पोषण पर दें पर्याप्त ध्यान, जीवनशैली में अपनाएं बाजरा, रागी और कोदो जैसे ‘स्मार्ट फूड’
कोविड-19 ने वक्त की नजाकत को समझने तथा लचीली और टिकाऊ खाद्य प्रणाली की दिशा में नीतियों को दोबारा बनाने का मौका दिया है। यह सही समय है जब हम अपने पूर्वजों की रसोई में शामिल ज्वार बाजरा रागी और कोदो जैसे ‘स्मार्ट फूड’ की ओर लौट चलें...
अरबिंद के. पाढी/ जोआना केन-पोटाका। दवाइयां हमें रोगों से लड़ने की ताकत नहीं दे सकतीं, बल्कि सही जीवनशैली ही हमें बीमारियों से बचा सकती है। कोविड-19 के इस दौर में हमारी यह समझ सेहतमंद और पोषक खाने की मांग को बढ़ाने वाली है क्योंकि इस महामारी से बचने का सबसे सही तरीका रोग प्रतिरोधक क्षमता को तत्काल बढ़ाना और स्वस्थ रहना है। पोषक तत्वों से युक्त खाद्य फसलों से संपन्न भारत में प्राकृतिक और जैविक खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ रही है। यह बात देसी कंपनियों के प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उत्पादों के बाजार में तेजी से हो रही बढ़ोत्तरी तथा उनकी प्रतिस्पर्धी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में भी इसी प्रकार के रुझान देखकर पता चलती है। जागरूक उपभोक्ता स्वस्थ व लंबा जीवन जीने के लिए प्राकृतिक उत्पादों की ओर लौट रहे हैं।
पोषण पर दें पर्याप्त ध्यान : विश्व आर्थिक मंच द्वारा किए गए उपभोक्ता सर्वेक्षण में यह भविष्यवाणी की गई है कि वर्ष 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को मध्यम आय वर्ग चलाएगा। उस समय तक लगभग 80 प्रतिशत भारतीय परिवार मध्यम आय वर्ग में शामिल हो जाएंगे (अभी लगभग 50 प्रतिशत हैं) और उपभोक्ताओं द्वारा किए जाने वाले कुल खर्च का 75 प्रतिशत इसी मध्यम आय वर्ग द्वारा किया जाएगा। इसके साथ ही, सरकार ने स्वस्थ और पोषक खाने की मांग को बढ़ाने के लिए ‘ईट राइट इंडिया’ और ‘स्मार्ट फूड’ जैसी पहलें शुरू की हैं। अब हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि ऐसा खाना सुरक्षित, किफायती और समाज के हर एक तबके की पहुंच में हो। अनुभव आधारित अध्ययन दर्शाते हैं कि देश में बच्चों की अधिकांश मौतें और वयस्कों में अपंगता कुपोषण के कारण होती है। व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (सीएनएनएस) के आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि अधिक वजन, मोटापा और यहां तक कि गैर-संचारी रोग अब वयस्क आबादी तक ही सीमित नहीं रह गए हैं। आने वाले समय में कार्यशील आबादी को बचाने के लिए पोषण पर गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है।
जागरूकता कार्यक्रमों की जरूरत : कोविड-19 ने वक्त की नजाकत को समझने तथा लचीली और टिकाऊ खाद्य प्रणाली की दिशा में नीतियों को दोबारा बनाने का मौका दिया है। उपभोक्ताओं की संस्कृति, स्वाद और भोजन संबंधी प्राथमिकताओं का सम्मान करते हुए जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए स्वास्थ्य के लिए बेहतर और पोषक खाने की मांग को बढ़ाने की जरूरत है। इसमें लेबलिंग और प्रोत्साहनों के जरिए सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों में खाद्य सुरक्षा संबंधी मानदंडों का निर्माण किया जाना चाहिए। ‘पोषण अभियान’, ‘ईट राइट इंडिया अभियान’, ‘मिलेट मिशन’ और ‘स्वस्थ भारत अभियान’ की तरह ही पोषण के अच्छे नतीजे हासिल करने के लिए शुरू की जा सकती हैं। कारोबारियों को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि वे खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए जिम्मेदारी के साथ निवेश करें।
बेहतर हैं मोटे अनाज : हालांकि मुख्य खाद्य फसलों और सहायक खाद्य फसलों को व्यक्ति के विकास के लिए पोषक और बेहतर माना जाता रहा है, फिर भी दुनियाभर में खाद्य और कृषि नीतियां तीन मुख्य खाद्यान्न-चावल, गेहूं और मक्का तक ही सीमित हैं। इनकी उपज में वृद्धि से कैलोरी संबंधी जरूरतें तो पूरी हुईं लेकिन अन्य पोषक तत्वों की कमी का बोझ बढ़ गया। चावल और गेहूं की तुलना में ज्वार, बाजरा और दलहन जैसी फसलों के लिए न केवल कम पानी की जरूरत होती है बल्कि इनमें प्रोटीन व अन्य पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में होते हैं। कई पारंपरिक खाद्यान्न पोषक तत्वों की कमी को दूर करने का प्राकृतिक जरिया बन सकते हैं।
