फर्जी डिग्री मामला : डीयू की दाखिला प्रक्रिया पर उठने लगे सवाल
अंकिव बैसोया मामले के बाद डीयू की दाखिला प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। छात्र संगठन और कुछ शिक्षकों की ओर से फर्जी रोकथाम के लिए कदम उठाने की मांग की जा रही है।
नई दिल्ली,जेएनएन। अंकिव बैसोया मामले के बाद डीयू की दाखिला प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। डीयू प्रशासन की दाखिला समिति की तरफ से जनवरी में प्रेसवार्ता कर कहा गया था कि छात्रों के दस्तावेजों एवं डिग्रियों की जांच करने के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों की मदद ली जाएगी। डीयू के कॉलेजों में रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसरों की निगरानी में दस्तावेजों का सत्यापन होगा।
छात्र संगठन उठा रहे सवाल
अंकिव मामले में छात्र संगठनों और शिक्षकों की तरफ से सवाल उठ रहे हैं कि डीयू में फर्जी दाखिले की रोकथाम के लिए बेहतर उपाय क्यों नहीं किए जा रहे हैं। अखिल भारतीय छात्र संघ की डीयू यूनिट की सचिव मधुरिमा ने आरोप लगाते हुए कहा कि अंकिव मामले के बाद डीयू का दाखिला शक के घेरे में आ गया है।
पैसे लेकर एडमिशन की बात हो रही
ऐसी घटनाएं कई बार सामने आई हैं कि डीयू में पैसे देकर दाखिला लिया जाता है। छात्रों के दस्तावेजों को जांचने के लिए बेहतर कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। डीयू के अकादमिक परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने कहा कि डीयू प्रशासन की तरफ से फर्जी डिग्री के आधार पर दाखिला रोकने के लिए 15 दिनों के अंदर जांच पूरी करनी चाहिए।
फंड की कमी
वहीं, अंकिव मामले की जांच कर रहे डीयू के बुद्धिस्ट विभाग के प्रमुख प्रो. केटीएस सराओ कह चुके हैं कि डीयू के पास फर्जी डिग्रियों की जांच करने के लिए कोई निर्धारित फंड की नीति नहीं है। डीयू प्रशासन से जुड़े अधिकारियों से जब अंकिव की डिग्री मामले में जांच करने के लिए ईमेल भेजा तो मुझसे कहा गया कि डीयू के पास इस तरह से डिग्री जांच करने के लिए फंड नहीं है।
यह बात तब सामने आई जब तमिलनाडु के तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय (टीयू) ने अंकिव की डिग्री की जांच करने के लिए 500 रुपये की शुल्क जमा कराने के लिए कहा था। बाद में सराओ ने अपनी जेब से यह धनराशि टीयू प्रशासन के पास जमा कराने का दावा किया था।