इस युवती की दरिंदगी की दास्तां जानकर उड़ जाएंगे होश, मंगेतर भुगत रहा सजा
तेजाब हमले के पीड़ित एक पुरुष का मामला गुमनामी में चला गया। उनकी मदद के लिए कोई संगठन सामने नहीं आया। यहां तक कि दिल्ली के इस पीड़ित शख्स को आज तक न्याय नहीं मिला।
नई दिल्ली [स्वदेश कुमार]। तेजाब हमले के पीड़ित युवतियों और महिलाओं के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं। इनकी चर्चा भी समय-समय पर होती रहती है, लेकिन तेजाब हमले के पीड़ित एक पुरुष का मामला गुमनामी में चला गया। उनकी मदद के लिए कोई संगठन सामने नहीं आया। रविंदर सिंह बिष्ट नामक इस पीड़ित को आज तक न्याय नहीं मिला। यहां पर बता दें कि रविंदर (36) पर करीब आठ साल पहले उनकी मंगेतर ने तेजाब से हमला किया था। इसमें उनकी बायीं आंख और कान पूरी तरह से खत्म हो गए। शरीर भी काफी हद तक जला हुआ है।
इस वजह से रविंदर अब पूरी तरह से परिवार परआश्रित हैं। उनका कहना है कि जीना तो वह कब के भूल गए, अब तो सिर्फ जिंदगी काट रहे हैं। इस उम्मीद में की उन पर हमला करने वाली को सलाखों को पीछे भेज सकें।
मूल रूप से गांव-जाखडौंडा, कांडई, जिला रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड निवासी रविंदर 2009 में स्नातक और आइटीआइ की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए दिल्ली आ गए। तब वह 29 वर्ष के थे। पिता राजिंदर सिंह बिष्ट सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद नोएडा में रह रहे थे। राजिंदर पिता के साथ रहने लगे। गुरुग्राम की एक कंपनी में नौकरी भी लग गई।
साल खत्म होते-होते घरवालों की इच्छा से ईस्ट विनोद नगर निवासी दीपिका नामक युवती से सगाई हो गई। शादी की तारीख 23 मई, 2010 तय हो गई। बकौल रविंदर सगाई के बाद दीपिका का बर्ताव बदल गया। वह नजरअंदाज करते रहे। शादी की तिथि से पांच दिन पहले 18 मई को दीपिका ने रविंदर को लाजपत नगर बुलाया। वहां से दोनों बस से ईस्ट विनोद नगर के लिए निकल गए। यहां पहुंचने के बाद किसी बात को लेकर दीपिका और रविंदर में नोकझोंक शुरू हो गई। रविंदर कुछ सामान उठाने के लिए सड़क पर झुके, तभी दीपिका ने उन पर तेजाब डाल दिया।
रविंदर का लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, एम्स और सफदरजंग अस्पताल में इलाज चला, लेकिन शरीर का जला हुआ बायां हिस्सा वापस नहीं आ पाया। बदल गया जीवन नौकरी करने वाले र¨वदर को इस हादसे के कारण अपने गांव में जाकर बैठना पड़ गया। आज भी रविंदर दवाओं के भरोसे चल रहे हैं। एक आंख और एक कान से देख और सुन पाते हैं।
दूसरी आंख और कान के साथ चेहरे के ऑपरेशन के लिए डॉक्टरों ने 20 लाख रुपये का खर्च बताया, जिसे परिवार वहन करने की स्थिति में नहीं है।
सेक्टर-34, नोएडा में रह रहे पिता राजिंदर सिंह (62) लोधी रोड स्थित एक कंपनी में काम कर रहे हैं। वह बताते हैं कि हमले के बाद कल्याणपुरी थाने में केस दर्ज हुआ था। तब से मामला कड़कड़डूमा कोर्ट में चल रहा है। पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल कर दी, लेकिन अब तक फैसला नहीं हो पाया है। वह सिर्फ इस मुकदमे के फैसले के लिए दिल्ली में रह रहे हैं।
कोर्ट में उनका केस लड़ चुके अधिवक्ता आदित्य सिंघल का उन्होंने आभार जताया, जो उनकी पूरी मदद कर रहे हैं। आदित्य सिंघल का कहना है कि हमारी कोशिश है कि अमानवीय कृत्य करने वाली को कठोर सजा मिले, लेकिन इसके साथ रविंदर को चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराने की जरूरत है, ताकि इस नरकीय जीवन से वह बाहर निकल सके। इसमें कोर्ट जल्द हस्तक्षेप करे। सरकार, सामाजिक संस्था या फिर किसी व्यक्ति विशेष भी मदद के लिए आगे आएं तो हम स्वागत करें।
चेहरा ढक कर निकलते हैं घर से
रविंदर ने बताया कि उनके लिए घर से बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है। लोगों की नजर और उनके सवालों से वह बचना चाहते हैं। इस वजह से चेहरा ढक कर ही बाहर निकलते हैं। डॉक्टरों ने घर से कम निकलने को कहा है, लेकिन दिल्ली में हो रही सुनवाई के लिए उन्हें यहां आना पड़ता है। इसके लिए पिता राजिंदर खुद गांव जाते हैं और उन्हें साथ लेकर आते हैं।