उदाहरणस्वरूप बाजरा में ग्लूकोज बहुत कम मात्रा में होता है, इसलिए डायबिटीज को नियंत्रण में रखने या इससे बचाव के लिए यह अच्छा विकल्प है। यही नहीं, ज्वार और बाजरा में ग्लुटन नहीं होता। सेहत, धरती तथा किसानों के लिए फायदेमंद होने के कारण इन्हें ‘स्मार्ट फूड’ कहा जाता है। इस वजह से ये महत्वाकांक्षी तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं, खासतौर पर शहरी क्षेत्रों के उपभोक्ताओं की पहली पसंद बनते जा रहे हैं। तीज-त्योहारों पर भारतीय पारंपरिक रूप से बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो के व्यंजनों को रसोई में आजमाते रहे हैं। अब वक्त है इन्हें नियमित आहार में शामिल करने का।
शाकाहार में भी संपूर्ण प्रोटीन : मांस-मछली के अलावा, कृषि उपज के रूप में दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं। फलियां भी प्रोटीन की किफायती स्रोत होती हैं। हालांकि कई फलियां प्रोटीन की पूर्ण स्रोत नहीं क्योंकि इनमें अनिवार्य अमीनो एसिड में से एक- मेथियोनाइन नहीं पाया जाता। हाल में किया गया एक अध्ययन दर्शाता है कि यदि दालों और फलियों का एक साथ सेवन किया जाए तो यह पूरा प्रोटीन प्रदान कर सकता है तथा पूरी तरह से पचने योग्य और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन बन सकता है। हाल के समय में दालों के उत्पादन में हुई वृद्धि वाकई महत्वपूर्ण उपलब्धि है। सरकार को चाहिए कि वह विशेष नीतियों और अनुसंधान के जरिए इस स्थिति को बनाए रखे, जो हमें आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रही है।
कृषि में अच्छे संकेत : भारत में फलों, सब्जियों और डेयरी उत्पादों का उपभोग भी बढ़ रहा है। यह भारतीय कृषि की पोषण संबंधी संवेदनशीलता का अच्छा संकेतक है। देश में फसलों में पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए अब बायो-फोर्टिफिकेशन का इस्तेमाल किया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप कृषि अनुसंधान परिषद ने जिंक और प्रोटीन की अधिकता वाले चावल और मक्के की उच्च प्रोटीन और विटामिन-ए युक्त किस्मों को विकसित तथा जारी किया है। इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (आईसीआरआईएसएटी) ने भी महाराष्ट्र में भारत की ज्वार की पहली बायो-फोर्टिफाइड किस्म ‘परभनी शक्ति’ को विकसित और जारी किया है।
पोषण के किफायती माध्यम : कोविड-19 के दौर में कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और नवप्रयोग पर किया गया अधिक निवेश नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का अहम जरिया साबित हो सकता है। सहायक खाद्यान्न फसलों सहित प्रमुख फसलों में किए गए अनुसंधान पोषण का किफायती माध्यम बन सकते हैं। सरकारी कार्यक्रम जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्याह्न भोजन योजना और शिशुओं का एकीकृत विकास योजना, भारत में स्वस्थ और पोषक खाने को बढ़ावा देने का सबसे अच्छा जरिया बन सकते हैं। बेनेट का नियम अब अधिकांश भारतीयों के लिए काफी हद तक लागू होता है। इसके अनुसार जैसे-जैसे लोगों की आमदनी बढ़ रही है, उनके खाने में स्टार्च युक्त भोजन की मात्रा कम होती जा रही है। पोषक और टिकाऊ खाद्य प्रणाली व मूल्य श्रंखला को बढ़ावा देने व लोगों के व्यवहार में बदलाव लाकर स्वस्थ, पोषक, गुणवत्तापूर्ण एवं सुरक्षित भोजन की मांग बढ़ाने संबंधी नीतियां बनाने का यह सही वक्त है!
50 प्रतिशत अधिक वृद्धि दर्ज की गई मध्याह्न भोजन में बाजरे से बना खाना खाने वाले बच्चों के स्वास्थ्य में (चावल आधारित भोजन की तुलना में)।
सबसे ज्यादा फॉलेट पाया जाता है बाजरा में।
3 गुना ज्यादा कैल्शियम होता है रागी में दूध की अपेक्षा।
डाउन टू अर्थ
(अरबिंद के.पाढी वर्तमान में आईसीआरआईएसएटी के भारत निदेशक हैं। जोआना केन-पोटाका आईसीआरआईएसएटी में सहायक महानिदेशक और कार्यकारी निदेशक हैं)
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