकेगा कि किस क्षेत्र में प्रदूषण की क्या वजह है।
मधुमेह व हाईपरटेंशन की भी वजह बन रहा है प्रदूषण
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वायु गुणवत्ता के मानकों को पहले से ज्यादा सख्त कर भी दिया है। हाल ही में निर्धारित डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार वातावरण में पीएम-2.5 का वार्षिक स्तर 10 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर से घटाकर पांच माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित कर दिया गया है। पीएम-2.5 के कण सांस के जरिये फेफड़े में प्रवेश करते हैं और ब्लड में पहुंच जाते हैं। इससे दिल की बीमारी, हाईपरटेंशन, मधुमेह व कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रदूषण के कारण दुनिया भर में करीब 42 लाख लोगों की असमय मौत होती है। आइसीएमआर द्वारा वर्ष 2018 में जारी एक आंकड़े के अनुसार देश में प्रदूषण के कारण करीब 12.40 लाख लोगों की मौत होती है। इसके मद्देनजर यहां भी वायु गुणवत्ता के मानकों को सख्त करने की पहल शुरू हो गई है।